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पुष्पा की बात सुनकर नायरा स्तब्ध रह गई, उसे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था जो उसने सुना वह सच है.

‘‘हां, बेटा सच है, एकदम सच.’’

‘‘लेकिन दादी फिर पापा क्यों कहते रहे कि मां मर गई? आप ने भी क्यों नहीं बताया मुझे कि मेरी मां जिंदा है, जिस ने मुझे जन्म दिया, जिस की वजह से मैं इस दुनिया में आई, वह मरी नहीं, बल्कि जिंदा है? आप सब ने मु?झ से ?झठ क्यों कहा? क्यों ऐसा किया आप लोगों ने?’’ बोलते हुए नायरा की आंखों से ?झर?झर कर आंसू बहे जा रहे थे. मन तो किया उस का अभी इसी वक्त उड़ कर अपनी मां के पास पहुंच जाए.

‘‘बेटा, हमें गलत मत सम?झ. हमारी मजबूरी थी इसलिए हम ने तुम से वह बात छिपा कर रखी. लेकिन मरने से पहले मैं तुम्हें सारी सचाई बता देना चाहती हूं,’’ अपनी पोती के गालों को प्यार से सहलाते हुए पुष्पा बताने लगीं कि नरेश के पिताजी उदयपुर के डांगी गांव के जमींदार के यहां नौकरी किया करते थे. पहले उन का कच्चा मकान हुआ करता था. लेकिन फिर बाद में नरेश के पिताजी ने आप ने कमाए पैसों से उस घर को पक्का बनवा लिया. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. सब बढि़या चल रहा था कि एक दिन नरेश के पिताजी चल बसे. तब नरेश 10 साल का अबोध बच्चा था. दुनियादारी की उसे कोई सम?झ नहीं थी. लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद नरेश जैसे अचानक से सम?झदार हो गया.  मां को रोता देख कर कहता कि मां मत रो, मैं हूं न, सब ठीक कर दूंगा. लेकिन क्या ठीक करता वह. उसे तो इतनी भी सम?झ नहीं थी कि पैसे कैसे कमाए जाते हैं. कौन सी चीज कैसे खरीदी जाती है. नरेश के पिताजी के गुजर जाने से घर की स्थिति दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. घर में एक ही कमाने वाला था, वह भी नहीं रहा तो नरेश और उस की बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी पुष्पा पर ही आ पड़ी.

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