प्रेम ओ झल हो चुका है मात्र 2-3 सप्ताह में ही.जिस ओर से रस फुहार बरसती थी अब नग्न लालसाएं लपलपाती हुई चीखती हैं. ईशिता के मन की पीड़ा सुनने की उस की आग्रहपूर्ण मुद्रा, धैर्य खो गया था. ‘जैसा तुम चाहो,’ ‘एज यू विश’ कहने वाला पुष्कर अब उसे अपने हिसाब से सोचने को विवश कर रहा था. उस के संस्कारों का उपहास करता उसे सींखचों में जकड़ रहा था.
उकसा रहा था उसे बंधन तोड़ने, सीमाएं तोड़ने को, ‘‘बेकार की टैबूज हैं. तुम तो पढ़ीलिखी हो. तुम सोचती बहुत हो.’’हां, वह सोचती बहुत है. एक ओर मन की वल्गा हाथ से छूटती जा रही है, दूसरी ओर वह नैतिकअनैतिक, उत्थानपतन, पवित्रतामर्यादा के बारे में सोचती है.
मस्तिष्क किसी सजग प्रहरी सा उसे कोंचता है, गलत राह पर आगे बढ़ने से रोकता है.तनी हुई शिराएं, दूभर जीवन. सोचती, हां, सुखी जीवन की अधिकारिणी वह भी है. यह जीवन एक बार ही तो मिलता है, मन मार कर, दबा कर अंकुश लगा कर कब तक जिया जाए, पर सुख है कहां? कुल मिला कर सबकुछ एक बड़ा शून्य है. बिग जीरो है.
इधर पुष्कर को अखर रहा था, वह हाथ में आतेआते निकली जा रही थी. बोला, ‘‘तुम इतना क्यों सोचती हो?’’‘‘अच्छा, तुम्हारे घर में इतने सारे करीपत्ते के पौधे हैं तुम से कब से मांग रही हूं. लाए क्या?’’‘‘नहीं भूल गया.’’उसे याद आया, पति देव इस तरह से कुछ भूलें तो पानीपत का युद्ध छिड़ जाता है.‘‘तुम ने कहा था कि...’’‘‘अरे यार, छोड़ो करीपत्ता, कहीं भी मिल जाएगा 5 रुपये का.
चलो कहीं होटल में चलते हैं जहां बस हम और तुम हों.’’‘‘क्या बकवास कर रहे हो? अगर कोई तुम्हारी पत्नी से ऐसा कहे तो?’’‘‘मेरी पत्नी तो बहुत सीधी है. किसी परपुरुष की ओर देखती तक नहीं. मु झ से कहती है कि मेरी आंखें समंदर जैसी हैं, वह बस इन्हीं में डूबी रहती है, बेचारी. देखो तो मेरी आंखें क्या सच में इन में समंदर जैसी गहराई है?’’ईशिता ने नजर झुका ली. वह कहता रहा, ‘‘मेरी पत्नी तो मु झे लेडी किलर कहती है.
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