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क्लासरूम में जैसे ही चैताली आई, ओनीर ने मुंह बना कर अपने साथी धवन को इशारा किया, आ गई. चैताली रोज से अलग कुछ अच्छे मूड में थी. बाकी स्टूडैंट्स ने चैताली को विश किया. ये सब मुंबई के इस कालेज में इतिहास में पीएचडी कर रहे स्टूडैंट्स थे. ओनीर ने यों ही एक नजर सहर पर भी डाली, मन में सोचा, हद है यह लड़की. इतना सुंदर कौन होता है, काश.

चैताली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जानती हूं, अब आप को बेसब्री से इंतजार होगा कि कब आप के नाम के आगे डाक्टर लगे. है न?’’ सब स्टूडैंट्स ने हंसते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

चैताली की आदत थी, वह एकदम से किसी मशीनी तरीके से लैक्चर की शुरुआत नहीं करती थी, पहले कुछ सामयिक मुद्दों पर थोड़ी बात करती थी, फिर काम की बातों पर आती थी. आज भी उस ने पूछ लिया, ‘‘पेपर पढ़ा आप लोगों ने या वह वीडियो देखा जिस में दलित मांबेटी को जिंदा जला दिया गया? पता नहीं, देश में यह हो क्या रहा है.

युवान सोशल मीडिया की सारी खबरों पर बात कर सकता था. उस के पास अथाह नौलेज थी. वैसे तो ये सारे स्टूडैंट्स इस समय शिक्षा के क्षेत्र में सब से ऊंची डिग्री लेने जा रहे थे. सभी खूब ज्ञानी थे. इतिहास यों भी पिछली घटनाओं, उन के परिणामों और आधुनिक समाज पर प्रभाव का अध्ययन है. युवान ने कहा, ‘‘मैम, हां, देखा, दुख होता है.’’

‘‘आप लोगों को भी लगता है कि पिछले कुछ समय में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं?’’

ओनीर के संस्कार और परवरिश ने उसे हिंदू राष्ट्र का अंधसमर्थक बना दिया था. वह खड़ा हो गया. उसे जब भी गुस्सा आता, बैठ कर आराम से बात करना उस के हाथ में न रहता, यह अब तक सब जान गए थे. चैताली भी अनुभवी थी, समझ गई कि बात अब कहां जाएगी. ओनीर ने कहा, ‘‘क्यों मैम, इस से पहले देश में कभी किसी के साथ अन्याय हुआ ही नहीं था?’’

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