‘‘बात ही ऐसी करती हैं मैम. आ जाएंगी अपनी दलित बस्ती को बीच में ले कर. कोई खबर आई नहीं कि उन्हें दुख होना शुरू हो जाता है.’’
सहर ने कहा, ‘‘तुम अपनी जाति को ले कर नहीं आते? कभी सोचा है कि इतनी बड़ी डिग्री लेने जाने वाला इंसान हिंदू राष्ट्र की बात करते हुए कैसा लगता होगा?’’ सहर के आगे तो ओनीर वैसे ही हारने लगता था, फिर भी बोला, ‘‘काफी दिनों से सोच रहा हूं कि तुम, सहर नौटियाल. यह सरनेम कम ही सुना है. मुंबई के तो नहीं हो तुम लोग?’’
‘‘तुम सचमुच जाति से बढ़ कर नहीं सोच सकते?’’
‘‘मुझे भविष्य में एक इतिहासकार बनना है, राजनीति में जाना है.’’
‘‘उस के लिए इतना पढ़ने की क्या जरूरत है?’’ सहर के इतना कहते ही सब हंस पड़े. सब के और्डर सर्व हो चुके थे, सब खानेपीने लगे. सब जानते थे कि ओनीर को सहर पसंद है पर सहर के पेरैंट्स में से कोई तो मुसलिम है, ओनीर इसलिए कुछ आगे नहीं बढ़ता है. बस, इतना ही पता था सब को. और यही सच भी था.
सहर ने नीबूपानी का एक घूंट भरते हुए कहा, ‘‘कोई हिंदू, कोई मुसलिम, कोई ईसाई है, सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है.’’ सहर की गंभीर आवाज पर कुछ सैकंड्स के लिए सन्नाटा छा गया.
ओनीर ने जलीकटी टोन में कहा, ‘‘बस, इसी से सब चुप हो जाते हैं, तुम्हें पता है.’’
सहर ने कहा, ‘‘ओनीर, वैसे तो तुम्हारा अपना सोचने का ढंग है पर मेरे खयाल से एक दोस्त की हैसियत से यह जरूर कहना चाहूंगी कि हम आज जहां बैठे हैं, हमारे और उन नफरत फैलाने वाले लोगों में कुछ फर्क तो होना ही चाहिए न? तुम वही भाषा बोलते हो जो एक सम?ादार इंसान को नहीं बोलनी चाहिए.’’