आज एक बार फिर चल पड़ी थी उसी रास्ते पर, जिसे 10 साल पहले पीछे छोड़ते हुए. हर सुखसुविधा पा लेने की इच्छा की कैदी बन कर संदीप संग फेरे लेने को तैयार हो गई थी.

रोहन आवाज देता ही रह गया, ‘‘श्वेता, मुझे कुछ वक्त और दो... मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होते ही तुम्हारे संग अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करूंगा.’’

‘‘मगर मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती रोहन. संदीप एक स्थापित डाक्टर है और मेरे पेरैंट्स की पसंद है. पापामम्मी से अब मैं इस शादी को कैंसिल करने को नहीं कह पाऊंगी. संदीप और उस के पेरैंट्स मु?ा से मिल चुके हैं और दोनों पक्षों की रजामंदी के बाद ही यह शादी तय हुई है. अब इसे रोका नहीं जा सकता.’’

‘‘रुक जाओ श्वेता, प्लीज... मेरी खातिर,’’ पहली बार उस ने रोहन की आंखों में आंसू देखे थे. उस के भीतर अब उन आंसुओं का सामना करने की ताकत नहीं थी और वह वहां से अपने अगले सफर की ओर बढ़ गई.

1 महीने बाद डाक्टर संदीप संग फेरे ले कर एक बैंक क्लर्क की बेटी कई नौकरोंचाकरों वाले बंगले में आ गई.

आर्थिक संपन्नता का खुला आकाश मन को एकसाथ ढेरों पंख लगा देता है और इंसान उन पंखों को फैला कर उड़ते वक्त यह भूल जाता है कि जिंदगी जीने के लिए ठोस धरातल का भी अपना महत्त्व है.

जब तक इस अनिवार्यता का उसे भान होता है, तब तक वह वक्त काफी पीछे खिसक चुका होता है और अगर कभी जिंदगी मेहरबान हो कर कोई चांस दे भी दे... तो हवा भरे अतीत पर टिका वर्तमान वाला रिश्ता, इस मानवीय जिंदगी को जी पाने के लिए एक बहाने के प्रयोग सा बन कर रह जाता है.

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