सलोनी की रिस्ट वाच पर जैसे ही नजर पड़ी, ‘उफ... मुझे आज फिर से देर हो गई. कार्यालय में कल नए बौस का आगमन हो रहा है. अत: सारे पैंडिंग काम कल जल्दी औफिस पहुंच कर अपडेट कर लूंगी. अब मुझे जल्दी घर पहुंचना चाहिए. बिटिया गुड्डी और नन्हे अवि के साथ मां परेशान हो रही होंगी. नीरज तो पता नहीं अभी घर लौटे भी हैं या नहीं,’ मन ही मन में सोचविचार करती सलोनी ने अपनी मेज पर रखा कंप्यूटर औफ किया और तेजी से कार्यालय से बाहर निकल आई. लंबेलंबे डग भरते हुए 5 मिनट में बसस्टौप पर आ पहुंची.

चूंकि लोकल ट्रेन अभी आई नहीं थी. अत: वह भी सामने प्रतीक्षारत लगी लाइन में सब से पीछे जा खड़ी हो गई. अचानक उस की नजर अपने से आगे खड़े नवयुवक पर पड़ी. वह गोरे वर्ण का लंबा, गठीला बदन, सुंदर, सुदर्शन, देखने में हंसमुख सजीला नवयुवक, अपनी गरदन घुमा कर उसे ही पहचानने का प्रयास कर रहा था. उस से नजरें मिलते ही सलोनी को भी वह सूरत कुछकुछ जानीपहचानी सी लगी.  सलोनी उस नवयुवक को देख कर पहचानने के उद्देश्य से सोचविचार में गुम थी. कि अचानक दोनों की नजरें आपस में टकराईं तो उस की ओर देख कर वह हौले से मुसकराया. युवक की मुसकान भरी प्रतिक्रिया देख कर उस ने सकपका कर नजरें दूसरी ओर घुमा लीं.

‘‘माफ कीजिए अगर मैं गलत नहीं हूं तो आप का नाम सलोनी है न?’’ युवक ने पहचानने का उपक्रम करते हुए नम्रता के साथ सलोनी से पूछ लिया.

युवक की बात सुन कर सलोनी चौंकते हुए बोली, ‘‘हां मेरा नाम सलोनी है. लेकिन आप मु   झे कैसे जानते हैं? मैं तो आप को नहीं जानती?’’

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