रितु यों मुझे कभी इतना इसरार कर के नहीं बुलाती थी. लेकिन आज उस ने ऐसा किया. मुझ से कहा कि शाम की चाय पर मैं उस के घर आ जाऊं, तो मुझे लगा कि कहीं नया एलसीडी टीवी तो नहीं खरीद लिया रितु ने या फिर नया फ्रिज, सोफा अथवा जरूर हीरे का सैट खरीदा होगा.

उस के घर पहुंची तो दरवाजा सलवारकमीज पहने एक युवती ने खोला.

मुझे देखते ही सिर झुका कर बोली,

‘‘गुड ईवनिंग.’’

मैं सकपकाई कि कौन हो सकती है यह बाला? रितु की बहन तो है नहीं, जहां तक मुझे पता है ननद भी नहीं है. इस से पहले कि मैं कुछ कहती, वह बड़े अदब से बोली, ‘‘प्लीज, कम इन, मैडम आप का वेट कर रही हैं.’’

मैं अपनेआप को संभालती कमरे में आई. मुझे देखते ही रितु उठ खड़ी हुई और गले लगाते हुए बोली, ‘‘क्या यार, बड़ी देर कर दी,’’ फिर बोली, ‘‘ममता, जल्दी से समोसे गरम कर ले आ. ब्रैडपकौड़े तल लेना और हां, 2 तरह की चटनी भी बना लेना.’’

मैं बेवकूफों की तरह उस का मुंह ताकने लगी. रितु ने हाथ पकड़ कर मुझे बैठाते हुए कहा, ‘‘सुमी, बड़ा आराम हो गया है, ममता के आने के बाद. ममता, मेरी फुल टाइम मेड, हर तरह का खाना बनाना जानती है. अपनी घरेलू बाइयों की तरह कोई खिटपिट नहीं. यहीं रहती है, जब चाहो, जो चाहो हाजिर.’’

और ममता मिनटों में समोसे और ब्रैडपकौड़े ले आई, तमीज से ट्रे में रख कर. साथ में एक मीठी चटनी और एक पुदीने की तीखी चटनी. इतनी स्वादिष्ठ कि मन हुआ ममता के हाथ चूम लूं. ‘तो यह थी वह नगीना, जिसे दिखाने के लिए रितु ने मुझे टी पार्टी पर बुलाया था,’ मैं ने मन ही मन सोचा.

समोसे का एक कौर खाने के बाद रितु मुझे विस्तार से जलाने लगी, ‘‘देख सुमी, अपनी काम वालियों से आप इसी बात की उम्मीद नहीं कर सकते कि वे मेहमानों की आवभगत करें. फिर स्टेटस की भी बात है.

मुझे घर का एक काम नहीं करना पड़ता. सुबहसवेरे बैड टी हाजिर. बाजार से सब्जी वगैरह लाने का काम भी यह कर देती है. हम तो भई सुबह बैड टी पी कर जिम जाते हैं. लौटते हैं तो गरमगरम नाश्ता तैयार होता है. दोपहर को लजीज खाना, शाम को चाय के साथ नाश्ता और रात को शाही डिनर. कभी चाइनीज, तो कभी मुगलई, कभी साउथ इंडियन तो कभी पंजाबी.’’

मैं रितु के उस नगीने पर से नजरें नहीं हटा पा रही थी. मुझे अपनी काम वाली की 100 कमियां सिरे से सताने लगीं. आज सुबह वह मुझ से पगार बढ़ाने की बात कह चुकी थी. हर सप्ताह 1 या 2 दिन गायब रहती. सुबह

6 बजे उस के 1 बार घंटी बजाने पर दरवाजा न खोलूं, तो वह तुरंत दूसरे घर चली जाती. फिर उस के दर्शन होते दोपहर बाद. अगर सिंक में कभी बरतनों की संख्या 2-4 अधिक हो जाए, तो वह कांच की एकाध आइटम तोड़ने के बाद भी बुदबुदाना जारी रखती मानो हमें बरतन की जगह पत्तलों में खाना चाहिए.

साफसफाई में अगर कभी कोई मीनमेख निकाल दो, तो झाड़ू वहीं पटक कर पूरा हिसाब देने बैठ जाती है कि उस से बेहतर काम कोई कर ही नहीं सकता.

रितु का भी महीने भर पहले तक कमोबेश यही हिसाब था, लेकिन आज उस की स्थिति ऐसी थी मानो वह जनरल मैनेजर हो और मैं उस की कंपनी में एक साधारण क्लर्क.

समोसे, ब्रैडपकौड़े और चाय गटकने के बाद मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘तुम यह नगीना कहां से लाई हो?’’

रितु ने भेद भरे अंदाज में कहा, ‘‘यों तो मैं किसी को बताती नहीं, पर तुम मेरी बैस्ट फ्रैंड हो, इसलिए बता रही हूं. शहर में मेड सप्लाई करने वाली कई एजेंसियां हैं, लेकिन इस एजेंसी की बात ही अलग है. सारी लड़कियां ट्रैंड हैं.’’

मैं मुद्दे पर आती हुई पूछ बैठी, ‘‘पैसा तो बहुत लेती होगी?’’

रितु ने मुझ पर बेचारगी से निगाह डाली, फिर बोली, ‘‘सुमी, तुम जाने दो. तुम एफोर्ड नहीं कर पाओगी. मेरी बात अलग है. हसबैंड का प्रमोशन हुआ है, फिर मुझे…’’

मैं खीज कर बोली, ‘‘अब बता भी दो.’’

रितु ने धीरे से कहा, ‘‘डिपैंड करता है कि तुम अपनी मेड से क्याक्या करवाना चाहती हो. सिर्फ इंडियन खाना बनाने वाली थोड़ा कम चार्ज करती है. अगर उसी से तुम घर का सारा काम भी करवाओगी तो कुछ ज्यादा खर्च करना होगा. अब मैं तुम्हें ममता का रेट तो नहीं बता सकती, एजेंसी वाले मना करते हैं. हां, तुम चाहो तो मैं तुम्हें एजेंसी का फोन नंबर दे सकती हूं, साथ भी चल सकती हूं.’’

रितु के घर से लौटते हुए मेरी आंखों के आगे बस ममता ही घूम रही थी. घर पहुंचतेपहुंचते मैं ने तय कर लिया कि चाहे जो हो जाए, मुझे फुलटाइम मेड चाहिए ही चाहिए. बस दिक्कत थी, अपने पतिदेव को पटाने की और उस काम में तो मैं माहिर थी ही.

रितु के साथ मैं एजेंसी पहुंच गई मेड लेने. मैं इस तरह तैयार हो कर गई थी मानो शादी में जा रही हूं. मेड और एजेंसी वालों पर इंप्रैशन जो जमाना था. एजेंसी क्या थी, पूरा फाइव स्टार होटल था. जाते ही हमारे सामने कोल्ड ड्रिंक आ गया. फिर हम एसी की हवा खाने लगे.

तभी हीरो जैसे दिखने वाले एक व्यक्ति ने मेरे सामने एक फार्म रखा और फिर बड़ी मीठी आवाज में शुद्ध अंगरेजी में मेरा इंटरव्यू लेने लगा. मैं कहां तक पढ़ी हूं, कितने कमरों के घर में रहती हूं, पति क्या करते हैं, ऊपरी आमदनी है या नहीं, घर अपना है या किराए का, हम दिन में कितनी दफा खाते हैं, सप्ताह में कितनी बार मेहमान आते हैं, मेहमान किस किस्म का खाना खाते हैं, घर में कोई पानतंबाकू खाने वाला तो नहीं है, सब्जीभाजी वाले से 5-10 रुपए के लिए चिकचिक तो नहीं करते. वगैरहवगैरह.

फिर उस ने रेट कार्ड देते हुए कहा,

‘‘यह रहा हमारा रेट कार्ड, इस में देख कर टिक लगा दीजिए.’’

भारतीय खाना पकवाने के 2 हजार रुपए, चाइनीज के ढाई हजार, अगर कभीकभार मुगलई या कौंटीनैंटल बनवाना हो तो 3 हजार रुपए, इस के अलावा नाश्ते की आइटम के लिए हजार रुपए अलग से.

मैं ने सकपका कर रितु की तरफ देखा. रितु ने फिर से कुहनी मारी, बोली, ‘‘सुमी, तुम सिर्फ इंडियन खाने के लिए रख लो. मुगलई और चाइनीज बनवा कर क्या करोगी?’’

मेरे अहम को इतना जबरदस्त धक्का लगा कि मैं ने तुरंत लपक कर मुगलई वाले में टिक लगा दिया. हीरो ने हिसाबकिताब लगाना शुरू किया और अब की बार थोड़ी विनम्रता से बोला, ‘‘मैडम, आप को हर महीने मेड को

4 हजार रुपए देने होंगे. हफ्ते में 1 दिन की पूरी छुट्टी. साल में 15 दिन की अतिरिक्त तनख्वाह और गांव आनेजाने का सैकंड एसी का किराया. इस के अलावा हमें आप 2 महीने की तनख्वाह डिपौजिट के रूप में देंगी. अगर बीच में कभी आप मेड को निकाल देंगी, तो हम यह पैसा वापस नहीं करेंगे. अगर यह खुद छोड़ कर चली जाएगी, तो डिपौजिट वापस हो जाएगा.’’

तो क्या हुआ, जो मुझे अपनी नई स्कूल की नौकरी में इस मेड के बराबर तनख्वाह मिलती है, स्टेटस भी तो कोई चीज है. मैं अपने साथ सिर्फ 5 हजार रुपए लाई थी, बाकी रितु से उधार ले कर उसे थमाए, तो उस ने मेरे सामने एक सांवली, दुबलीपतली लड़की पेश कर दी.

‘‘मैडम, यह हमारी खास मेड है. नाम है काजोल. एक बार इस के हाथ का पका खाना  खाएंगी, तो बारबार हमें याद करेंगी.’’

काजोल अपना सूटकेस ले कर आई, तो रितु ने धीरे से टोका, ‘‘इसे टैक्सी में आने के पैसे दो. यह तुम्हारे साथ टू व्हीलर पर कैसे जाएगी?’’

मैं ने पर्स से एक आखिरी बचा 100 का नोट निकाल कर काजोल को थमा दिया.

रितु को उस के घर छोड़ते हुए मैं काजोल के संग घर आ गई. मेरा घर देख कर काजोल खास खुश नहीं दिखी. घर देखने के बाद पूछा, ‘‘मैडमजी, मैं कहां रहूंगी?’’

मैं ने घर के बाहर बने कमरे की ओर इशारा किया तो उस ने नाकभौं सिकोड़ते हुए कहा, ‘‘मैडम, कुछ तो मेरी इज्जत का खयाल करो. ऐसे अंधेरे कमरे में मुझे नहीं रहना. मुझे अटैच्ड बाथरूम वाला कमरा दो.’’

उस की निगाहें मेरे कमरे पर थीं. मैं ने सकुचा कर कहा, ‘‘काजोल, ऐसा तो कोई कमरा है नहीं. वैसे दिन भर हम हसबैंडवाइफ तो बाहर ही रहेंगे. तुम ऐसा करो, ड्राइंगरूम में रह लेना. यहां तो कूलर भी है.’’

काजोल को बात पसंद तो नहीं आई, पर उस ने सामान ड्राइंगरूम के कोने में रख दिया. मुझे लगा कि आते ही वह रसोई देखना चाहेगी, पर वह देखना चाहती थी बाथरूम. मेरे बाथरूम में देर तक नहाने के बाद वह बोली, ‘‘मैडम, चाय पीने का मन हो रहा है. रसोई कहां है?’’

मैं खुश हो गई, ‘‘हांहां, चाय के साथ समोसे भी बना लो. हसबैंड भी घर लौटते होंगे.’’

उस का मुंह बन गया, ‘‘मैडम, आज सुबह की ट्रेन से आई हूं. आज चाय पी कर रेस्ट करूंगी. रात को खाने पर कुछ सिंपल बनवा लेना.’’

मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया उस ने. खैर, मुझ से पूछपूछ कर उस ने चाय बनाई. उसे चूंकि ज्यादा दूध वाली चाय पसंद थी, इसलिए वह चाय मुझे पीनी पड़ी. इस के बाद वह ड्राइंगरूम में एक चादर बिछा कर लेट

गई. मुझे हिदायत दे गई कि 8 बजे से पहले उसे न उठाऊं.

पतिदेव घर पर पधारे. जैसे ही ड्राइंगरूम में उन के चरण पड़े, मैं ने उन्हें रोक लिया और मेड की तरफ इशारा किया, ‘‘देखो, कौन आया है.’’

पतिदेव ने मेरी तरफ बेचारगी वाली निगाह डाली और कहा, ‘‘चाय मिलेगी?’’

अभी 8 नहीं बजे थे, इसलिए चाय मैं ने ही बनाई, यह कहते हुए कि रात से पूरा काम मेड करेगी.

8 बजे तक किसी तरह जज्ब किया अपने को. ठीक 8 बजे उसे उठाया तो वह कुनमुन करती उठी, ‘‘मैडम, यह क्या, इतना शोर मचा दिया. मेरा तो सिर दर्द करने लगा.’’

खैर, मेरे बाथरूम में हाथमुंह धो कर वह किचन में आई. तब तक मैं घर में बची सब्जियां, लौकी, तुरई और आलू निकाल चुकी थी.

काजोल ने जैसे ही सब्जियों की तरफ निगाह डाली, हिकारत से बोली, ‘‘मैडम, आप को एजेंसी वाले ने बताया नहीं कि मैं लौकी और तुरई जैसी सब्जियां न बनाती हूं, न खाती हूं?’’

मैं ने बात संभालते हुए कहा, ‘‘मैं आज सुबह से बिजी थी न, इसलिए दूसरी कोई सब्जी ला नहीं पाई. जाने दो, आज दालचावल खा लेंगे, वैसे भी सुबह का खाना रखा है फ्रिज में.’’

जब मैं पतिदेव को दिन का खाना माइक्रोवेव में गरम कर के खिलाने लगी, तो उन्होंने मेरी तरफ करुणा भाव से देखा और बोले, ‘‘सुमी, कोई बात नहीं. मुझे तो जो खिला दोगी, खा लूंगा.’’

मैं ने कुछ मनुहार से कहा, ‘‘बस, आज की बात है. कल से रोज तुम्हें चाइनीज, कौटीनैंटल और मुगलई खाना मिला करेगा.’’

कल के सपनों में खोई जो सोई, तो नींद दरवाजा खटखटाने की आवाज से भी नहीं खुली. पतिदेव जाग गए. दरवाजा खोला तो सामने काजोल खड़ी थी.

‘‘सर, मुझे जमीन पर लेट कर नींद नहीं आ रही, आप कहें तो सोफे पर सो जाऊं?’’

पतिदेव ने हां में सिर हिला दिया. करते भी क्या. सुबह उठी, तो ड्राइंगरूम में सोफे पर काजोल को सोया देख, पारा चढ़ने लगा. इस से पहले मैं कुछ कहती, पतिदेव ने मेरा हाथ दबा कर धीरे से कहा, ‘‘बेचारी को जमीन पर नींद नहीं आ रही थी, मुझ से पूछा तो मैं ने ही कहा कि…’’

मैं चुप रह गई. चाय का पानी चढ़ा कर काजोल को आवाज लगाई. सुबह का नाश्ता कौन बनाएगा?

काजोल की मरी सी आवाज आई, ‘‘मैडम, देखिए बुखार आ गया है मुझे.’’

स्कूल से लौटी, तो काजोल सुबह वाली अवस्था में मुंह ढांपे सो रही थी. मैं ने घर के अंदर कदम रखा, तो लगा पता नहीं किस के घर आई हूं. रात से गंदा पड़ा घर वैसा ही था. कमरे में कूड़ा, ड्राइंगरूम में अस्तव्यस्त मेड का बिस्तर, किचन में हर तरफ गंदगी, सिंक में जूठे बरतन.

मैं ने किसी तरह अपने को नियंत्रित कर मेड एजेंसी में फोन घुमाया. हीरो लाइन पर आया, तो उसे अपने मन की पीड़ा बताई कि यह क्या, मेड तो घर आते ही बीमार पड़ गई.

हीरो ने उत्तेजित आवाज में कहा,

‘‘मैडम, हम ने तो आप को मेड बिलकुल सहीसलामत दी थी. आप उसे जल्दी से अच्छा करिए. वैसे भी हम डिफैक्टिव पीस वापस नहीं लेते.’’

मैं भन्नाती हुई रसोई में पहुंची. काजोल लड़खड़ाती हुई उठी, ‘‘मैडम, सुबह से चक्कर आ रहे हैं. लगता है आप के घर का पानी मुझे सूट नहीं किया.’’

मैं उस के सामने बरतन साफ करने लगी. पर उस ने उफ तक नहीं की. मैं ने

मरता क्या न करता की शैली में अपनी कालोनी के डाक्टर को घर बुलवा लिया. डाक्टर पुराने थे, पर काजोल की बीमारी नई थी. वे थक कर बोले, ‘‘वैसे तो कोई बीमारी नहीं लगती, पर एहतियात के लिए 2-4 गोलियां लिख देता हूं.’’

दवा खाने के बाद वह फिर सो गई. शाम ढली और रात की बारी आ गई. मुगलई, चाइनीज के सपने देखती हुई मैं बुरी सी शक्ल बनाती हुई रितु ऐंड फैमिली की बाट जोहने लगी. अब बाहर से खाना मंगवाने के अलावा चारा क्या था?

ठीक समय पर मेहमान आए. घर की हालत देख रितु पहले तो चौंकी, फिर मुझे कोने में बुला कर आवाज को भरसक मुलायम बनाते हुए बोली, ‘‘सुमी, देखो कुछ लोग होते हैं, जो नौकरों से काम निकलवाते हैं और कुछ लोग नौकरों के लिए काम करते हैं.’’

मेरा चेहरा फक्क पड़ गया. मेरा हाथ दबा कर वह कुछ धीरज बंधाती हुई बोली, ‘‘तुम रहने दो सुमी. तुम से मेड नहीं पाली जाएगी. इस के चोंचलों में चोंच दोगी, तो जल्द ही यह तुम्हारे बैडरूम में सोने लगेगी और तुम इस के कपड़े धोती नजर आओगी.’’

मैं रोआंसी हो उठी. वाकई 2 दिन के जद्दोजहद के बाद मुझे यह समझ में आने लगा कि फुलटाइम मेड नामक बला से निबटना मुझे नहीं आएगा.

जातेजाते रितु मुझे जरूरी टिप दे गई, ‘‘देखो, अगर तुम इसे निकालोगी, तो तुम्हें डिपौजिट के पैसे नहीं मिलेंगे. कुछ ऐसा करो कि यह खुद छोड़ जाए.’’

बात मेरी समझ में आ गई. रात में मैं ने काजोल का बिस्तर बाहर वाले कमरे में डलवा दिया और कुछ सख्त स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर कह रहे थे, तुम्हें छूत की बीमारी हो सकती है. तुम अलग रहो. खानापीना मैं तुम्हें कमरे में पहुंचा दूंगी.’’

रितु की तरकीब कामयाब रही. अगले ही दिन काजोल की तबीयत ठीक हो गई. न सिर्फ वापस उस ने ड्राइंगरूम में डेरा जमाना चाहा, बल्कि सुबह उठ कर नाश्ता बनाने को भी तैयार हो गई. मैं ने उस के हाथ का बना मंचूरियन और कोफ्ते खाए, तो लगा कि जल्द ही बिस्तर पर पड़ जाऊंगी.

मैं ने कमर कस ली कि डिपौजिट के पैसे तो वापस ले कर रहूंगी. अत: न मैं ने उसे ड्राइंगरूम में आने दिया, न उसे लौकी और तुरई के अलावा बनाने के लिए कोई तीसरी सब्जी दी. चौथे दिन एजेंसी से फोन आ गया, ‘‘मैडम, आप आ कर डिपौजिट के पैसे वापस ले जाइए. काजोल आप के यहां काम नहीं करना चाहती.’’

इस बार मेरा सीना कुछ चौड़ा हुआ. मैं ने काजोल को बस के पैसे दिए और टू व्हीलर से जा कर अपने डिपौजिट के पैसे वापस ले आई. लौटते हुए मैं ने अग्रवाल स्वीट हाउस से गरमगरम समोसे खरीद लिए. आखिर अपनी औकात पर तो आना ही था.

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