अपने बैडरूम से आती गाने की आवाज सुन कर कंवल तड़प उठा था. तेज कदमों से चल कर बैडरूम में पहुंचा तो देखा सामने टेबल पर रखे म्यूजिक सिस्टम की तेज आवाज पूरे घर में गूंज रही थी. गाना वही था जिसे सुनते ही उस का रोमरोम जैसे अपराधभाव से भर जाता. उस का मन गुनाह के बोझ से दबने लगता. आंखें नम हो जातीं और दिल बेचैन हो उठता.
‘‘मेरे महबूब कयामत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी...’’ गाने के स्वर कंवल के कानों में पिघले सीसे के समान फैले जा रहे थे. उस ने दोनों हाथों से कानों को बंद कर लिया. पूरा शरीर पसीने से तरबतर हो उठा.
तभी गाने की आवाज आनी बंद हो गई. उस ने चौंक कर आंखें खोलीं तो सामने विशाखा खड़ी थी.
‘‘कंवल, यह क्या हो गया तुम्हें?’’
विशाखा उस के चेहरे से पसीना पोंछती घबराए स्वर में बोली.
‘‘तुम जानती हो विशाखा यह गाना मेरे दिल और दिमाग को झंझड़ कर रख देता,’’
‘‘फिर क्यों सुनते हो यह गाना?’’
कंवल अब तक कुछ संयमित हो चुका था.
‘‘मुझे माफ कर दो कंवल, गाना सुन कर मैं बंद करने आ रही थी पर शायद मुझे देर हो गई,’’ विशाखा के चेहरे पर गहरे अवसाद की छाया लहरा रही थी.
‘‘बुरा मान गई विशाखा? दरअसल, गलती मेरी ही है. इस में तुम्हारा क्या दोष है?’’ कह कर कंवल कमरे से बाहर निकल गया.
विशाखा उस के पीछे आई तो देखा वह गाड़ी ले कर जा चुका था. वह जानती थी कि अकसर कंवल ऐसे में लंबी ड्राइव पर निकल जाता है. वह एक गहरी सांस ले कर घर के अंदर चली गई.