‘‘मनीष ने आज औफिस में ठीक से लंच भी नहीं किया था. बस 2 कौफी और 1 सैंडविच पर पूरा दिन गुजर गया था. रास्ते में भयंकर ट्रैफिक जाम था. घर पहुंचतेपहुंचते 8 बज गए थे.
मनीष ने घर पहुंचते ही कपड़े बदले और अपनी पत्नी भावना से बोला, ‘‘जल्दी खाना लगायो यार, कस कर भूख लगी है.’’
भावना मुंह बनाते हुए बोली, ‘‘इतना क्यों चिल्ला रहे हो, गुगु अभी सोई है. रसोई में खाना लगा हुआ है, ले लो.’’
खाने को देखते ही मनीष की भूख गायब हो गई. पानीदार तरी में कुछ तोरी के टुकड़े तैर रहे थे और सूखे आलुओं में कहींकहीं काला जीरा दिख रहा था. मनीष का मन हुआ थाली फेंक दे. बिना स्वाद किसी तरह से मनीष ने निवाले गटके और बाहर जाने के लिए जैसे ही चप्पलें पहन रहा था कि भावना दनदनाते हुएआ गई और बोली, ‘‘अब फिर से कहां जा रहे हो?’’
मनीष खीजते हुए बोला, ‘‘इतने स्वादिष्ठ खाने के बाद पान खाने जा रहा हूं.’’
भावना ने भी मानो आज लड़ाई करने की ठान रखी थी. बोली, ‘‘हां मालूम है साहब कुछ और करने जा रहे हैं. बच्चे क्या अकेले मेरे हैं? सारा दिन बच्चे देखो, रसोई में पकवान बनाओ और फिर इन के नखरे.’’
मनीष की कार न चाहते हुए भी हैदराबाद डिलाइट के सामने खड़ी थी. वहां की चिकन बिरयानी उसे बेहद पसंद थी. अंदर बेहद भीड़ थी. बस एक टेबल खाली थी जहां पर पहले से एक लड़की बैठे हुए बिरयानी ही खा रही थी.
मनीष लड़की के सामने बैठते हुए बोला, ‘‘क्या मैं यहां बैठ सकता हूं?’’