अगले दिन वसु ने मां से बात की, ‘‘मांजी, कल जब विभोर ने चांटा मारा था आप ने कुछ कहा क्यों नहीं? क्या यह व्यवहार उचित था?’’
मां ने बड़ा सपाट उदासीन सा जवाब दिया, ‘‘वसु, मैं तो कभी किसी को कुछ नहीं कह पाती. इस के पिताजी थे, उन से भी कभी कुछ नहीं कहा.’’
शायद मां भी कभी न बोल पाई हों. अब वसु को खुद ही कुछ सोचना था. ऐसे तो जीवन जीना मुश्किल है.
‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए मायके जा रही हूं. विभोर को बता देना.’’
‘‘बेटा तू ही बता दे विभोर को,’’ मां ने कहा तो वसु ने न चाहते हुए भी विभोर को फोन कर दिया. विभोर औफिस में था. एक बार नहीं उठाया तो दोबारा मिला दिया.
विभोर बिना कुछ सुने चिल्लाने लगा, ‘‘ऐसी क्या आफत आ गई जो दोबारा फोन मिला दिया?’’
वसु ने बहुत शांत स्वर में इतना ही कहा, ‘‘मैं मायके जा रही हूं,’’ विभोर और कुछ कहता वसु ने फोन काट दिया. जानती थी वसु, विभोर आदतन चिल्लाएगा ही.
बिना प्रतिक्रिया दिए वसु मायके आ गई. विभोर के घर की व्यवस्था अब चरमराने लगी, जिसे वसु अब तक संभाले हुए थी.
‘‘विभोर मेरी दवाई खत्म हो गई है.’’
‘‘अच्छा मां.’’
‘‘और किचन का सामान, फल भी खत्म हो गए हैं,’’ मां ने धीमे से कहा. जानती थीं अब तक सारा वसु ही करती थी. जैसेतैसे कर इतने दिन बाई के सहारे निकल गए थे. वसु के जाने के बाद विभोर ने वसु को फोन नहीं किया था. अहमवश चाहता था खुद ही वापस आए. लेकिन वसु अब विभोर को सम?ाना चाह रही थी.