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‘‘क्वैक, क्वैक,’’ चित्रा के कानों में मोनाल पक्षी की आवाज पड़ी. वह कमरे से निकल बालकनी में जा खड़ी हुई. सायंकाल आसपास के पेड़ों पर अनेक पक्षी आ कर बैठते. चित्रा को ओक के पेड़ पर बैठा मोनाल और उस की सुरीली आवाज बहुत भाती थी. चित्रा ऊंचे पहाड़ों, पेड़ों, पौधों, फूलों और पक्षियों से नाता जोड़ उन के साए में प्रसन्न रहने का पूरा प्रयास कर रही थी. उस के लिए पहाड़ों की जीवनशैली नई थी. 2 मास पहले ही वह कसौली आई थी.

नई जगह, नया घर, नई नौकरी. चित्रा जीवन को नई दिशा दे कर अपने दुख को कम करने के प्रयास में लगी थी. पुराना सब भूल जाए, इसलिए ही तो सुदूर हिमाचल प्रदेश के कसौली शहर में नौकरी करने आ गई, जहां कोई उस से पूछने वाला नहीं होगा कि शादी हुई या नहीं? हुई तो पति के साथ क्यों नहीं हो? वह तलाक शब्द सब के सामने बारबार दोहरा कर लोगों के चुभते सवालों का सामना नहीं करना चाहती थी.

कभी दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल में जौब थी, इसलिए कसौली जैसे छोटे नगर के थ्रीस्टार में फ्रंट डैस्क की नौकरी पाना आसान रहा, लेकिन बीते समय से दूर हो पाना इतना आसान कहां?

दूर पगडंडी पर बस्ता उठाए 2 बच्चों को जाते देख उसे अपना बचपन याद आने लगा.

2 साल बड़े इकलौते भाई मोहित से हमेशा उसे कमतर आंका जाता था. बचपन में अध्यापक मातापिता से शिकायत करते कि मोहित जैसे प्रतिभावान भाई की बहन इतनी साधारण क्यों?

न परीक्षा में वाहवाही पाने योग्य प्रदर्शन कर पाती है और न ही किसी अन्य क्षेत्र में कोई कमाल कर सकी है. छठी, 7वीं कक्षा तक आतेआते यह भी स्पष्ट होने लगा कि गणित और साइंस में ट्यूशन टीचर की सिरखपाई के बावजूद वह साधारण अंक ले कर ही उत्तीर्ण हो पा रही है. पिता ने इस बात पर जब उसे फटकार लगाई तो सुबकती हुई चित्रा मां के पास पहुंच गई.

‘‘मोहित सब कर लेता है, तो फिर तू क्यों नहीं? जरूर तेरे भाग्य में कुछ अड़चन है. कल बाबा को बुला कर बात करती हूं.’’

मां की दृष्टि में प्रत्येक समस्या का समाधान बाबा चंदनदास ही थे. जबतब वे उन के घर आता और बड़े रोब से अपनी सेवा करवाते. चित्रा अनमनी हो जाती. मेवा डली खीर, पूरी, साग, भाजी बना कर परोसते हुए मां उसे एक दासी सरीखी लगती थीं.

चंदनदास सदैव भविष्य में किसी अनहोनी की ओर इशारा कर मां को आतंकित करते थे. इस का उपाय दानदक्षिणा बता कर खूब खर्चा करवाते. मां का उन पर अडिग विश्वास था. उन का मानना था कि बाबाजी के पावन चरण जब भी घर में पड़े हैं कुछ शुभ ही हुआ है. मां की इतनी श्रद्धा होने पर भी चित्रा को न जाने क्यों बाबा का मुसकरा कर देखना अच्छा नहीं लगता था. जब भी वह मां के कहने पर उन को प्रणाम करने जाती तो बाबा की आंखें उसे अपने शरीर पर फिसलती सी लगती थीं. चित्रा को उन की एक अन्य आदत बहुत खटकती थी. मोहित भैया के प्रणाम करने पर वे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते, जबकि उसे अपने सीने से लगा कर दुलार करते.

उस ने मां से एक बार यह कहा भी मां ने उलटा उसे ही लताड़ दिया, ‘‘पापा डांटें तब भी तुम्हें दिक्कत है और बाबाजी प्यार करें तो भी परेशानी है. दिमाग को एक तरफ रखा करो.’’

चित्रा की अनिच्छा के बाद भी मां ने फोन कर बाबाजी को उस की पढ़ाई वाली समस्या बताई और घर बुला लिया. इस बार चंदनदासजी ने उसे भी मोहित के समान सिर पर हाथ रख आशीष दिया तो चित्रा को कुछ राहत मिली, लेकिन अगले ही पल जब सुना कि वे उसे अपने मठ में बुलाएंगे वह अनमनी, बेचैन सी हो गई.

‘‘बाबाजी आप यहीं कह दें मुझे जो कहना है,’’ चित्रा हिम्मत जुटा कर बोली.

‘‘यह तो बिलकुल बेवकूफ है, आप बुरा न मानिएगा,’’ मां बाबाजी के समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ी हो गईं.

वे कुछ और भी कहना चाह रही थीं कि चंदनदास ने मुसकराते हुए हाथ के इशारे से रुकने को कहा. चित्रा को संबोधित करते हुए वे बोले, ‘‘बेटा, तुम्हारी स्मरणशक्ति विकसित नहीं हो रही. मैं कुछ मंत्र वहां अपने सामने पढ़वा कर कंठस्थ करवाऊंगा. इस से 2 लाभ ये होंगे कि एक तो तुम कुछ भी पढ़ कर मस्तिष्क में रखना सीखोगी, दूसरा मंत्रशक्ति के प्रभाव से जीवन में सफलता प्राप्त करोगी.’’

अगले दिन चित्रा को मां के साथ बाबा के मठ जाना पड़ा. चंदनदास के एक शिष्य ने कुछ मंत्र लिख कर दिए और कहा कि इन को कंठस्थ करने का प्रयास करे. चित्रा को बारबार पढ़ कर भी 1-2 मंत्र ही याद हुए. चंदनदास ने सुन कर संतुष्टि दर्शाई और चित्रा को घर भेज दिया. यह सिलसिला 4 दिन चला. चित्रा का डर धीरेधीरे कम हो रहा था.

उस दिन अकेले ही मठ जाने को तैयार हो गई. इस बार शिष्य ने उसे सीधा चंदनदास के पास भेज दिया. चंदनदास मखमली बिस्तर पर तकिए का सहारा लिए बैठे थे. हाथ में कोई पेयपदार्थ लिए घूंटघूंट पीते हुए चित्रा की ओर एक लंबी मुसकान फेंकने के बाद चंदनदास ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया. कुटील मुसकराहट और चंदनदास के मुख पर आई वासना की भंगिमा चित्रा को असहज करने लगी. कमरे में सुनहरे बल्बों के चकाचौंध उजाले में चित्रा की धड़कनें असामान्य होने लगीं, कंठ सूख रहा था. वह संभलते हुए चंदनदास के निकट जा कर बैठी तो बाबा की आंखों में तैर रही लोलुपता स्पष्ट दिखने लगी.

‘‘मैं कल आऊंगी, सिर में दर्द हो गया अचानक,’’ चित्रा उठ कर जाने लगी.

मगर उस के कमरे के द्वार तक पहुंचने से पहले ही बत्तियां बुझ गईं. अकबका कर अंधेरे में दौड़ी तो दीवार से टकरा कर गिर पड़ी. चंदनदास ने उसे कस कर भींच लिया. कमरे में फैली अगरबत्ती की महक थी या चंदनदास ने कोई इत्र लगाया हुआ था, चित्रा को उबकाई आने लगी. कुछ. देर बाद उस के अनावृत शरीर के नीचे नर्म गद्देदार बिस्तर था और ऊपर कठोर, घृणित दानव. चित्रा का दम घुट रहा था. असहनीय पीड़ा से उस की चीख निकल गई. इस के बाद नहीं पता उसे कि क्या हुआ? जब चेतना लौटी तो वह मठ के एक कमरे में थी. मां सिरहाने बैठी थीं. सफेद कपड़े पहने एक महिला उस की तीमारदारी कर रही थी.

‘‘बिजली चली गई तो डर के मारे यह दौड़ पड़ी थी… थोड़ीबहुत चोट आई. कुछ दिनों बाद ठीक हो जाएगी,’’ उजले परिधान वाली मां से कह रही थी.

उस दिन घटी घटना ने चित्रा को भीतर तक तोड़ दिया. दिनरात उसे भय सताता था कि बाबा ने मां को फुसला कर यदि फिर उसे बुला लिया तो क्या करेगी. मगर चित्रा को चंदनदास का सामना दोबारा नहीं करना पड़ा. उस के पिता का ट्रांसफर लखनऊ हो गया.

चित्रा उस घटना को भूल तो नहीं सकती थी लेकिन प्रयास अवश्य करती थी. अपना ध्यान हटाने के लिए उस ने पढ़ाई को अधिक से अधिक समय देना शुरू किया तो खोया आत्मविश्वास फिर से लौटने लगा. 12वीं के बाद होटल मैनेजमैंट की प्रवेश परीक्षा में अच्छा रैंक आ गया. आईएचएम लखनऊ में दाखिला ले कर डिगरी पूरी करने के बाद दिल्ली के एक फाइवस्टार होटल में प्लेसमैंट भी हो गई.

एक ओर अपनी नई नौकरी को ले कर उत्साहित थी तो दूसरी ओर इस बात की शंका थी कि मां फिर से चंदनदास कांड न आरंभ कर दें. दिल्ली में मां के साथ उन की एक सहेली के घर ठहरी चित्रा की यह चिंता जल्द ही दूर हो गई. उसे पता लगा कि चंदनदास का डेरा वहां से उखड़ चुका है. एक दिन मां की सखी को यह कहते सुना, ‘‘जितने मुंह उतनी बातें. कोई कहता है बाबाजी तपस्या के लिए कहीं दूर निकल गए हैं तो कोई यह भी कह रहा था कि पुलिस के डर से कहीं छिप गए हैं.’’

मां यह सुन कर उदास हो गईं तो चित्रा ने चैन की सांस ली. जौब करते हुए चित्रा को 1 साल ही बीता था कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जाने लगा. चित्रा इस बात को ले कर भयभीत रहती कि चंदनदास ने उस के साथ जबरन जो संबंध बनाया था, उस के विषय में पति को कुछ पता तो नहीं लग जाएगा? कहीं उसे ही चरित्रहीन न समझने लगे भावी पति. मातापिता जोरशोर से मैट्रिमोनियल साइट्स खंगाल रहे थे.

इंदौर का रहने वाला अभिषेक उन को पसंद आ गया. अभिषेक ने बीबीए के बाद एमबीए किया था और किसी कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्य कर रहा था. अभिषेक व उस के परिवार वाले चाहते थे कि चित्रा नौकरी छोड़ दे क्योंकि रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को समझदार, सुंदर लड़की की तलाश थी. चित्रा असमंजस में थी. अंत में उस ने विवाह करने के पक्ष में निर्णय ले लिया. सोच रही थी कि मातापिता को कब तक टालेगी? पति को प्रेम भी करेगी और दोस्त भी मानेगी. संभव है तब कोई समस्या न आए. वह चाहती थी कि अभिषेक के साथ विवाहपूर्व कुछ समय साथ बिता ले जिस से आपस में बनी झिझक की दीवार गिरने लगे.

चित्रा का यह प्रस्ताव न उस के मातापिता को पसंद आया और न ही अभिषेक ने शादी से पहले मिलने में रुचि दिखाई. चित्रा ने मन को सम?ा लिया कि नौकरी तो शादी के बाद करनी नहीं, ऐसे में अभिषेक के साथ समय बिताने का भरपूर अवसर मिलेगा. विवाह के बाद सर्वस्व लुटा दूंगी उस पर. मखमली सपने देखते हुए वह अभिषेक की पत्नी बन गई.

विवाह की पहली रात को कमरा सुगंधित पुष्पों से सजा था. शैंडलेयर्स का तीव्र प्रकाश, फूलों की महक और नर्म बिस्तर. चित्रा का अवचेतन मन बरसों पुरानी घटना को याद कर भय से कांप उठा. अभिषेक ने कमरे में आ कर

2 गिलासों में सौफ्ट ड्रिंक डाल एक गिलास चित्रा की ओर बढ़ा दिया. अभिषेक के हाथ में गिलास और तकिए के सहारे बैड पर उसे अधलेटा देख चित्रा को उस में चंदनदास की छवि दिखने लगी. घबराहट के कारण उसे चक्कर आने लगा. जब अभिषेक ने उसे अपने पास खींचा तो वह चिल्ला उठी. नाराजगी दिखा कर डांटते हुए अभिषेक ने उस के मुंह पर अपना हाथ रख नियंत्रण में रहने को कहा. चित्रा का दम फूलने लगा. अभिषेक उस रात चुपचाप सो गया.

3 रातें बीत गईं. अभिषेक नाराज ही रहा. दिन में चित्रा उस के साथ खुल कर बातें करने का प्रयास करती, प्यार जताती, लेकिन अभिषेक मुंह फेर लेता. रात को उस के पास लेटे हुए चित्रा चिंता में घुलती रहती. अभिषेक कभी क्रोध से बड़बड़ाते हुए तो कभी भावभंगिमाओं के सहारे अपनी अप्रसन्नता व्यक्त करता.

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