चित्रा के मनमस्तिष्क में अनवरत अभिषेक और ईशान के बीच के अंतर की सोच जारी थी. चैल में दुनिया का सब से ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड देखते हुए चारों ओर का नयनाभिराम दृश्य चित्रा को ईशान के खुशदिल व्यक्तित्व सा लग रहा था तो वाइल्ड लाइफ सैचुरी देखते हुए जंगली जानवर अभिषेक का व्यवहार याद दिला रहे थे. जिस प्रकार ईशान पूरे मनोयोग से उसे स्थानस्थान पर ले जाते हुए विस्तृत जानकारी दे रहा था, वैसी आशा तो वह अभिषेक से कर ही नहीं सकती थी. जानकारी अभिषेक को भी थी लेकिन वह चित्रा से ज्यादा बातचीत करने और कुछ भी समझनेसमझने के चक्कर में नहीं पड़ता था. ईशान बारबार पूछ रहा था कि वह थक तो नहीं गई?
चाहती हूं.’’
‘‘मैं सुनना चाहता हूं, चिकोरी.’’
‘‘दिल जो न कह सका, वही राज ए दिल कहने की रात आई...’’
‘‘कितना रोमाटिक सौंग है. मुझे याद है मीना कुमारी पर फिल्माया गया है. तुम्हें बोल याद हैं तो अंतरा भी सुनाओ न,’’ ईशान ने आग्रह किया.
‘‘नगमा सा कोई जाग उठा बदन में, झंकार की सी थरथरी है तन में...’’ चित्रा की मीठी आवाज में नशा घुल रहा था. आकंठ प्रेम में डूबे उस के मादक स्वरों में ईशान भी डूबता चला गया.
चित्रा ने कमरे में जल रही खुशबूदार मोमबत्ती बुझ दी. जगमग रोशनी से डर कर नहीं, न ही उस की खुशबू से दूर भगाने का. आज वह बाहर से आ रही चांद, सितारों की रोशनी में उस रात को जीना चाहती थी जो उस के जीवन में कभी आई ही नहीं थी. ईशान के तन से आती हुई उस महक में डूब जाना चाहती थी जो उसे उन्मादी बनाए जा रही थी.