वह झल्लाता हुआ अपने कमरे में वापस आया और पत्रिका जोर से मेज पर पटक दी, ‘‘क्या पड़ी थी मुझे जो पत्रिका देने चला गया था. अपनी तरफ से कुछ करो तो यह नखरे करने लगती है. सुरेश के सामने ही बुराभला कह डाला. मेरी बला से जहन्नुम में जाए.’’
फिर कुछ संयत हो कर उस ने दराज में रखी डायरी उठाई और उस में कुछ लिखने के बाद 2-4 बार उलटीसीधी कंघी बालों में चलाई और फिर कौलर को सीधा करता हुआ बाहर चल दिया कि आज खाने का वक्त गुजार कर ही घर लौटूंगा. देखूं, मैडम क्या करती हैं. अभी तो कई जोरदार पत्ते मेरे हाथ में हैं.
ड्राइंगरूम से बाहर निकलते हुए उसे सुरेश के जोरदार ठहाके की आवाज सुनाई पड़ी. वह पलभर को ठिठका. गुस्से की एक लहर सी दिमाग में उठी, पर फिर सिर झटक कर तेज कदमों से बाहर निकल आया.
जाड़ों के दिन थे. 11 बजे भी ऐसा लग रहा था, जैसे अभी थोड़ी देर पहले ही सूरज निकला हो. वैसे भी रविवार का दिन होने से सड़क पर ट्रैफिक कम था. उसे छुट्टी की खुशी के बदले कोफ्त हुई. औफिस खुला रहता तो वहीं जा बैठता.
बाइक पर बैठ कर कुछ दूर जा कर फिर दाएं मुड़ गया. इस समय लोधी गार्डन ही अच्छी जगह है बैठने की, वहीं आराम किया जाए. फिर वह एक बैंच पर जा लेटा. सामने का नजारा देख उसे अक्षरा की याद आने लगी. जिधर देखो जोड़े गुटरगूं में लगे थे.
वह सोचने लगा कि सभी तो कामदेव के हाथों पराजित हैं. मैं ने भी यदि शादी न की होती तो चैन रहता. आज छुट्टी होते हुए भी यों पार्क में तो न लेटना पड़ता. दोस्तों के साथ कहीं घूमता. अब अक्षरा से शादी के बाद किसी के यहां अकेले भी नहीं जा सकता.
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