अपनी पत्नी को उस ने समझया भी कि सुरेश जरा घटिया आदमी है. उस से अधिक हंसनाबोलना अच्छा नहीं. पर उस की अक्षरा उसी को बेवकूफ कहने लगी, ‘‘वह जो भी हो, मेरा क्या ले लेता है. तुम्हारा ही तो दोस्त है, हमारा परिवार तो वही है. घर में और कौन है, जिस से हंसूंबोलूं? देवर से जरा बात कर लेती हूं तो जलने लगे हो.’’
वह अक्षरा पर किसी बात के लिए दबाव या जोर डालना पसंद नहीं करता. केवल सलाह दे देता. यह सुन कर वह चुप ही रहा.
आज सुरेश 10 बजे ही आ टपका. आते ही फरमाइश की, ‘‘भाभी, आज केक खाने का मूड है.’’
भाभी ने झट ओवन चलाया और केक बनाना शुरू कर दिया. छोटी कड़ाही चढ़ाई और हलवे की तैयारी शुरू हो गई. वह अपने कमरे में बैठा देवरभाभी के संवाद सुन कर गुस्से से भुन रहा था कि यही देवीजी हैं, उस दिन कहा कि आज जरा कटलेट तो तलना तो तुरंत नाकभौं चढ़ा कर कहने लगीं कि अभी स्कूल की कौपियां जांचनी हैं. कल उन्हें वापस करना है. पर यह लफंगा सुरेश उस से अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया.
केक को ले कर अपनी नाराजगी प्रकट करने के लिए वह एक नई पत्रिका उठा कर रसोई की तरफ चला. एक बालटी को उलटा कर रसोई में ही जमे बैठे सुरेश को अनदेखा करता वह पत्नी से बोला, ‘‘लो, इस की पहली कहानी बहुत अच्छी है, जरा पढ़ कर देखना. अरे, यह क्या बना रही हो?’’
पत्नी ने केक पर ध्यान लगाए हुए कहा, ‘‘केक खाने का मूड है सुरेश देवरजी का.’’
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