लेखक- दीपा गुलाटी

महक की विदाई हो रही थी. मां का साया न होने की वजह से पिता उसे भरे गले से समझा रहे थे, ‘‘अपनी गृहस्थी संजो कर रखना और सभी को प्यार देना.’’

तभी रजनी भाभी ने अपनी ननद महक को गले लगाते हुए ताना सा मारते हुए कहा, ‘‘अब वही तेरा घर है. सभी को इज्जत देना और वहीं मन लगाना.’’

फिर अपने दोनों भाइयों रोहित व मोहित और दूसरे सगेसंबंधियों से मिल कर महक विदा हो गई.

मोहित को अपनी बहन से बहुत प्यार था, इसलिए वह उस के विदा होने पर उदास हो गया था. महक की यह तीसरी शादी थी. वह जानता था कि अगर महक अपने मायके रहती तो भाभियां उसे जीने न देतीं, इसलिए वह चाहता था कि उसे हर खुशी मिले.

रात को सोते समय मोहित महक की पुरानी यादों में खो गया था.

महक की पहली शादी एक अमीर परिवार में रितेश के साथ हुई थी.

2 ननदों व एक देवर से भरापूरा परिवार था. रितेश कारोबारी था. अमीर घराना था. 2 साल बाद ही महक की जिंदगी में एक नन्ही परी आई थी. समय जैसे पंख लगा कर उड़ रहा था.

8 सालों में दोनों ननदों की शादी हो गई और देवर अपने भाई के साथ कारोबार में हाथ बंटाने लगा. तभी अचानक रितेश की हार्टअटैक से मौत हो गई. महक के लिए यह दर्द सहन करना मुश्किल हो गया था. वह रितेश को बहुत प्यार करती थी, इसलिए वह डिप्रैशन में चली गई.

कुछ समय बाद सास ने महक के भाइयों को बुला कर कह दिया, ‘महक गुमसुम सी हो गई है. वह अपनी बेटी का भी ध्यान नहीं रख पाती है. तुम कुछ दिनों के लिए उसे अपने साथ ले जाओ.’

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