कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
0:00
12:24

पूरब को उस की खामोशी अच्छी नहीं लग रही थी पर वह कुछ कह कर उस के मन को दुखी नहीं करना चाहता था. सारी स्थिति को स्वयं ही संभालते हुए उस ने कहा, ‘‘मौसी, आप का बेटा हमें भी बहुत पसंद है. अब आप आज्ञा दें तो शगुन दे कर इसे अपना बना लें.’’

मौसी ने तुरंत कहा, ‘‘यह तुम्हारा ही है पूरब.’’

प्रसन्नचित्त पूरब रसोई में जा कर श्रावणी से बोली, ‘‘श्रावी, चलो अपनी बेटी के शगुन की रस्म पूरी करो. तुम्हें ही मां और चाची का फर्ज निभाना है.’’

श्रावणी कुछ कहने जा रही थी पर उसी समय विविधा आ गई तो उस ने मन की बात बाहर नहीं निकाली. विविधा आते ही श्रावणी से लिपट गई. बोली, ‘‘हाय मम्मी, अवनी दी अब हमें छोड़ कर चली जाएंगी...’’

श्रावणी के मन में अचानक कुछ घनघना उठा. इतने वर्षों से इस घर का हर काम अवनी ने ही संभाला हुआ था. अब क्या होगा, कैसे होगा? श्रावणी ने विविधा और पूरब को देखा. वह बोला, ‘‘विवू ठीक कह रही है. बहुत थोड़ा समय है जिस में हमें अवि को जी भर कर लाड़ देना है.’’

पूरब जैसे ही घूमा देखा द्वार पर अवनी खड़ी थी और उस के आंसू झरने लगे थे.

‘‘बाहर क्यों खड़ी है, चल अंदर आ जा,’’ अचानक श्रावणी ने कहा. वह सुबकती हुई आई तो श्रावणी ने आंचल से उस के आंसू पोंछ डाले.

‘‘आज तो खुशी का दिन है, फिर रो क्यों रही है?’’

अवनी उन के गले से लग गई तो धीरेधीरे श्रावणी ने भी उसे बांहों में भर लिया.

‘‘चुप हो जा और विवू इसे अच्छी सी साड़ी पहना कर तैयार कर. हम अनिकेत के टीके की थाली बना रहे हैं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
 
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
  • 2000+ फूड रेसिपीज
  • 6000+ कहानियां
  • 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
  • 24 प्रिंट मैगजीन
गृहशोभा इवेंट्स में इन्विटेशन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...