छवि ने जब तक बच्चा नहीं देखा, वह बेचैन रही. देखने के बाद वह आराम से सो गई. छवि ने बच्चे का नाम प्रियम रखा.
देखतेदेखते छवि की आंखों का तारा प्रियम 3 साल का हो गया. उस की मीठी बोली छवि को अतीत की कड़वाहट भूलने में मदद कर रही थी. सुखदा भी सेवानिवृत्त हो कर कलकत्ता हमेशा के लिए आ गई. सुखदा को अब, बस, छवि के विवाह की चिंता थी. पर दिल से चोट खाई छवि विवाह के लिए राजी नहीं हो रही थी. सुखदा हर सभंव प्रयास कर रही थी कि किसी तरह छवि का घर बस जाए. पर छवि के हठ के आगे वह विवश हो जाती थी. छवि, बस, काम की तलाश में रहती थी.
एक दिन देविका ने छवि को बताया, ‘कलकत्ता के एक बहुत बडे बिजनैसमैन हैं अजीत माहेश्वरी. वे करीब 40 साल के हैं. उन की पत्नी की 2 महीना पहले कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. उन की 7 साल की बेटी है. जब से मां की मौत हुई है, बच्ची बहुत जिद्दी हो गई है. वह बच्ची किसी की बात नहीं मानती. किसी एक बात की जिद करती है, तो उसी को रटती रहती है. उसे कुछ समस्या है. अभी तक जितनी गवर्नैंस रखी गईं, ठीक से देख नहीं पाई हैं. अभी उस के पास कोई नहीं है. उसी को देखने के लिए उन्हें एक अच्छी गवर्नैंस की जरूरत है. खानापीना, रहना सब फ्री. गवर्नैंस को वहीं रहना होगा, तुम यह काम करोगी?’
‘छवि कैसे कर पाएगी, दोदो बच्चों की देखभाल?’ सुखदा ने चिंता ब्यक्त की.
‘दीदी, छवि को एक कोशिश करनी चाहिए. इंटररव्यू दे कर बच्ची से मिल ले, पता चल जाएगा,’ देविका ने सुखदा को समझाया.
‘ठीक है मासी. मां, तुम चिंता मत करो, मैं कर लूंगी,’ छवि ने कहा.
देविका जब माहेश्वरी मैंशन पहुंची तब वहां एक कमरे में बिठा कर उस से कहा गया, ‘बैठिए, सर अभी आ रहे हैं.’
देविका पहली बार इंटरव्यू दे रही थी, मन में खासी घबराहट थी. तभी अजीत माहेश्वरी आ गए. गठा हुआ शरीर, सुंदर नाकनक्श, लंबा कद, घने बाल, गोरा रंग, नीले रंग का सूट, आंखों पर पतले फ्रेम का चश्मा और चेहरे पर तेज, जो उस के ब्यक्तित्व को आकर्षक बना रहे थे. छवि उन से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उन्हें देख दो पल देखती रही, फिर उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं.
‘आप तो बहुत कम उम्र की हैं?’ माहेश्वरी ने कहा.
इस बात का छवि क्या उत्तर दे, वह चुप रही.
‘आप की प्रोफाइल में लिखा है आप का एक बेटा है, वह कितने साल का है?’
‘4 साल का होने जा रहा है.’
‘आप को मेरी बेटी के बारे में पता है न, इतने छोटे बच्चे को ले कर आप मेरी बेटी प्रृशा को कैसे हैंडल कर पाएंगी?’
‘जैसे एक मां अपने 2 बच्चों की देखभाल करती है.’
न जाने कैसे छवि यह कह गई. उसे अपने ही इस कहे पर आश्चर्य भी हुआ.
माहेश्वरी इस उत्तर से खुश हो गया, बोला, ‘गुड़, आई एम इम्प्रैस्ड. ठीक है, आप कल से आ सकती हैं. चलिए, मैं आप को बेबी से मिला दूं.’
‘जी नहीं, मैं आज बेबी से नहीं मिलूंगी, कल जब आऊंगी, तभी मिलूंगी.’
छवि माहेश्वरी मैंशन पहुंच जाती है. उस का कमरा प्रृशा के कमरे की बगल में है. कमरे में सुविधा के सारे सामान हैं. एक औरत जो अपना नाम सुतपा बताती है, कहती है, साहब ने मुझे आप के बेटे के साथ रहने के लिए कहा है. बगल के कमरे से लगातार एक बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही है.
‘नहीं, नहीं खाना है मुझे, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगी.’
छवि उस से कहती है, फिलहाल वह उस के साथ वहां चले जहां से लगातार बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही थी. छवि प्रियम को खिलौने दे कर खेलने को कहती है, ‘यहीं रहना, यहां से कहीं जाना नहीं.’
वह सुतपा के साथ प्रृशा के कमरे में आती है. कमरे में उस के पापा माहेश्वरी भी बारबार प्रृशा को ब्रेकफास्ट खिलाने की कोशिश कर रहे थे. छवि ने उन का अभिवादन किया. उन्होंने छवि की ओर देख कर इशारे से प्रृशा को देखने को कहा. उस दृष्टि में आग्रह के अंदर करुण याचना थी. छवि ध्यान से बच्ची को देखने लगी, 7 साल की दुबली, गोरी सी, छोटे बालों वाली प्यारी सी लड़की, ब्रेकफास्ट न करने को कह रही थी. लगभग आधा दर्जन नौकरानियां बारबार आ कर उस से खाने को कह रही थीं. जितनी बार उस से खाने को कहा जाता, उतनी बार वह न कर देती.
माहेश्वरी ने दोबारा जैसे फिर कहना चाहा, छवि ने इशारे से मना कर दिया. छवि ने आया से कहा, ‘जब वह कह रही है मैं नहीं खाऊंगी, तब तुम लोग क्यों जिद कर रहे हो. जब उस की इच्छा होगी, वह खुद खा लेगी.’
प्रृशा छवि की आवाज़ सुन छवि की ओर देखने लगी. तब छवि ने कहा, ‘बेबी, आप का मन ब्रेकफास्ट करने का नहीं है न?’
‘नहीं,’ उस ने तेज स्वर में कहा.
‘ठीक है, अब आप को कोई तंग नहीं करेगा. जब आप का मन होगा, तब आप कर लेना,’ छवि ने प्यार से कहा.
‘आप कौन हैं?’
‘डौल, ये तुम्हारी…’
‘मैं आप के साथ बात करने और खेलने के लिए आई हूं,’ छवि ने माहेश्वरी की बात काटते हुए कहा. माहेश्वरी का मोबाइल बजा, वह बाहर चला गया. तब तक प्रियम अपने कमरे से निकल कर छवि के पास आ कर खड़ा हो गया था.
‘ये कौन है?’
‘ये मेरे साथ है, मैं इसे आप के साथ खेलने के लिए लाई हूं.’
छवि ने प्रृशा से बात करना शुरू किया. वह लगातार बोलती जा रही थी. छवि उस की हर ऊटपटांग बात का भी जवाब देती जा रही थी. मां के बाद इतने धीरज से किसी ने उस की बातों को नहीं सुना था, इसलिए वह खुश हो गई. उस के मूड को देख कर छवि ने पूछा, ‘अच्छा, अब बताओ, क्या खाओगी.’
पृशा ने खुशी से अपनी इच्छा बताई.
छवि की समझ में आ गया कि वह बिन मां की बच्ची की है. उस बच्ची के दिल की बात समझने वाला कोई नहीं है. घर का हर एक ब्यक्ति उस के साथ, बस, अपना कर्तव्य निभाता है. पिता की समझ में भी ज्यादा कुछ नहीं आता है या हो सकता है उन की पत्नी ने उन्हें कभी इन सभी चीजों में ज्यादा न घसीटा हो. बेबी अगर एक बार मना करती है, फिर घर के दर्जनों नौकर उसे उसी काम की जिद करने लगते हैं, इस से वह चिढ़ जाती है. उसे प्यार और ममता की जरूरत है और बिना जरूरत का प्यार और ममता सिर्फ एक मां दे सकती थी.