नरेंद्र के जाते ही जूही सोच में मग्न पलंग पर ढेर हो गई. उसे न आकर्षक ढंग से सजाए 2 कमरों के इस मकान में रखे फूलदार कवर वाले सोफों में आकर्षण महसूस हो रहा था, न जतन से संवारे परदों में. दीवारों पर लगे सुंदर फोटो और एक कोने में सजे खिलौने जैसे मुंह चिढ़ा रहे थे. उसे लग रहा था जैसे कि नंदा की शरीर की महक अभी कमरे की आबोहवा में फैली हुई है और कभी प्रिय लगने वाली यह महक अब उसे पागल बनाए बिना न रहेगी. दिमाग की नसें जैसे फटना चाहती थीं. हवादार कमरे की खिड़कियों से आती सर्दी की हवाएं जैसे जेठ की लू बन कर रह गई थीं. जो कुछ हुआ था, उस की उम्मीद कम से कम जूही के भोले मन को कतई न थी.
हुआ यह कि कठोर अनुशासन वाली सास के घर में बाहर की हवा को तरस गईर् जूही में, नरेंद्र की नौकरी लगते ही अपना अधिकारबोध जाग गया कि अब वह इस घर के एकमात्र कमाऊ बेटे की पत्नी है. सास, ससुर, देवर, ननदें सभी उस के पति की कमाई पर गुलछर्रें उड़ाने को तैयार हैं. लेकिन वह उन्हें गुलछर्रे नहीं उड़ाने देगी और उड़ाने भी क्यों दे, आखिर इन लोगों ने उस के साथ कौन सी नेकी कर दी है. ननदें एकएक चीज ठुनकठुनक कर ले लेंगी, देवर गले पड़ कर अपनी जरूरतें पूरी करा लेंगे, पर यह नहीं सोचेंगे कि भाभी भी जीतीजागती इंसान है, उस का भी अपना सुखदुख है, उस की भी बाहर घूमनेफिरने की इच्छा होती होगी.