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उस दिन रात में लगभग 12 बजे फोन की घंटी बजी तो नींद में हड़बड़ाते हुए ही मैं ने फोन उठाया था और फिर लड़खड़ाते शब्दों में हलो कहा तो दूसरी ओर से मेरे दामाद सचिन की चिरपरिचित आवाज मुझे सुनाई दी: ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं सा मां.’’

मेरी सब से प्रिय सहेली शुभ का बेटा सचिन पहले मुझे ‘आंटी’ कह कर बुलाता था. मगर जब से मेरी बेटी पूजा के साथ उस की शादी हुई है वह मुझे मजाक में ‘सा मां’ यानी सासू मां कह कर बुलाता था. उस रात उस की आवाज सुन कर मैं अनायास ही खुश हो गई थी और बोल पड़ी थी :

‘‘हां, बोलो बेटे...क्या बात है? इतनी रात गए कैसे फोन किया...सब ठीक तो है?’’

‘‘हां हां, सबकुछ ठीक है सा मां... पर आप को एक सरप्राइज दे रहा हूं. पूजा और मम्मी कल राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली आप के पास पहुंच रही हैं.’’

‘‘अरे वाह, क्या दिलखुश करने वाली खबर सुनाई है...और तुम क्यों नहीं आ रहे उन के साथ?’’

‘‘अरे, सा मां...आप को तो पता ही है कि मैं काम छोड़ कर नहीं आ सकता. और इन दोनों का प्रोग्राम तो अचानक ही बन गया. तभी तो प्लेन से नहीं आ रहीं. मैं तो कल से आप का फोन ट्राई कर रहा था. मगर फोन मिल ही नहीं रहा था...तभी तो आप को इतनी रात को तंग करना पड़ा... ये दोनों कल 10 साढ़े 10 बजे निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर उतरेंगी... राजू भैया को लेने के लिए भेज देना.’’

‘‘हां हां, राजू जरूर जाएगा और वह नहीं जा सका तो उस के डैडी जाएंगे... तुम चिंता मत करना.’’

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