कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

बतियाते हुए वे दोनों होस्टल के गलियारे तक पहुंच चुके थे, पूर्वी भी अब तक सलिल से काफी फ्रैंडली हो गई थी. इतना ही नहीं मन ही मन उसे चाहने भी लगी थी. रूम नंबर 4 आते ही पूर्वी ने रूम की घंटी बजाई, दरबाजा एक लड़की ने खोला. यह पूर्वी की रूममेट मंदाकिनी थी.

‘‘हाय मैं मंदाकिनी.’’

‘‘और मैं पूर्वी.’’

‘‘तुम मुझे मंदा कह सकती हो,’’ कह मंदा ने भेदती नजरों से सलिल की तरफ देखा जो पूर्वी का बैग अपने कंधे पर टांगे खड़ा था.

सलिल ने पूर्वी को उस का बैग थमाया और उसे बाय कहा, ‘‘सी यू टेक केयर,’’ और चला गया.

सलिल के जाते ही मंदा ने पूर्वी को घूरते हुए पूछा, ‘‘क्या यह तेरा बौयफ्रैंड था?’’

‘‘नहीं,’’ पूर्वी ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर तेरा भाई होगा जो तेरी फिक्र कर रहा था.’’

‘‘नहीं.’’

इस बार भी पूर्वी के मुंह से नहीं शब्द सुन कर मंदा बुरी तरह ?ाल्ला गई. कहने लगी, ‘‘भाई भी नहीं है, बौयफ्रैंड भी नहीं है तो यह लड़का आखिर है कौन, जो तेरा इतना खयाल रख रहा था कि तेरा बैग लटका कर तुझे यहां तक छोड़ने आया?’’

‘‘बस फ्रैंड है मेरा?’’

‘‘सिर्फ फ्रैंड या उस से कुछ अधिक?’’

पूर्वी ने कहा, ‘‘कहा न बस फ्रैंड है मेरा,’’ मंदाकिनी के बारे में अधिक कुछ जाने बिना पूर्वी का मन उसे अधिक कुछ बताने से डर रहा था पर मंदा से अनबन भी नहीं कर सकती, रूममेट जो है उस की.

‘‘अच्छा, चल तू फ्रैश हो ले, मैं तुझे अच्छी सी चाय पिलाती हूं. मगर हां मैं तुझे रोज चाय बना कर पिलाने वाली नहीं. वो क्या है कि तू आज नईनई आई है तो तेरा वैलकम तो बनता ही है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...