‘‘विभा चाय ले आओ बढि़या सी,’’ घर के अंदर घुसते ही सुधीर ने पत्नी को आवाज लगातार कहा और खुद पिता के निकट बैठ गया.
‘‘पापा, देखो 4 कमरे निकल आए हैं
और अलग स्पेस भी,’’ सुधीर ने उत्सुकता से पिता के सामने नक्शा बिछा कर कहा.
‘‘बढि़या, अच्छा यह बता कि ड्रांइगरूम का साइज क्या है? छोटा नहीं होना चाहिए. दिनभर वहीं बैठना होता है मुझे,’’ पिता ने नक्शे को देखते हुए कहा.
‘‘अरे पापा, यह देखो पूरे 15 बाई 15 का निकल रहा है. ध्यान से देखो न. 2 बैडरूम
14 बाई 12 के और एक 12 बाई 12 का,’’
सुधीर की आवाज में अलग खनक थी.
‘‘बस सब बढि़या हो गया. बस अब काम शुरू करवा दे प्लाट पर. इस दड़बे से निकलें बाहर,’’ पिता ने कहा.
‘‘रसोई का क्या साइज है?’’ विभा ने पूछा.
‘‘अरे यार तुम चाय रखो पहले. बहुत थक गया हूं,’’ सुधीर ने कहा.
सुधीर और ससुर को चाय पकड़ा विभा फिर नक्शे को देखने लगी.
‘‘8 बाई 8 की रसोई तो बहुत छोटी बनेगी,’’ विभा बोली.
‘‘आठ बाई 8 की रसोई छोटी नहीं होती और वैसे भी तुम्हें कौन सा रसोई में खाट बिछानी है, खाना ही तो बनाना है,’’ चाय का घूंट भरते हुए सुधीर बोला.
‘‘मेरा तो पूरा दिन वहीं बीतता है बस खाट ही नहीं बिछाती.
गरमी में कितनी घुटन हो जाती है तुम क्या जानो,’’ विभा के स्वर में उदासी थी.
‘‘अरे यार, मम्मी ने पूरी जिंदगी इस 6 बाई 6 की रसोई में बीता दी. उन्होंने तो कभी शिकायत नहीं की छोटी रसोई की,’’ सुधीर चिढ़ते हुए बोला.
‘‘कभी खड़े हो कर देखना जून की गरमी में. खुद पता चल जाएगा मैं शिकायत कर रही हूं या परेशानी बता रही हूं,’’ विभा बोली.