सुबहके समय जब मेड आती और घंटी बजाती तो निकिता नींद से जागती थी पर आज मेड के छुट्टी होने के कारण सुबह उस की नींद देर से खुली.
उनींदीं आंखों से सामने दीवार घड़ी में समय देखा 8 बज गए थे. निकिता हबड़बड़ी में उठी कि मेड आने पर तो 7 बजे उठना ही पड़ता था, सारे काम आराम से निबट जाते थे, लेकिन अब सब कैसे मैनेज होगा? झाड़ूपोंछा, बरतन उस पर देवेश के लिए लंच भी बनाना है.
बेटे मयंक की औनलाइन क्लास का भी समय हो रहा है. उसे नाश्ता भी देना है. लंच में तो आज उसे पिज्जा खाना था. मैं तो कैंटीन से ले कर कुछ खा लूंगी, लेकिन देवेश का क्या करूं. उन्हें तो घर का खाना ही चाहिए. मन में सोचा, देवेश को बोलती हूं कि आज लंच के समय औफिस की कैंटीन से कुछ ले कर खा लेंगे.
यही सोचतेसोचते निकिता ने देवेश को आवाज लगाई, लेकिन रिस्पौंस नहीं मिला. सोचा शायद सुना नहीं होगा. निकिता ने फिर आवाज लगाई. नो रिस्पौंस.
निकिता को गुस्सा आ गया कि सारा काम पड़ा है और ये जनाब हैं कि सुन ही नहीं रहे हैं जैसे कानों में रूई ठुंसी हो.
वह लिविंगरूम की ओर गई. अंदर जाने पर देखा यह क्या? सारा कमरा ही अस्तव्यस्त है, लिविंगरूम के वार्डरोब से आधे कपड़े अंदर और आधे बाहर बिखरे पड़े हैं और देवेश फोन पर किसी से बात कर रहे हैं.
यह सब देख निकिता ने हाथ झटक तलखी में बोला, ‘‘देवेश यह सब क्या है?’’
देवेश ने निकिता की ओर ध्यान नहीं दिया और फोन पर ही बात करते रहे. जवाब नहीं मिल ने पर निकिता ने फिर बोला, लेकिन देवेश फोन पर ही लगे रहे.