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‘‘आप मांजी को अकेला ही छोड़ कर आए हैं, यह तो ठीक नहीं है,’’ फिर पता नहीं क्या सोच कर मैं ने साहिल से कहा, ‘‘आप काम कीजिए, मैं आप के घर जा रही हूं. मुझे आज वैसे भी कुछ खास काम नहीं, आप मांजी को फोन कर दीजिए.’’

पूरे हक से कही मेरी यह बात सुन कर साहिल हैरान था पर उस ने मुझे मना नहीं किया. अगले 30 मिनट बाद मैं मांजी के पास थी. मैं ने उन को दवा दी और उन के पास बैठी रही. वे बोलीं, ‘‘बेटा, अब मैं ठीक हूं, साहिल तो ऐसे ही परेशान हो जाता है.’’

‘‘मांजी, आप साहिल की शादी कर दो, ताकि आप की सेवा करने के लिए कोई आप के पास रहे,’’ मैं ने मांजी के सिर को दबाते हुए कहा.

मांजी ने आंखें बंद करते हुए कहा, ‘‘यह सपना तो मैं कब से देख रही हूं पर साहिल को कोई पसंद ही नहीं आती. कहता है कि आजकल की लड़कियां सिर्फ दिखावटी जिंदगी जीती हैं, सचाई तो उन में है ही नहीं.’’

कुछ देर में मांजी की आंख लग गई और मैं साहिल के बारे में सोचती रही. उस में कोई दिखावा नहीं था. सादगी भरी थी उस की जिंदगी. शाम को साहिल के घर लौटते ही मैं वापस आ गई.

अगला दिन रविवार था, औफिस की छुट्टी थी. मेरा मन हुआ कि मांजी की तबीयत का हाल पूछ लूं. मैं ने साहिल को फोन किया तो मांजी ने ही फोन उठाया. उन्होंने बहुत जोर दिया कि मैं लंच उन के साथ ही करूं. तो मैं ने मान लिया क्योंकि घर पर अकेले रहने को दिल नहीं कर रहा था. मैं झट से तैयार हो कर मांजी के पास पहुंच गई. दरवाजे की कालबैल बजाते ही साहिल को अपने सामने खड़ा पाया.

सफेद कुरतेपाजामे में वह बहुत आकर्षित लग रहा था. मेरी नजर उस पर 1 मिनट टिकी फिर मैं ने नजरें हटा ली. सारा दिन मांजी और साहिल के साथ ही बीता. रात का खाना भी उन के साथ ही खाया. रात को काफी देर हो गई तो साहिल मुझे घर छोड़ आया. उस रात मुझे सिर्फ साहिल का ही खयाल आता रहा. अगले दिन मैं औफिस पहुंच कर सब से पहले साहिल के पास गई.

‘‘गुड मौर्निंग साहिल,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वेरी गुड मौर्निंग शिवी.’’

साहिल के मुंह से शिवी सुन कर मुझे अजीब लगा पर अगले ही मिनट साहिल फिर बोला, ‘‘ओ सौरी, शिवानीजी,’’ मेरा ध्यान कहीं और था.

‘‘कोई बात नहीं, पर ये शिवी कौन है?’’ मैं ने साहिल से पूछा.

‘‘अरे कोई नहीं, आप ही हैं. कल रात मांजी से आप की बात कर रहा था तो मांजी ने आप को प्यार से बारबार शिवी कहा था. इसलिए मेरे मुंह से यह निकल गया, सौरी,’’ साहिल ने थोड़ा घबरा कर कहा पर मैं उस के मुंह से शिवी सुन कर बहुत खुश थी. हम ने उस दिन भी लंच साथ किया और शाम को घर आने से पहले मैं साहिल के घर मांजी से मिलने भी गई.

धीरेधीरे यह एक सिलसिला सा बन गया. अब साहिल मुझे शिवी ही कहता था. हम साथसाथ लंच करते, साथसाथ घर वापस आते. हमारी नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. मुझे पता नहीं चला कि कब मुझे साहिल का साथ इतना पसंद आने लगा कि मैं भूल गई कि मैं शादीशुदा हूं.

पुणे से वापस आ कर और भी बिजी हो गए थे. उन को अपनी मेहनत का फल भी मिला. उन का प्रमोशन हो गया. हम दोनों में बात न के बराबर होती थी. लेकिन जब कभी उन के औफिस की कोई पार्टी वगैरह होती थी तो मैं उन के साथ जरूर जाती थी और उन के दोस्त जब मेरी तारीफ करते थे तो उन का चेहरा चमक उठता था.

उस दिन साहिल का फोन आया कि मांजी की तबीयत बहुत खराब हो गई है, वह उन को अस्पताल ले जा रहा है. मैं ने अमन को फोन कर कह दिया कि मेरी एक सहेली की मां बहुत बीमार हैं, मैं उन को देखने जाऊंगी, इसलिए रात को देर से आऊंगी. अमन ने सिर्फ ओके कह कर फोन काट दिया. मांजी आईसीयू में थीं. डाक्टर ने कहा कि यहां कोई और नहीं रुक सकता, आप कल सुबह आना. मैं समझबुझ कर साहिल को घर ले आई. रात काफी हो चुकी थी. साहिल मांजी को ले कर बहुत परेशान था. उस को ऐसी हालत में छोड़ कर मैं घर कैसे जाऊं, समझ नहीं आ रहा था. पर घर तो जाना ही था.

‘‘अब मैं चलती हूं साहिल, कल सुबह आती हूं,’’ मैं ने अपना पर्स उठाते हुए कहा.

‘‘प्लीज मत जाओ शिवी, मुझे तुम्हारी जरूरत है,’’ साहिल की आंखों में आंसू थे, उस ने मुझे अपनी ओर खींच लिया.

‘‘साहिल मुझे जाने दो रात बहुत हो चुकी है,’’ मैं ने अपनेआप को छुड़ाते हुए कहा. लेकिन चाह कर भी वहां से घर नहीं आ पाई. सारी रात साहिल सिर्फ मेरी गोद में सिर रख कर रोता रहा और कहता रहा कि वह मांजी और मेरे बिना नहीं जी पाएगा.

मैं सुबह घर जा रही थी तो लग रहा था कि अमन की बातों को झेलना पड़ेगा. पर घर पर अमन अभी तक सो रहे थे. मैं नहाने चली गई. वापस आई तो देखा अमन अब भी सो रहे थे. मैं किचन में चली गई. इतने में साहिल का फोन आया. उस ने कांपती हुई आवाज में मुझे मांजी के न होने की खबर दी. मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. दिल किया कि जोर से रो लूं पर खुद पर नियंत्रण किया. साहिल कैसे सहेगा इस दुख को. सोचते हुए मैं ने अमन को जगाया और बताया कि मेरी सहेली की मांजी नहीं रहीं.

‘‘अरे ये तो बुरा हुआ,’’ उन्होंने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘मैं जा रही हूं अमन, आप प्लीज नाश्ता बाहर कर लेना,’’ मैं ने जल्दी से उन को कहा.

‘‘हां, ठीक है. अरे सुनो, आज पवन के घर पार्टी है तुम जल्दी आ जाना,’’ अमन ने चादर मुंह पर लेते हुए कहा तो मैं थोड़ी सोचती हुई वहीं खड़ी रह गई कि ये इंसान हैं या पत्थर. किसी की मां नहीं रहीं और इन को पार्टी में जाना है. पर इन का भी क्या कुसूर ये तो अपनों का दर्द ही नहीं समझते, परायों का क्या समझेंगे.

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