उस रविवार की सुबह चाय पीने के बाद नीरज आराम से अखबार पढ़ रहा था. तभी उस की सास मीनाजी ने अचानक उलाहना सा देते हुए कहा, ‘‘अब तुम मेरी बेटी को पहले जितना प्यार नहीं करते हो न दामादजी?’’
‘‘क्या बात करती हैं आप, सासूमां? अरे, मैं अब भी अपनी जान के लिए आसमान से चांदसितारे तोड़ कर ला सकता हूं,’’ अखबार पर से नजरें हटाए बिना ही नीरज ने कहा.
अपने 3 साल के बेटे राहुल को कपड़े पहना रही संगीता ने अपनी मां से उत्सुक लहजे में पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’
मीनाजी ने गहरी सांस छोड़ने के बाद जवाब दिया, ‘‘बड़ी सीधी सी बात है, मेरी भोली गुडि़या. जब कोई पति दूसरी औरत से इश्क फरमाने लगे तो यह सम झ लेना चाहिए कि अब वह अपनी पत्नी को पहले की तरह दिल की गहराइयों से नहीं चाहता है.’’
राहुल को कपड़े पहना चुकी संगीता परेशान सी अपनी मां की बगल में आ बैठी. नीरज ने भी गहरी सांस छोड़ कर अखबार एक तरफ सरका दिया. फिर चुपचाप मांबेटी दोनों को उत्सुक अंदाज में देखने लगा.
‘‘यों खामोश रहने से काम नहीं चलेगा, दामादजी. मैं ने तुम्हारे ऊपर आरोप लगाया है. अब तुम अपनी सफाई में कुछ तो कहो,’’ मीनाजी की आंखों में शरारत भरी नाराजगी नजर आ रही थी.
‘‘सासूमां, पतिपत्नी के बीच गलतफहमी पैदा करने वाला ऐसा मजाक करना सही नहीं है. मेरी जिंदगी में कोई दूसरी औरत है, यह सुन कर अगर आप की इस भोलीभाली बेटी का हार्टफेल हो गया तो हम बापबेटे का क्या होगा?’’ नीरज ने मुसकराते हुए शिकायत सी की.
‘‘आप मजाक छोडि़ए और मु झे यह बताइए कि क्या आप सचमुच किसी दूसरी औरत से इश्क लड़ा रहे हो?’’ संगीता ने पति से तनाव भरे स्वर में पूछा.
‘‘बस, इतना ही भरोसा है तुम्हें मेरे प्यार पर?’’ नीरज फौरन यों दुखी दिखने लगा जैसे उस के दिल को गहरी ठेस लगी हो, ‘‘अपनी मम्मी के मजाकिया स्वभाव को तुम जानती नहीं हो क्या? अरे पगली, वे मजाक कर रही हैं.’’
‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं कर रही हूं, दामादजी,’’ मीनाजी ने अपने मुंह से निकले हर शब्द पर पूरा जोर दिया.
‘‘सासूमां, अब यह मजाक खत्म कर दो वरना संगीता सवाल पूछपूछ कर मेरी जान ले लेगी,’’ नीरज ने हंसते हुए अपनी सास के सामने हाथ जोड़ दिए.
मीनाजी उठ कर इधरउधर घूमते हुए गंभीर लहजे में बोलीं,
‘‘मुझे यहां आए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में भी मैं ने तुम्हारे अंदर आए बदलाव को पकड़ लिया है, दामादजी. अब तुम्हारी आंखों में संगीता के प्रति चाहत के भाव नजर नहीं आते… बस काम की ही बातें करते हो तुम उस से… इसीलिए मैं मन ही मन यह सोचने पर मजबूर हो गई कि तुम दोनों के बीच पहले हमेशा नजर आने वाली रोमांटिक छेड़छाड़ कब, कहां और क्यों खो गई है?’’
नीरज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘सासूमां, हमारी शादी को 5 साल हो गए हैं. अब हमारे रोमांटिक छेड़छाड़ करने के दिन बीत चुके हैं.’’
‘‘क्या तुम रितु के साथ भी रोमांटिक छेड़छाड़ नहीं करते हो, दामादजी?’’
‘‘यह रितु कौन है?’’ संगीता और नीरज ने एकसाथ पूछा तो मीनाजी रहस्यमयी अंदाज में मुसकराते हुए नीरज के सामने आ खड़ी हुईं.
कुछ देर खामोश रह कर मीनाजी ने सस्पैंस और बढ़ा दिया. फिर कहानी सुनाने वाले अंदाज में बोलीं, ‘‘चूंकि मैं अपनी लाडली के विवाहित जीवन की खुशियों को ले कर चिंतित हो उठी थी, इसलिए मैं ने कुछ देर पहले तुम्हारे फोन में आए सारे मैसेज तब पढ़ डाले जब तुम बाथरूम में नहाने गए हुए थे.’’
‘‘यह तो बड़ा गलत काम किया है सासूमां, पर सब मैसेज पढ़ लेने के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो आप को मायूसी तो बहुत हुई होगी,’’ नीरज ने उन का मजाक उड़ाया.
‘‘मेरे हाथ कुछ लगता भी कैसे, दामादजी? रितु के सारे मैसेज तो वहां से तुम ने हटा रखे थे, लेकिन…’’
‘‘लेकिन क्या, मम्मी?’’ संगीता ने उंगलियां मरोड़ते हुए परेशान लहजे में पूछा.
‘‘लेकिन संयोग से उसी वक्त रितु का ताजा मैसेज आ गया. मैं ने उसे पढ़ा और सारा मामला मेरी सम झ में आ गया. लो, तुम भी पढ़ो अपने पति परमेश्वर के फोन में आए उन की इस रितु डार्लिंग का मैसेज,’’ मीनाजी ने मेज पर रखा नीरज का फोन उठा मैसेज निकालने के बाद संगीता को पकड़ा दिया.
संगीता ने मैसेज ऊंची आवाज में पढ़ा, ‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. मूवी के टिकट वापस कर दो… आई लव यू, रितु.’
मैसेज पढ़ने के बाद संगीता नीरज की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी. उस की शक्ल बता रही थी कि वह किसी भी क्षण नीरज के साथ झगड़ा शुरू कर सकती है.
मीनाजी ने व्यंग्य भरे स्वर में नीरज से कहा, ‘‘दामादजी, अपनी चोरी पकड़ी जाने पर तुम्हें बहुत हैरान नजर आने का नाटक करते हुए ऊंची आवाज में कहना चाहिए कि संगीता, मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं. यह मैसेज किसी और के लिए होगा… गलती से मेरे फोन में आ गया है.’’
‘‘सच भी यही है, संगीता. मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं,’’ नीरज ने ऊंचे स्वर में खुद का निर्दोष साबित करने की कोशिश की.
‘‘अगर तुम उसे नहीं जानते हो तो तुम ने उस का फोन नंबर अपने फोन में क्यों सेव कर रखा है, दामादजी?’’ मीनाजी ने भौंहें चढ़ाते हुए पूछा.
उल झन का शिकार बना नीरज जब जवाब में खामोश रहा तो मीनाजी ने उसे फिर छेड़ा, ‘‘अब ‘मु झे नहीं पता कि यह नाम और नंबर
कैसे मेरे फोन में आया है’ यह डायलौग तो बोलो, दामादजी.’’
‘‘संगीता, सचमुच मु झे नहीं मालूम…’’ नीरज सफाई देते हुए झटके से रुका और फिर मीनाजी की तरफ घूम विनती कर उठा,
‘‘सासूमां, मु झे यों फंसा कर आप को क्या मिल रहा है? अब संगीता को सच बता कर यह खेल खत्म करो…’’