नीरज को फिर झटके से खामोश होना पड़ा, क्योंकि गुस्से से भरी संगीता उठ कर शयनकक्ष की तरफ चल पड़ी थी.
‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ नीरज के इस सवाल का उस ने कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘वह फिल्म के टिकट ढूंढ़ने गई है, दामादजी. कहां रखा है तुम ने उन्हें? अपने पर्स
में या ब्रीफकेस में?’’ मीनाजी ने शरारती लहजे में पूछा.
नीरज झल्ला उठा, बोला, ‘‘टिकट वहीं होंगे जहां उन्हें आप ने रखा होगा,
सासूमां. कम से कम मु झे तो बता दो कि मु झे फंसाने वाला यह सारा नाटक आप किसलिए...’’
‘‘मैं कोई नाटक नहीं कर रही हूं, दामादजी. अपनी बेटी की विवाहित जिंदगी की खुशियों और सुरक्षा को कौन मां सुनिश्चित नहीं करना चाहेगी? मैं तुम से पूछती हूं कि तुम मेरी बेटी को क्यों धोखा दे रहे हो?’’
‘‘पर सासूमां, मैं सचमुच किसी रितु को नहीं जानता...’’ नीरज को फिर झटके से खामोश होना पड़ा, क्योंकि बहुत गुस्से में नजर आ रही संगीता हाथ में फिल्म के 2 टिकट लिए ड्राइंगरूम में लौट आई थी.
‘‘अब तो सच बोल ही डालो, दामादजी. गलतियां इंसान से ही होती हैं, पर तुम अगर दिल से माफी मांगोगे तो संगीता तुम्हें जरूर माफ कर देगी,’’ मीनाजी के इस डायलौग को सुन नीरज का मन किया कि वह अपने बाल नोच डाले.
‘‘तुम्हारी मम्मी न जाने किस बात का बदला मु झ से ले रही हैं, जानेमन...’’
‘‘मु झे जानेमन मत कहो,’’ संगीता इतनी जोर से चिल्लाई कि नीरज चौंक पड़ा.
‘‘सासूमां, प्लीज मु झे अपनी बेटी के कहर से बचाओ,’’ नीरज ने फिर मीनाजी के सामने हाथ जोड़ दिए.
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