‘‘उस में एक तरह से यायावर बनना पड़ता है और मुझे भरेपूरे परिवार में रहना पसंद है.’’ ‘‘लेकिन परिवार में रहते हुए तो आप की अपनी प्रतिभा का पूर्ण विकास नहीं हो सकता?’’

‘‘अकेले रहते हुए या कहिए आज की न्यूक्लीयर फैमिली में केवल व्यावसायिक पहलू को ही प्राथमिकता मिलती है. दूसरी सभी योग्यताएं या शौक तो समय की कमी या समझौतों की बलि चढ़ जाते हैं. दहेज या रूढि़वादी वाले मामलों को छोड़ दें तो संयुक्त परिवारों में रहने वालों के न्यूक्लीयर फैमिलीज में अधिक तलाक होते हैं,’’ मधुलिका मुसकराई, ‘‘वैसे अगर आप में प्रतिभा है और आप को संतुलित वातावरण मिलता है तो फिर आप की प्रतिभा को कहीं भी निखरने में देर नहीं लगेगी.’’ ‘‘फैमिली और प्रोफैशनल लाइफ क्लैश

नहीं करेंगी?’’ ‘‘अगर आप दोनों में तालमेल बना कर रखें तो कभी नहीं. मगर यह तभी हो सकता है जब आप को दोनों से प्यार हो.’’

‘‘लगता है खुश रखोगी मेरे भैया को,’’ समीरा मुसकरा कर बोली. ‘‘मैं किसी व्यक्ति विशेष की खुशी में नहीं पूरे परिवार की खुशी में यकीन रखती हूं,’’ मधुलिका ने बड़ी बेबाकी से कहा.

समीरा कहां हार मानने वाली थी. बोली, ‘‘वह व्यक्ति विशेष भी परिवार के खुश होने पर ही खुश होगा...’’ ‘‘और परिवार व्यक्ति विशेष के खुश होने पर,’’ मधुलिका ने बात काटी, ‘‘दोनों एकदूसरे के पूरक जो हैं.’’

तभी खाने का बुलावा आ गया. खाना बढि़या था. सभी ने बहुत तारीफ करी. ‘‘खाने की नहीं, हमारी बिटिया की बात करिए वह पसंद आई या नहीं?’’ राघव ने पूछा.

‘‘उसे तो नपसंद करने का सवाल ही नहीं उठता अंकल,’’ समीरा चहकी. ‘‘जी हां, आप की बिटिया अब हमारी है देवराजजी,’’ कृपाशंकर ने जोड़ा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...