जाने से पहले मयंक ने कहा कि वह कल शाम को फोन करेगा, लेकिन उस का फोन 10 दिन बाद आया, ‘‘माफ करना, मैं जाने से पहले तुम्हें फोन नहीं कर सका. बौस ने राजस्थान में लोकेशन हंटिग का प्रोग्राम बना लिया और हम लोग अगली सुबह ही निकल गए,’’ मयंक ने बताया, ‘‘वहीं से घर चला गया, प्रियंक भैया की सगाई थी. फिर मुंबई से अपना सामान भी ले आया. अब अपने फ्लैट में हूं. शाम को आऊंगा तुम्हारे घर.’’

‘‘यह किस खुशी में?’’ समीरा ने पूछा. ‘‘प्रियंक भैया की सगाई और अपनी लाइन क्लीयर होने की खुशी में.’’

उस के बाद अकसर दोनों की मुलाकातें होने लगीं. फोन पर भी लंबीलंबी बातें होतीं, लेकिन शालीनता की परिधि में. कुछ महीने बाद मयंक भाई के विवाह के लिए गया तो समीरा को 1 सप्ताह काटना असहाय हो गया. वह भी आगरा चली गई. मयंक की याद या सुनील भैया का ठंडा व्यवहार और मां की अनमयंस्कता के कारण उसे घर में अच्छा नहीं लग रहा था. ‘‘भैया के लिए कोई लड़की नहीं देख रहीं मां?’’ ‘‘देखूं तो तब जब सुनील शादी के लिए तैयार हो.’’

‘‘मैं करवाती हूं भैया को तैयार,’’ और फिर समीरा ने सुनील से बात करी. ‘‘मेरी बजाय तू अपनी शादी रचवा समीरा, फिर मैं अपनी शादी की सोचूंगा,’’ सुनील ने सपाट स्वर में कहा.

समीरा ने कहना तो चाहा कि सच भैया पर कह न पाई. ‘अब जब मयंक की लाइन भी क्लीयर हो गई है तो मैं ही अपना ब्याह रचा लेती हूं,’ समीरा सोचने लगी. मयंक के लौटने के बाद उस ने उसे बताया कि भैया उस की शादी के बाद ही शादी करेंगे. अत: अब घर वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते हैं.

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