सुगंधा ताउम्र अतृप्ति के एहसास में गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही थी. लेकिन अब नहीं. जीतेजी तो वह अपना मान न रख पाई थी लेकिन मौत में ही सही, उस ने अपना मान रखा.