लिफ्ट से उतरते हुए मोनिका सोच रही थी कि इस बार भी वह रजनी से वे सब नहीं कह पाई जिसे कहने के लिए वह आज दूसरी बार आई थी. 8वीं क्लास से रजनी उस की दोस्त है. तेल चुपड़े बालों की कानों के ऊपर काले रिबन से बंधी चोटियां, कपड़े का बस्ता, बिना प्रैस की स्कूल ड्रैस, सहमी आंखें क्लास में उस के छोटे शहर और मध्यवर्गीय होने की घोषणा कर रहे थे. मोनिका को आज भी याद है कैसे क्लास की अभिजात्य वर्ग की लड़कियां उस से सवाल पर सवाल करती थीं. कोई उस की चोटी का रिबन खोल देती थी तो कोई उस का बैग कंधे से हटा देती थी. रजनी को तंग कर वे मजा लेती थीं.

ये वे लड़कियां थीं जो रिबन की जगह बड़ेबड़े बैंड लगाती थीं, जिन के सिर क्रीम और शैंपू की खुशबू से महका करते, जो कपड़े के बस्ते की जगह फैशनेबल बैग लाती थीं और पाबंदी होने के बावजूद उन के नाखून नित नई नेलपौलिश से रंगे होते थे. टीचर्स भी जिन्हें डांटनेडपटने के बदले उन से नए फैशन ट्रैंड्स की चर्चा किया करती थीं. रजनी की सहमी आंखों में सरलता का ऐसा सम्मोहन था कि मोनिका हर बार उस की मदद के लिए आगे बढ़ जाती थी. किशोरावस्था की उन की यह दोस्ती गहराने लगी. देह की पहेलियां, जीवन के अनसुलझे प्रश्न, भविष्य के सपने, महत्त्वाकांक्षाएं आदि पर घंटों बातें होती थीं उन की. समय ऐसे ही सरकता गया और डिग्री के बाद एमबीए की पढ़ाई के लिए मोनिका विदेश चली गई.

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