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अकसर चुप रहने वाली तन्वी अब उस से कभीकभी प्रतिवाद करने लगी  थी. तर्क करने लगी थी और एक दिन उस की सहनशक्ति जवाब दे गई.

‘‘यह रोजरोज की चखचख मु झ से बरदाश्त नहीं होती विजित… औफिस से थक कर आओ और घर में आ कर ये सब सुनो… किचन में मां की मदद के लिए जाना चाहती हूं तो उन के रुख से भी डर लगता है… मैं भी कब तक चुप रहूं… एक ही काम तो नहीं है मेरा… एक छुट्टी के दिन भी न शरीर को आराम, न दिलदिमाग को… या तो तुम मां को सम झाओ या फिर अलग रहने की व्यवस्था करो…’’

‘‘सम झाता तो हूं मां को तन्वी… पर क्या करूं. वे मां हैं, बुरी तो नहीं हो सकतीं हमारे लिए… बस थोड़ा पुराने विचारों की हैं… तुम उन की बातों पर ध्यान मत दिया करो…’’

‘‘कितने दिन ध्यान न दो विजित… आखिर बातें जब कानों में पड़ती हैं तो दिल में भी उतरती ही हैं… दिमाग में बसती भी हैं… कितनी बार नजरअंदाज करूं… थकामांदा दिमाग भन्ना जाता है मेरा… ऐसे घुटनभरे वातावरण में कितने दिन रह पाऊंगी…

‘‘माना कि मां हैं… दिल की बुरी नहीं होंगी… हमें प्यार भी करती होंगी… पर वाणी भी कोई चीज होती है विजित… रोजरोज ताने नहीं सुने जाते… वाणी पर अकुंश रखना भी तो जरूरी है… यह उन का स्वभाव है… इंसान अपनी आदतें बदल सकता है पर अपना स्वभाव नहीं बदल सकता… उन के साथ मेरा निर्वाह नहीं हो पाएगा… मैं नहीं रह पाऊंगी उन के साथ…’’ तन्वी फैसला सा करते हुए बोली.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो तन्वी… मैं ने तुम्हें पहले ही इस बारे में स्पष्ट बता दिया था कि मैं इकलौता बेटा हूं… मैं मांबाप से अलग नहींजा पाऊंगा.’’

‘‘तब तुम ने यह नहीं बताया था कि उन का बोलना इतना बुरा है… दूसरी बातों के साथ, आदतों के साथ, दिनचर्या के साथ सामंजस्य बैठाया जा सकता है… पर बुरा बोलने वाले के साथ सामंजस्य बैठाना बहुत मुश्किल है विजित… प्यार के दो मीठे बोल, प्रसंशा के दो शब्द नहीं हैं उन के पास… हर समय कोई बुरा ही कैसे सुनता रहे, तुम्हीं बताओ… ऐसा क्या बुरा करती हूं मैं उन के साथ…’’ कहतेकहते तन्वी का स्वर भर्रा गया.

विजित मानसिक उल झन का शिकार होता जा रहा था. मां किसी भी तरह से अपने स्वभाव से बाज नहीं आती थीं और तन्वी जबतब उस पर अपनी भड़ास निकाल देती.

उसे सम झ नहीं आता क्या करे, क्या न करे. समस्या का कोई समाधान उसे न दिखता. अलग घर भी लेता है तो क्या कहेंगे नातेरिश्तेदार, समाज कि विजित उन्हीं बेटों में से एक निकला, जो विवाह के बाद बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ कर अलग हो गया, पर वे यहां आ कर उस की रात दिन की उल झन को नहीं सम झ सकते कि उस की मां… उस के जीवन का सब से प्यारा व अहम रिश्ता… उस के जीवन, उस के दिल का एक अभिन्न अंग कैसे अपने स्वभाव, अपनी कर्कश वाणी से उस के जीवन को छिन्नभिन्न करने पर तुली है. बीवी बुरी हो तो इंसान तलाक दे दे, पर मां का क्या करे, सोचसोच कर वह भन्ना जाता.

अपने जीवन की उल झनों ने उसे सम झा दिया था  कि रिश्तों को बनाने के लिए सिर्फ एक की कोशिश काफी नहीं होती जब तक सभी कोशिश न करें. धीरेधीरे उस के और तन्वी के बीच में भी  झगड़े होने लगे.

वह अपनी खीज और उल झन कभीकभी तन्वी पर भी उतार देता और ऐसे ही एक दिन के  झगड़े और मनमुटाव के बाद तन्वी घर छोड़ कर मायके चली गई. वह जब औफिस से घर आया और उसे तन्वी के जाने का पता चला तो उस ने तन्वी को फोन किया.

तब तन्वी ने साफ ऐलान कर दिया कि अगर उसे उस के साथ जिंदगी बितानी है तो अलग रहने की व्यवस्था करे… वह उस के मातापिता के साथ नहीं रह पाएगी. उस ने कई बार कई तरह से मनाने की कोशिश की तन्वी को. कई तरह से सम झाया पर तन्वी टश से मश नहीं हुई. वह बस अलग रहने की शर्त पर आने को तैयार थी.

तब से एक साल होने को आया था और अब तो तन्वी कहने लगी थी कि उस के लिए अगर ये सब इतना मुश्किल है तो वह चाहे तो वे दोनों अब अपना रास्ता बदल सकते हैं. सुन कर वह सन्न रह गया था. इतना बड़ा फैसला कैसे कर सकती है तन्वी इतनी छोटीछोटी बातों पर…

गुस्से के मारे कुछ समय तक उस ने तन्वी को फोन ही नहीं किया. आज उस ने बहुत दिनों बाद जब उस का दिमाग कुछ शांत हुआ तो नए सिरे से सम झाने के लिए फोन किया था पर तन्वी का जवाब जैसे का तैसा था.

छोटीछोटी बातों ने उस के जीवन में इतनी बड़ी उल झन पैदा कर  दी थी कि उसे समस्या का कोई समाधान नहीं सू झ रहा था. कैसे अपना वैवाहिक जीवन बचाए वह. खिन्न मन से वह उठा. औफिस से बाहर निकला पर घर जाने का मन नहीं किया. कुछ सोच कर अपने दोस्त शिवम के घर चला गया. शिवम उस की उल झनों को अच्छी तरह से सम झता था.

‘‘हूं… मतलब कि तन्वी अलग रहने के सिवा किसी भी सूरत में वापस आने को तैयार नहीं है…’’ चाय का कप मेज पर रखता हुआ शिवम बोला.

‘‘आएगी भी कैसे शिवम… मां का रवैया वही है… वे कुछ भी सम झाने को तैयार नहीं हैं… समस्याएं वही हैं… कुछ भी तो नहीं बदला… फिर से सबकुछ वही होगा… मां के ताने… मां का बोलना, मां का स्वभाव, अपनी वाणी पर जरा भी अकुंश नहीं रख पाती हैं वे… मां के विचारों से पार पाना तन्वी के लिए आसान नहीं…’’

‘‘एक बात कहूं विजित…’’

‘‘हूं…’’ विजित ने अपनी प्रश्नवाचक दृष्टी उस के चेहरे पर तान दी.

‘‘तू फिलहाल तन्वी की बात मान क्यों नहीं लेता… ज्यादा दूर मत जा… बस जहां तक तन्वी को मां के ताने सुनाई न दें…’’ वह हंसता हुआ बोला, ‘‘इतनी दूरी पर किराए का घर देख ले… फिलहाल अपना घर तो बचा… तू और तन्वी साथ रहोगे, पास रहोगे, तो एकदूसरे के प्यार व आकर्षण में बंध कर समस्या का हल भी निकाल लोगे…

‘‘यों दूर रह कर तो समस्या और भी विकराल हो जाएगी. दूर रह कर तो तुम दोनों के रिश्ते भी नकारात्मक हो रहे हैं… और वैसे भी तुम जबरदस्ती तो तन्वी को साथ में रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते… ये सब अपनी मरजी से हो और उन दोनों के रिश्ते खुद सुधरें… तभी साथ रहने में शांति है विजित… नहीं तो क्या फायदा है ऐसे साथ रहने से…’’

‘‘लेकिन लोग क्या कहेंगे शिवम… रिश्तेदार, समाज… मातापिता दुखी होंगे, सो अलग…’’ विजित उल झन में बोला.

‘‘तू भी वही बात करने लगा… तु झे सब की चिंता है या अपना घर बचाने की… पहले एक सीढ़ी तो चढ़… अगली सीढ़ी की बाद में सोचना… तू मातापिता को कोई छोड़ थोड़े ही न रहा है, बस उन से थोड़ी दूरी पर रहेगा… उन की एक पुकार पर उन के पास पहुंच जाएगा…’’

बात कुछकुछ विजित की सम झ में आ गई. दूसरे दिन वह तन्वी से मिलने उस के औफिस में चला गया. तन्वी को इस बात पर क्या एतराज हो सकता था. विजित ने थोड़ी दूरी पर किराए का घर देखा और ऐडवांस दे दिया. अब बात मांबाप को बताने की थी.

जैसेकि उम्मीद थी. सुनते ही मां ने तूफान मचा दिया, ‘‘मैं क्या सम झ नहीं रही थी, उस के शुरू से ही लक्षण ऐसे दिख रहे थे… बड़ों की बातें सम झने और मनाने के बजाय बुरा मान कर मायके जा बैठी… वह तो मैं सम झ ही रही थी कि बेटे को मांबाप से अलग कर के ही मानेगी पागल कही की… और तू भी कुपूत निकला, जो बीवी की बातों में आ कर मांबाप को छोड़ने पर राजी हो गया… तु झे शर्म नहीं आई ये सब कहने में… इसीलिए औलाद को बड़ा करते हैं मांबाप…’’

मां के मुंह में जो आ रहा था वह बोल रही थीं. विजित के दिल में भी बहुत कुछ आ रहा था पर इस समय मां के साथ तर्क करना व्यर्थ था और वह चाहता भी नहीं था. वह जानता था उस के मातापिता का दिल उस के इस निर्णय से बहुत दुखी हुआ होगा, पर इस के पीछे उन्हें अपनी खामियां नजर नहीं आई होंगी.

पिता ने इस बार भी कुछ न बोल कर भी अपने हावभाव से अपनी पूरी नाराजगी जाहिर कर दी. किसी तरह मन मजबूत कर वह अपने इरादे पर कायम रहा और तन्वी को ले कर अलग गृहस्थी बसा ली. घर से वह कोई सामान ले कर नहीं गया. थोड़ाबहुत सामान बाजार से खरीदा. कुछ फर्नीचर मकानमालिक का था.

कुल मिला कर उन की गृहस्थी सुचारु रूप से चलने लगी. उस की रोज की दिनचर्या थी वह औफिस से आ कर पहले रोज मांपापा केपास जाता. वहां चाय पीता. फिर अपने घर चला जाता.

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