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ड नंबर 8 के मरीज की दवाओं और इंजैक्शन के बारे में नर्स को समझ कर रिया जनरल वार्ड से निकल कर प्राइवेट वार्ड की ओर चल दी. स्त्रीरोग विभाग में 16 प्राइवेट कमरे थे, जिन में से 11 इस समय भरे हुए थे. उन में औपरेशन, डिलीवरी, गर्भपात आदि के पेशैंट थे. 1-1 पेशैंट का हालचाल पूछते हुए जब डा. रिया सब से आखिरी पेशैंट को देख कर रूम से बाहर निकली, तो बहुत थक गई थी. नर्सों के ड्यूटीरूम में जा कर उस ने हैड नर्स को कुछ पेशैंट्स के उपचार संबंधी निर्देश दिए और डाक्टर्स ड्यूटीरूम की ओर चल दी.

ड्यूटीरूम में डा. प्रशांत और डा. नीलम बैठे थे.

‘‘क्या बात है रिया, काफी थकी हुई लग रही हो? लो, कौफी पी लो,’’ कह डा. प्रशांत ने 1 कप रिया की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्स डा. प्रशांत,’’ रिया ने आभार प्रकट करते हुए कौफी ले ली.

‘‘सच में रिया तुम्हारा चेहरा काफी डल लग रहा है. तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

डा. नीलम ने पूछा.

‘‘तबीयत तो ठीक है. बस थोड़ा थक गई हूं, इसलिए सिर थोड़ा भारी है,’’ रिया ने जवाब दिया, ‘‘ओह, 4 बज गए, आज मुझे जरा जल्दी घर जाना है. मैं डा. अश्विन को बता कर घर चली जाती हूं,’’ रिया ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘डा. अश्विन तो ओ.टी. में होंगे, तुम आशा मैडम को रिपोर्ट कर के चली जाओ,’’ नीलम ने कहा और फिर चुटकी लेते हुए पूछ ही लिया, ‘‘वैसे काम क्या है, जो आज अचानक जल्दी जा रही हो? घर में खास मेहमान आ रहे हैं क्या?’’

रिया मुसकरा दी, ‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. शौपिंग करने जाना है,’’ रिया दोनों को बाय कर के आशा मैडम के कैबिन की ओर चली दी. वैसे डिपार्टमैंट के हैड डा. अश्विन थे, लेकिन चूंकि वे सर्जन थे, इसलिए उन का अधिकांश समय औपरेशन थिएटर में ही गुजरता था. उन के बाद डा. आशा थीं, जो उन की अनुपस्थिति में विभाग का काम संभालती थीं. रिया ने उन के पास जा कर अपनी प्रौब्लम बताई और छुट्टी ले कर अपनी गाड़ी से घर की ओर चल दी.

नीलम ने सही सोचा था कि रिया के यहां खास मेहमान आने वाले हैं. सचमुच वह आज इसीलिए जल्दी जा रही थी कि लड़के वाले उसे देखने आ रहे हैं. लड़का नीरज भी डाक्टर है. लंदन से कैंसर पर रिसर्च कर के आया है. उस के पिताजी का भोपाल में स्वयं का क्लीनिक है, लेकिन वह कैंसर हौस्पिटल में कार्यरत है. नीरज के पिता और्थोपैडिक सर्जन हैं और मां ने रिटायरमैंट के बाद प्रैक्टिस छोड़ दी है.

रिया 5 बजे अपने घर पहुंची. सारे रास्ते वह अनमनी सी रही. घर पहुंचते ही देखा मां दरवाजे पर ही खड़ी थीं.

‘‘कितनी देर लगा दी बेटी,’’ आते ही उन्होंने रिया को प्यार भरा उलाहना दिया.

‘‘सौरी मां, राउंड लेते हुए लेट हो गई थी,’’ रिया ने मां के गले में बांहें डाल कर मुसकराते हुए कहा.

‘‘अच्छा चल, हाथमुंह धो कर चाय पी ले,’’ मां ने कहा.

‘‘नहीं मां, मैं कौफी पी कर आई हूं. वे लोग कितने बजे आएंगे?’’ रिया ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘6 बजे तक आने को कह रहे थे,’’ मां ने घड़ी की ओर देखते हुए कहा.

रिया ने अपने जीवन का यही ध्येय बनाया था कि डाक्टर बन कर लोगों की सेवा करेगी. वह हर रिश्ते के लिए मना कर देती थी, क्योंकि वह भलीभांति जानती थी कि उस के अतीत के बारे में पता लगते ही हर कोई मना कर देगा. डाक्टर लड़की के लालच में बहुत से लोग अपने बेटे का रिश्ता ले कर आए, लेकिन रिया ने किसी से भी मिलने से इनकार कर दिया. लेकिन नीरज के पिता रिया के पिता से एक पार्टी के दौरान मिले, तो रिया से मिलने की जिद ही कर बैठे. हार कर रिया के पिता को उन्हें घर पर आमंत्रित करना ही पड़ा.

6 बजने में 5 मिनट थे, जब रिया पलंग से उठी. सिर थोड़ा हलका लग रहा था. बाथरूम में जा कर उस ने मुंह पर पानी के छींटे मारे तो थोड़ी ताजगी आई. उस ने एक साधारण सा सूट निकाला और पहन लिया. पता था रिश्ता तो होना नहीं, तो क्यों बेकार अपना प्रदर्शन करे? माथे पर बिंदी लगाई, केशों की चोटी बनाई और नीचे मां के पास आ गई. उस ने जरा भी मेकअप नहीं किया था, लेकिन वह सुंदर ही इतनी थी कि उसे किसी भी तरह का मेकअप करने की जरूरत ही नहीं थी. उस के खिले हुए रंग पर उस के सूट का गुलाबी रंग उसे एक स्वाभाविक गुलाबी आभा प्रदान कर रहा था. उस के कानों में छोटेछोटे सोने के टौप्स थे.

मां ने उसे देखा तो टोका नहीं, क्योंकि उन्हें पता था कि वह अन्य लड़कियों की तरह बननेसंवरने में विश्वास नहीं करती. उन्होंने केवल अपनी चैन निकाल कर उसे पहना दी और उस के खाली हाथों में 1-1 चूड़ी पहना दी. रिया ने विरोध नहीं किया.

ठीक साढ़े 6 बजे नीरज अपने मातापिता के साथ आ गया. वे लोग काफी सहज थे. रिया के मातापिता को थोड़ा तनाव था, लेकिन जल्द ही नीरज और उस के मातापिता के सहजसरल स्वभाव ने माहौल को एकदम सहज बना दिया. जल्द ही रिया भी औपचारिकता और झिझक छोड़ कर उन लोगों से घुलमिल गई.

नीरज की मां सीधेसादे स्वभाव की लगीं. पिताजी काफी हंसमुख थे. बातबात पर वे ठहाके लगा रहे थे. नीरज स्वयं गंभीर स्वभाव का था, परंतु उस के चेहरे पर एक सरल स्वाभाविकता थी, जिस ने सब को काफी प्रभावित किया. चायनाश्ते के बाद सब के कहने पर नीरज और रिया बाहर लौन में चले गए.

नीरज का व्यवहार और बातचीत का तरीका बेहद शालीन था. रिया को ऐसा लगा ही नहीं कि वह उस से पहली बार बात कर रही है. डाक्टरी से ले कर बगीचे के फूलों तक विभिन्न विषयों पर उस ने रिया से बात की. रिया उस से काफी प्रभावित हुई. नीरज ने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया.

रात घिरने लग गई, तब वे दोनों अंदर आ गए. कुछ देर बाद नीरज के पिताजी जाने के लिए उठ खड़े हुए. बाहर निकलते वक्त उन्होंने रिया और उस के मातापिता को चौंका दिया.

वे कार में बैठने से पहले बोले, ‘‘भई,

हमें तो रिया बहुत पसंद आई. हम ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया है. हमारी ओर से यह रिश्ता पक्का है. अब आप लोग हमें अपना फैसला बता दीजिएगा,’’ और वे चले गए.

उन के जाने के बाद रिया और उस के मातापिता 2 मिनट तक तो अवाक से वहीं खड़े रह गए. उन्हें इतनी जल्दी हुए फैसले पर यकीन ही नहीं हो रहा था.

अंदर आ कर रिया की मां ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘रिया बेटा, सोच ले, नीरज बहुत अच्छा लड़का है और परिवार भी अच्छा है. सारी बातें भूल कर एक नई जिंदगी की शुरुआत कर ले बेटा,’’ उन की आवाज में मां के दिल का दर्द उमड़ आया.

रिया हौले से आश्वासन की मुद्रा में मुसकरा दी तो मां थोड़ी आश्वस्त हो गईं.

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