जयाको बहुत दिनों से लग रहा था कि उस ने अपने जीवन के कई साल घरगृहस्थी में ही बिता दिए. अब जब दोनों बच्चे यश और स्नेहा बड़े हो गए हैं और समीर पदोन्नति के बाद बढ़ती जिम्मेदारियों में व्यस्त रहते हैं तो ऐसे में उसे जो समय मिलता है, उस में वह निश्चिंत हो कर अपने लिए कुछ सोच सकती है. लेकिन उस का मूड तब खराब हो गया जब उस ने कुछ नया सीखने की इच्छा समीर से जाहिर की तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हें कुछ सीख कर क्या करना है?’’

‘‘यह कोई जरूरी तो नहीं कि कुछ करना हो तभी कुछ सीखना चाहिए... बहुत सी चीजें हैं जिन्हें मैं नहीं जानती... और अब मु झे लगता है कि मु झे वे आनी चाहिए. आखिर इस में परेशानी क्या है?’’

‘‘क्या सीखोगी जया तुम... घरगृहस्थी संभाल तो रही हो न?’’

जया को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन स्वभाववश चुप रही. लेकिन हमेशा की तरह समीर उस की चुप्पी से सम झ गए कि उसे बुरा लगा है. अत: हंसते हुए बोले, ‘‘चलो, इस बारे में बच्चों से बात करते हैं. स्नेहा, यश, इधर आना.’’

बच्चे उन के पास आ गए तो समीर ने कहा, ‘‘बच्चो, तुम ही बताओ कि मम्मी को

क्या सीखना चाहिए. तुम्हारी मम्मी जोश में हैं.’’

स्नेहा ने कहा, ‘‘पापा, मम्मी जो चाहे सीख सकती हैं.’’

‘‘हां मम्मी, आप को कंप्यूटर, ड्राइविंग के अलावा और भी बहुत कुछ आना चाहिए... मेरे काफी दोस्तों की मदर्स को बहुत कुछ आता है,’’ यश बोला.

समीर को बच्चों से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी. अत: उन के चेहरे पर निराशा सी छा गई. फिर वे बोले, ‘‘अरे जरा सोचो, उन्हें करना क्या है?’’

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