जब हमारे मित्र हो सकते हैं तो उन की सहेलियां होना भी वाजिब है. मगर यह शब्द उस समय गले नहीं उतरता जब सारा दिन औफिस में मरखप कर आने के बाद हमें एक प्याली चाय के साथ साफसुथरे बिस्तर पर थोड़ा आराम करने की सख्त आवश्यकता होती है और बैठक में घुसते ही हमें ऐसा लगता है जैसे वहां अभीअभी संसद की काररवाई समाप्त हुई हो या हमारी बैठक से बजरंग दल की यात्रा गुजरी हो जो रास्ते में जो मिला नाटक करती जाती है.

चारों तरफ बिखरे कप और प्लेटें, सोफों पर गिरी चाय, फर्श पर बिखरी पानी की बोतलें और गिलास देख कर ऐसा लगता है मानो उन की सहेलियों की सभ्यता के सारे के सारे प्रतीकात्मक चिह्न वहां मौजूद हों.फिर उस वक्त तो बड़ी ही कोफ्त होती है जब औफिस से लौटते हुए ट्रैफिक जामों से जूझते हुए सारे रास्ते चिलचिलाती धूप से गला सूख जाता है और घर पर फ्रिज से पानी की सारी बोतलें तथा बर्फ की सारी ट्रे नदारद मिलती हैं.
फिर हमें झक मार कर टैंक के नल से आ रहे गरम पानी को पी कर ही अपने दिल को सांत्वना देनी पड़ती है.इन सारी बातों को हम सरकारी जीएसटी की तरह बरदाश्त कर जाते हैं और बड़ी शालीनता के साथ अपनी उन से यानी श्रीमतीजी से एक प्याला चाय की फरमाइश करते हैं क्योंकि हमें गरमी में भी चाय पीने की आदत है और एक वे हैं कि हमारी फरमाइश को नजरअंदाज करते हुए गुसलखाने में घुस जाती हैं.

5-6 बार याद दिलाने मेरा मतलब है कि आवाजें लगाने पर करीब 1 घंटे बाद हमारी वे तौलिए से हाथ पोंछती हुई आ कर कहती हैं, ‘‘क्या है... घर में घुसे नहीं कि चिल्लाना शुरूकर दिया.’’फिर हम उन्हें मनाने की गरज से अपने मतलब की बात न कह कर यह कहते हैं,‘‘क्या कर रही थीं. बहुत थकी हुई दिखाई पड़ रही हो.’’‘‘कुछ नहीं, जरा साड़ी धो रही थी.सुशीला की बच्ची ने गंदी कर दी थी. मैं नेसोचा, धो कर अभी डाल दूं वरना नई साड़ी खराब हो जाएगी.’’‘‘तो क्या वह साड़ी... मेरा मतलब है, कल जो क्व8 हजार की नई साड़ी लाया था वह खराब हो गई?’’ हम अपना सिर थाम लेते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...