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बचपन में मां कहा करती थीं कि बेटियों से डर नहीं लगता उन के साथ क्या होगा उस से डर लगता है. शायद ठीक ही कहती थीं. वृंदा को आज इस कहावत का अर्थ भलीभांति समझ आ गया है. मानो मां उस के भविष्य का लेखा पहचान गई थीं. इसीलिए यह कहावत दोहराती थीं. फिर 1 या 2 नहीं पूरी

3 बेटियां जो उतर आई थीं उन के आंगन में. इसीलिए मां को फिक्र होती कि कैसे होगी तीनों की परवरिश. पहले पढ़ाई फिर ब्याह? सब से छोटी मैं (वृंदा) थी.

मां को चिंतातुर देख पिताजी कहते, ‘‘क्यों बेकार में चिंता से गली जा रही हो. सब अपनीअपनी मेहनत ले कर आई हैं.’’

‘‘अजी, तुम्हें क्या पता जब मैं 4 औरतों के बीच बैठती हूं तो उन का पहला सवाल यही होता है कि कितने बच्चे हैं आप के? जब मैं कहती 4. 1 लड़का और 3 बेटियां तो सुनते ही सब के मुंह इस तरह खुले रह जाते मानो कोई अनचाहा जीव देख लिया हो. फिर उन की टिप्पणियां शुरू हो जातीं…

‘‘आज तो एक बच्चे को पालना ही कितना महंगा है उस पर 4-4 बच्चे. उन में भी 3 बेटियां, बहनजी कितनी टैंशन होती होगी न आप को…’’

‘‘उफ, तो यह टैंशन उन औरतों की हुई है तुम्हें… तुम बैठती ही क्यों हो ऐसी औरतों के बीच? अगर अब कुछ कहें तो कहना कि बहनजी हमारी बेटियां हैं. कैसे पालनी हैं हम देख लेंगे. आप टैंशन न लो.’’

पिताजी बड़े ही मजाकिया तरीके से मां को शांत कर देते. समय को देखते हुए शायद मां की चिंता भी जायज थी. दरअसल, कुल को रोशन करने वाला चिराग तो उन के घर में पहली बार में ही जल गया था, यह तो संयोग कहिए कि उस के बाद कृष्णा, मृदुला और फिर मैं एक के बाद एक

3 बेटियां आती चली गईं. पापा बिजली विभाग में अच्छे पद पर थे, इसलिए आर्थिक परेशानी न थी. मैं घर में सब से छोटी थी, इसलिए सब की लाडली थी. उसी लाड़प्यार ने मुझे कुछकुछ शरारती भी बना दिया था. किसी भी बात को ले कर जिद करना मैं अपना हक समझती. मेरी हर जिद पूरी भी कर दी जाती. यहां तक कि कभी दीदी और भैया की कोई चीज पसंद आती तो झट रोतेरोते मांपापा के पास पहुंच जाती कि मुझे वह दीदी वाला खिलौना चाहिए… वह भैया वाली कार दिलाओ न.

तब मां झंझट टालते हुए दीदीभैया से कहतीं, ‘‘अरे कृष्णा, मृदुला दे दो न बेटा… छोटी है यह. क्यों रुला रहा है अपनी छोटी बहन को… इतनी सी चीज नहीं दे सकता. कैसा भाई है…’’

पापा ने अपनी सामर्थ्य के अनुसार हम सभी को कौन्वैंट स्कूलों में पढ़ाया. अमृत की व्यवसाय में रुचि थी, इसलिए एमबीए कर के उन्होंने अपना बिजनैस जमा लिया. दोनों बहनों ने भी अच्छी शिक्षा पाई. फिर पापा ने तीनों का विवाह भी अपनी हैसियत के अनुसार अच्छा घर देख कर कर दिया. बीच शहर में लंबाचौड़ा मकान भी बन गया. दोनों बहनें अपनीअपनी ससुराल चली गईं. रह गए घर में मैं, मांपापा और भैयाभाभी. हम बहनें पापा के बहुत करीब थीं. अपने मन की हर बात उन से शेयर करतीं, इसलिए दोनों बेटियों के जाने पर पापा उन्हें बहुत मिस करते. वे कहते कि अब वृंदा का ब्याह आराम से करूंगा… घर में जब तक अमृत के बच्चे भी हो जाएंगे.

एक दिन अचानक हमारी खुशियों पर उस समय ग्रहण लग गया जब एक सड़क हादसे में पापा हमें छोड़ कर चले गए. उन के जाने का सब से अधिक खमियाजा मां के बाद मुझे ही भुगतना पड़ा. सब का घरसंसार बस चुका था. मगर मेरे सपने तो अभी कुंआरे ही थे. अब कौन इतने अरमानों से मुझे डोली में बैठा कर बिदा करेगा? वक्त कैसे पल में करवट बदलता है, यह मैं ने पापा के जाने पर देखा. घर की सब से लाडली बेटी देखते ही देखते बोझ लगने लगी. शायद इसी को चक्रव्यूह कहते हैं. घर में सभी को मेरे ब्याह की चिंता सताने लगी.

चूंकि सारी व्यवस्था पापा ने पहले ही कर रखी थी, इसलिए आर्थिक रूप से कोई परेशानी न सही, मगर कुछ अरमान थे, जिन्हें दौलत के तराजु में नहीं तोला जा सकता. खैर, यहीं आ कर मानसिकता का रहस्य खुलता है कि हम न चाहते हुए भी घटनाओं का उलझना देखते रहते हैं, अनजान दिशा में बढ़ते चले जाते हैं.

व्यापार के सिलसिले में भैया का यहांवहां, आनाजाना लगा रहता था. वहीं उन की मुलाकात वरुण से हुई. भैया को वरुण होनहार, सज्जन और लायक लगे. उन के परिवार में मां के अलावा और कोई न था. इस से अच्छा रिश्ता कोई हो ही नहीं सकता… छोटा परिवार अपने में स्टैबलिश. हर मांबाप ऐसे रिश्ते को झपट कर हथिया लेते हैं. मां ने भी फौरन हां कर दी. मेरी जिम्मेदारी से मुक्ति पा कर मां तो मानो गंगाजी नहा गईं.

वरुण का अपना व्यापार था. उन के भी पिता नहीं थे. परिवार के इकलौते बेटे. मां और वे. कुल मिला कर हम 3 प्राणी थे. किसी प्रकार की कोई परेशानी न थी. अपनी मेहनत और लगन से वरुण ने व्यापार भी अच्छाखासा जमा लिया था. कालीन पर चलतेचलते सफर का अंदाजा ही नहीं हुआ कब 2 साल बीत गए. अब तो प्रियांश भी गोद में आ गया था.

मगर वक्त हर जख्म पर मरहम लगा देता है. पापा की स्मृतियां धीरेधीरे धूमिल होती जा रही थीं. वरुण के प्यार और प्रियांश की परवरिश में मैं ने खुद को पूरी तरह रमा दिया था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि कुछ दिनों से वरुण पैरों में दर्द रहने की शिकायत करने लगे.

शुरू में सोचा काम की थकान की वजह से हो रहा होगा. वरुण ने घर बनाने के लिए बैंक से लोन ले रखा था. बस उस की पूर्ति के लिए रातदिन मेहनत करते. कुछ घरेलू उपचार किए, मालिश कराई, मगर दर्द था कि मिटने का नाम ही न लेता. वरुण दिनबदिन कमजोर होते जा रहे थे. न खाने में, न ही सोने में उन की रुचि रही. सारी रात पैरों की पीड़ा से कराहते.

सच, देखी नहीं जाती थी उन की यह तकलीफ. इन 4 महीनों में तोड़ कर रख दिया था इस दर्द ने उन्हें. वजन तेजी से घट रहा था. सिर के बाल तेजी से सफेद होने लगे. नींद पूरी न होने से चिड़चिड़े से हो गए थे. इन 4 महीनों के दर्द ने उन्हें 40 साल का सा लुक दे दिया था.

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