अभी भी हम बिस्तर पर ही थे और यही कोई 6 बजे का समय होगा जब फोन की घंटी बज उठी. फोन रमा ने उठाया और मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘निर्मला, अस्पताल से नर्स बोल रही है. कह रही है कोई जरूरी मैसेज तुम्हें देना है.’’
निर्मला का नाम सुनते ही नींद गायब हो गई और मन अनिता के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. नर्स ने वही कुछ कहा जो मैं सोच रहा था. वह रात को कोमा में चली गई थी.
मुझे चिंतित देख रमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है? सब ठीक तो है न?’’
‘‘नहीं, सब ठीक नहीं है,’’ मैं ने कहा, ‘‘कल रात से वह कोमा में चली गई है. नर्स कह रही थी अब वह कुछ ही घंटों की मेहमान है.’’
वह मौन हो गई. उसे मौन देख कर मैं ने कहा, ‘‘क्या सोचने लगीं?’’
‘‘क्या यहां उस का कोई अपना नहीं है? लोग कह रहे थे कि उस की बड़ी बहन और जीजाजी यहां रहते हैं.’’
‘‘हां,’’ मैं ने कहा, ‘‘हम जब पहली बार मिले थे उस समय वह अपने जीजाजी और बड़ी बहन के साथ ही रह रही थी. पर इधर कुछ दिन हुए, उन लोगों के बारे में जब मैं ने जिक्र किया तो कह रही थी कि उस की बड़ी बहन नम्रता अब इस दुनिया में नहीं रही और उस के जीजाजी दूसरी शादी कर मौरिशस चले गए हैं. नम्रता को कोई बच्चा वगैरह नहीं था, इसलिए उस का अपने जीजाजी से अब कोई संबंध नहीं रहा है.’’
‘‘क्या सोचते हो?’’
‘‘सोचना क्या है? यहां उस का और कोई रिश्तेदार या जानने वाला है नहीं, इसलिए उस का अंतिम संस्कार हम लोगों को ही करना पड़ेगा, ऐसा लगता है,’’ कह कर मैं उस की ओर देखने लगा.
उस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.
कई वर्षों के बाद अनिता 6 महीने पहले गोरेगांव के ओबेराय मौल में मिली थी. लेकिन वह पहले वाली अनिता नहीं थी. पहले से बिलकुल अलग. उलझे सफेद बाल, सूखा चेहरा और धंसी हुई आंखें. मैं तो पहचान ही नहीं सका था उसे पर वह हैलो कह कर मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई थी.
‘कैसी हो?’ मैं ने पूछा.
‘ठीक हूं, तुम कैसे हो?’
‘कुछ विशेष नहीं, कह सकती हो सब ठीक है,’ मैं ने कहा.
‘और बच्चे?’
‘एक 4 साल का लड़का है. अमित नाम है उस का. बहुत सुंदर है. बिलकुल अपनी मां पर गया है.’
सुन कर वह कुछ असहज हो गई. उसे असहज होते देख मैं दूसरी बातें करने लगा. थोड़ी देर बाद कौफी के लिए उस के ‘हां’ कहने पर उसे ले कर कैफेटेरिया में आ गया.
मैं ने पूछा, ‘साथ में कुछ लोगी?’
‘नहीं, और कुछ नहीं. सिर्फ कौफी.’
‘अभी भी चाय नहीं पीती हो?’
उस ने इस पर कुछ नहीं कहा. बस हलकी सी मुसकराहट उस के चेहरे पर आई.
वहां बैठते हुए मैं ने पूछा, ‘तुम तो आजकल दिल्ली में हो. यहां किसी काम से आई हो या किसी से मिलने?’
‘दिल्ली में थी, अब नहीं हूं. यही कोई 6 महीने पहले मुंबई लौट आई हूं,’ उस ने कहा.
‘वहां दिल नहीं लगा?’
‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं थी. तुम तो जानते हो पिलानी से जब मुंबई आई तो जीजाजी और दीदी के आग्रह को ठुकरा नहीं सकी और उन के साथ ही रहने लगी. तुम से पहली बार मैं दीदी के घर ही तो मिली थी,’ कह कर उस ने मेरी ओर देखा.
‘हां, तुम्हारी दीदी इंटर में मेरे साथ थी, इसलिए कभीकभार उस के पास चला जाया करता था. लेकिन घर आने के लिए उस ने कभी आग्रह नहीं किया, क्योंकि शायद तुम्हारे जीजाजी वैसा नहीं चाहते थे. पर बाद के दिनों में तुम से मिलने की इच्छा से आने लगा था,’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.
उस ने एक पल के लिए मेरी ओर देखा फिर अपनी पलकें नीची कर कौफी के
कप की ओर देखने लगी. फिर बोली, ‘दीदी पढ़ीलिखी, सुंदर और अच्छे नाकनक्श की थीं. उन का रंग भी गोरा था. पर जीजाजी शायद दीदी के थुलथुले बदन से ऊब चुके थे और उन्होंने जब मुझे इतना करीब पाया तो मुझे आंखों में पालने लगे. कुछ दिन मैं देखती रही उन्हें और जब मेरे लिए उन्हें मैनेज करना मुश्किल हो गया तो अपना ट्रांसफर करा कर दिल्ली चली गई.
‘दिल्ली में अंजलि के कहने पर मैं उस के साथ रहने लगी. पिलानी के दिनों में वह मेरे साथ थी और हम बहुत अच्छे दोस्त भी थे. दिल्ली में वह किसी मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी.
‘अंजलि खुले स्वभाव की और स्वतंत्र विचारों वाली थी और अपने मित्रों से, जिन में पुरुष अधिक थे वह सदा घिरी रहती थी. रात में वह बाहर ही रहती अथवा देर से आती. उस के जाने के बाद शुरू के दिनों में मैं अपने कमरे में बंद हो जाती.
‘वैसे उस ने कभी अपने साथ चलने के लिए मुझ से नहीं कहा पर मैं ही एक दिन अपने अकेलेपन से ऊब गई तो उस के साथ जाने लगी.
‘वहां की दुनिया बड़ी ही रंगीन थी. कुछ दिनों में ही मैं उस रंग में रंग गई. अच्छा खाना, बढि़या ड्रिंक और रोज एक नया चेहरा. फिर मेरे कब पंख निकल आए पता ही न चला. मैं खुले आसमान में उड़ने लगी. लेकिन शरीर पर जब कुछ चरबी चढ़ी तो कल तक मेरी मुसकराहट पर बिछने वाले मुझ से कतराने लगे. उस में कुछ अस्वाभाविक नहीं था. नए चेहरों की वहां कमी नहीं थी और हमारे संबंध कोई भावनात्मक तो थे नहीं, जो कोई किसी के बारे में सोचता या उस के लिए दुखी होती.
‘ये सब तब मेरी जरूरत बन चुकी थी. ऐसे में क्या करती? खरीदफरोख्त पर उतर आई. बाद में वह भी मुश्किल हो गया. शादी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. प्रौलैप्स की सर्जरी में सब पहले ही रिमूव करवा चुकी थी.
‘और कोई तो वहां था नहीं. अंजलि अपने बौयफ्रैंड के साथ आस्ट्रेलिया सैटल कर गई थी और जो वहां थे वे मुझे अच्छी नजरों से नहीं देखते थे. क्या करती और किसी जगह को जानती नहीं थी, इसलिए मुंबई लौट कर आ गई…’