कहानी- साधना जैन
वापसी में रात के 11 बज गए थे. निपुण कार से उतर कर सीधा अपने कमरे में भागा. आज वह शैनल को अपनी यादों में बसा कर सारी रात उस के ही सपनों के साथ गुजारना चाहता था. सीढि़यां चढ़ते समय मां पूछ बैठीं, ‘‘कैसी लगी लड़की?’’
‘‘मां, सुबह बात करेंगे,’’ छोटा सा उत्तर दे कर निपुण ने बिस्तर पर जा कर ही दम लिया.
आज भैयाभाभी निपुण को ले कर लड़की देखने गए थे. 4-5 रिश्ते आए थे जिन में सब से अच्छा रिश्ता शैनल का ही था. अच्छा परिवार, उच्च शिक्षा और खूबसूरत लड़की.
निपुण ने पहली बार शैनल को देखा तो बस, देखता ही रह गया. दूध की तरह सफेद व बड़ीबड़ी आंखों वाली, हवा सी चंचल और फूल की डालियों सी लचीली शैनल सारी रात उस के साथ सपनों में खेलती रही. शैनल ही उस की हमसफर होगी, निपुण ने मन में तय कर लिया.
सुबह से ही घर में हलचल थी. बड़े भैया, भाभी व मां सभी अपनाअपना चाय का प्याला ले कर बैठक में जुटे हुए शैनल के बारे में चर्चा कर रहे थे. निपुण भी आफिस के लिए जल्दी से तैयार होने का नाटक करतेकरते उन की बातों का जायजा ले रहा था. शैनल सब को पसंद है यह जान कर निपुण के दिल ने राहत की सांस ली.
तभी फोन की घंटी बजी तो फोन निपुण ने ही रिसीव किया.
‘‘आप जो लड़की कल देख कर आए हैं उस का चालचलन ठीक नहीं, वह चरित्रहीन है,’’ एक सांस में ही यह सब कोई कह गया, आवाज मर्दाना थी.