उसका दिल जोरजोर से धड़कने लगा जब उस ने प्लास्टिक की छोटी सी पेशाबभरी कटोरी में स्टिक डाल दी और 10 सैकंड तक इंतजार करने लगी.
सिर्फ एक लकीर नीली गहरी हुई थी. इस का मतलब उसे अच्छी तरह से मालूम था. पिछले 9 साल से हर महीने यही करती आई थी और दोनों लकीरों के गहरे होने के इंतजार में जाने और कितने महीने वह इसी तरह अकेली यों ही सिसकती रहेगी.
उस ने गहरा सांस छोड़ी. फिर बाथरूम की खिड़की से बाहर झांकने लगी. इस साल भारी वर्षा होने के कारण दूर तक पहाड़ों पर हरियाली जमी हुई थी और हवा के झोंके अंदर के ताप को कुछ सुकून पहुंचा रहे थे. थोड़ी देर यों ही खड़ी रह कर उस ने खिड़की जोर से बंद कर दी. आज उस का मूड फिर से उखड़ा हुआ था. मूड उस का ऐसे ही रहता है जिस दिन वह यह परीक्षण करती है.
शाम को डेविड से भी जलीकटी बातें करती रही और इन सब का जिम्मेदार उसे ही ठहराती रही क्योंकि डेविड ने शुरू के 10 सालों तक उसे गर्भनिरोधक गोलियां खिलाखिला कर खोखला कर दिया था. दरअसल, डेविड सैटल होने तक बच्चे का रिस्क नहीं लेना चाहता था.
जब भी मौली बच्चे के लिए कहती तो वह यही जवाब देता, ‘‘बच्चों को गरीब मांबाप पसंद नहीं होते. क्या तुम चाहोगी कि हमारे बच्चे हमें ही न पसंद करें?’’
डेविड को नहीं मालूम था और कितने साल सैटल होने में लग जाएंगे. शुरू के 10 साल तो यों ही पंख लगा कर उड़ गए. लेकिन डेविड बच्चे की बात भूल कर भी नहीं करता और अब तो मौली की किसी बात का डेविड पर कोई असर नहीं होता था.