रात में रसोई का काम समेट कर आरती सोने के लिए कमरे में आई तो देखा, उस के पति डा. विक्रम गहरी नींद में सो रहे थे. उन के बगल में बेटी तान्या सो रही थी. आरती ने सोने की कोशिश बहुत की लेकिन नींद जैसे आंखों से कोसों दूर थी. फिर पति के चेहरे पर नजर टिकाए आरती उन्हीं के बारे में सोचती रही.
डा. विक्रम सिंह कितने सरल और उदार स्वभाव के हैं. इन के साथ विवाह हुए 6 माह बीत चुके हैं और इन 6 महीनों में वह उन्हें अच्छी तरह पहचान गई है. कितना प्यार और अपनेपन के साथ उसे रखते हैं. उसे तो बस, ऐसा लगता है जैसे एक ही झटके में किसी ने उसे दलदल से निकाल कर किसी महफूज जगह पर ला कर खड़ा कर दिया है.
उस का अतीत क्या है? इस बारे में कुछ भी जानने की डा. विक्रम ने कोई जिज्ञासा जाहिर नहीं की और वह भी अभी कुछ कहां बता पाई है. लेकिन इस का मतलब यह भी नहीं कि वह उन को धोखे में रखना चाहती है. बस, उन्होंने कभी पूछा नहीं इसलिए उस ने बताया नहीं. लेकिन जिस दिन उन्होंने उस के अतीत के बारे में कुछ जानने की इच्छा जताई तो वह कुछ भी छिपाएगी नहीं, सबकुछ सचसच बता देगी.
इसी के साथ आरती का अतीत एक चलचित्र की तरह उस की बंद आंखों में उभरने लगा. वह कहांकहां छली गई और फिर कैसे भटकतेभटकते वह मुंबई की बार गर्ल से डा. विक्रम सिंह की पत्नी बन अब एक सफल घरेलू औरत का जीवन जी रही है.
आज की आरती अतीत में मुंबई की एक बार गर्ल बबली थी. बार बालाओं के काम पर कानूनन रोक लगते ही बबली ने समझ लिया था कि अब उस का मुंबई में रह कर कोई दूसरा काम कर के अपना पेट भरना संभव नहीं है.
मुंबई के एक छोर से दूसरे छोर तक, जिधर भी जाएगी, लोगों की पहचान से बाहर न होगी. अत: उस ने मुंबई छोड़ देने का फैसला किया. गुजरात के सूरत जिले में उस की सहेली चंदा रहती थी. उस ने उसी के पास जाने का मन बनाया और एक दिन कुछ जरूरी कपड़े तथा बचा के रखी पूंजी ले कर सूरत के लिए गाड़ी पकड़ ली.
सूरत पहुंचने से पहले ही बबली ने चंदा के यहां जाने का अपना विचार बदल दिया क्योंकि ताड़ से गिर कर वह खजूर पर अटकना नहीं चाहती थी. चंदा भी सूरत में उसी तरह के धंधे से जुड़ी थी.
बबली के लिए सूरत बिलकुल अजनबी व अपरिचित शहर था जहां वह अपने पुराने धंधे को छोड़ कर नया जीवन शुरू करना चाहती थी. इसीलिए शहर के मुख्य बाजार में स्थित होटल में एक कमरा किराए पर लिया और कुछ दिन वहीं रहना ठीक समझा ताकि इस शहर को जानसमझ सके.
बबली को जब कुछ अधिक समझ में नहीं आया तो कुकरी का 3 माह का कोर्स उस ने ज्वाइन कर लिया. इसी दौरान बबली सरकारी अस्पताल से कुछ दूरी पर संभ्रांत कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगी. कोर्स सीखने के दौरान ही उस ने अपने मन में दृढ़ता से तय कर लिया कि अब एक सभ्य परिवार में कुक का काम करती हुई वह अपना आगे का जीवन ईमानदारी के साथ व्यतीत करेगी.
कुकरी की ट्रेनिंग के बाद बबली को अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. जल्दी ही उसे एक मनमाफिक विज्ञापन मिल गया और पता पूछती हुई वह सीधे वहां पहुंची. दरवाजे की घंटी बजाई तो घर की मालकिन वसुधा ने द्वार खोला.
बबली ने अत्यंत शालीनता से नमस्कार करते हुए कहा, ‘आंटी, अखबार में आप का विज्ञापन पढ़ कर आई हूं. मेरा नाम बबली है.’
‘ठीक है, अंदर आओ,’ वसुधा ने उसे अंदर बुला कर इधरउधर की बातचीत की और अपने यहां काम पर रख लिया.
अगले दिन से बबली ने काम संभाल लिया. घर में कुल 3 सदस्य थे. घर के मालिक अरविंद सिंह, उन की पत्नी वसुधा और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा बेटा राजन.
बबली के हाथ का बनाया खाना सब को पसंद आता और घर के सदस्य जब तारीफ करते तो उसे लगता कि उस की कुकरी की ट्रेनिंग सार्थक रही. दूसरी तरफ बबली का मन हर समय भयभीत भी रहता कि कहीं किसी हावभाव से उस के नाचनेगाने वाली होने का शक किसी को न हो जाए. यद्यपि इस मामले में वह बहुत सजग रहती फिर भी 5-6 सालों तक उसी वातावरण में रहने से उस का अपने पर से विश्वास उठ सा गया था.
एक दिन शाम के समय परिवार के तीनों सदस्य आपस में बातचीत कर रहे थे. बबली रसोई में खाना बनाने के साथसाथ कोई गीत भी गुनगुना रही थी कि राजन की आवाज कानों में पड़ी, ‘बबलीजी, एक गिलास पानी दे जाना.’
गाने में मगन बबली ने गिलास में पानी भरा और हाथ में लिए ही अटकतीमटकती चाल से राजन के पास पहुंची और उस के होंठों से गिलास लगाती हुई बोली, ‘पीजिए न बाबूजी.’
राजन अवाक् सा बबली को देखता रह गया. वसुधा और अरविंद को भी उस का यह आचरण अच्छा न लगा पर वे चुप रह गए. अचानक बबली जैसे सोते से जागी हो और नजरें नीची कर के झेंपती हुई वहां से हट गई. बाद में उस ने अपनी इस गलती के लिए वसुधा से माफी मांग ली थी.
आगे सबकुछ सामान्य रूप से चलता रहा. बबली को काम करते हुए लगभग 2 माह बीत चुके थे. एक दिन शाम को वसुधा क्लब जाने के लिए तैयार हो रही थीं कि पति अरविंद भी आफिस से आ गए. वसुधा ने बबली से चाय बनाने को कहा और अरविंद से बोली, ‘मुझे क्लब जाना है और घर में कोई सब्जी नहीं है. तुम ला देना.’
‘डार्लिंग, अभी तो मुझे जाना है. हां, 1 घंटे बाद जब वापस आऊंगा तो उधर से ही सब्जी लेता आऊंगा,’ अरविंद बोले.
‘लेकिन सब्जी तो इसी समय के लिए चाहिए,’ वसुधा बोली, ‘ऐसा कीजिए, बबली को अपने साथ लेते जाइए और सब्जी खरीद कर इसे ही दे दीजिएगा. यह लेती आएगी.’
चाय पीने के बाद अरविंद ने बबली से चलने को कहा तो वह दूसरी तरफ का आगे का दरवाजा खोल कर उन की बगल की सीट पर धम से बैठ गई और जैसे ही गाड़ी आगे बढ़ी, अचानक अरविंद के कंधे पर हाथ मार कर बबली बोली, ‘अपन को 1 सिगरेट चाहिए, है क्या?’
अरविंद चौंक से गए. यह कैसी लड़की है? फिर बबली की आवाज कानों में पड़ी, ‘लाओ न बाबूजी, सिगरेट है?’
अरविंद ने गाड़ी रोक दी और उस की तरफ देखते हुए जोर से बोले, ‘बबली, आज तू पागल हो गई है क्या? सिगरेट पीएगी?’
अरविंद की आवाज बबली के कानों में गरम लावे जैसी पड़ी. तंद्रा टूटते ही उसे लगा कि अतीत के दिनों की आदतें उस पर न चाहते हुए भी जबतब हावी हो जाती हैं. अपने को संभालती हुई बबली बोली, ‘अंकल, आज मैं बहुत थकी हुई थी. आप की गाड़ी में हवा लगी तो झपकी आ गई. उसी में पता नहीं कैसेकैसे सपने आने लगे. जैसे कोई सिगरेट पीने को मांग रहा हो. माफ कीजिए अंकल, गलती हो गई.’ हाथ जोड़ कर बबली गिड़गिड़ाई.
अरविंद को बबली की यह बात सच लगी और वह चुप हो गए. कार आगे बढ़ी. ढेर सारी सब्जियां खरीदवा कर अरविंद ने बबली को घर छोड़ा और अपने काम से चले गए.
अरविंद ने इस घटना का घर पर कोई जिक्र नहीं किया. वह अनुमान भी नहीं लगा सके कि बबली बार बाला है पर उस की कमजोरी को उन्होंने भांप लिया था.
बबली को अपनी इस फूहड़ता पर बड़ी ग्लानि हुई. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इतना सावधान रहने पर भी उस से बारबार गलती क्यों हो जाती है. उस ने दृढ़ निश्चय किया कि वह भविष्य में अपने पर नियंत्रण रखेगी ताकि उस का काला अतीत आगे के जीवन में अपनी कालिमा न फैला सके.
बीतते समय के साथ सबकुछ सामान्य हो गया. बबली अपने काम में इस कदर तल्लीन हो गई कि सिगरेट मांगने वाली घटना को भूल ही गई.
एक दिन वसुधा ने बबली को चाबी पकड़ाते हुए कहा, ‘मुझे दोपहर बाद एक सहेली के घर जन्मदिन पार्टी में जाना है, तुम समय से आ कर खाना बना देना. मुझे लौटने में देर हो सकती है. राजन तो आज होस्टल में रुक गया है लेकिन अरविंदजी को समय से खाना खिला देना.’
‘जी, आंटी, लेकिन अगर साहब को आने में देर होगी तो मैं मेज पर उन का खाना लगा कर चली जाऊंगी.’
‘ठीक है, चली जाना.’
शाम को जल्दी आने की जगह बबली कुछ देर से आई तो देखा दरवाजा अंदर से बंद है. उस ने दरवाजे की घंटी बजाई तो अरविंद ने दरवाजा खोला. उसे कुछ संकोच हुआ. फिर भी काम तो करना ही था. सो अंदर सीधे रसोई में जा कर अपने काम में लग गई.
बरतन व रसोई साफ करने के बाद बबली बैठ कर सब्जी काट रही थी कि अरविंद ने कौफी बनाने के लिए बबली से कहा.
कौफी बना कर बबली उसे देने के लिए उन के कमरे में गई तो देखा, वह पलंग पर लेटे हुए थे और उन्होंने इशारे से कौफी की ट्रे को पलंग की साइड टेबल पर रखने को कहा.
बबली ने अभी कौफी की ट्रे रखी ही थी कि उन्होंने उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया. वह धम से उन के ऊपर गिर पड़ी. उसे अपनी बांहों में भरते हुए अरविंद ने कहा, ‘जानेमन, तुम ने तो कभी मौका नहीं दिया, लेकिन आज यह सुअवसर मेरे हाथ लगा है.’
बबली अपने को उन के बंधन से छुड़ाते हुए बोली, ‘छोडि़ए अंकल, क्या करते हैं?’
लेकिन अरविंद ने उसे छोड़ने की जगह अपनी बांहों में और भी शक्ति के साथ जकड़ लिया. अपने बचने का कोई रास्ता न देख कर बबली ने हिम्मत कर के एक जोरदार तमाचा अरविंद के गाल पर जड़ दिया. अप्रत्याशित रूप से पड़े इस तमाचे से अरविंद बौखला से गए.
‘दो कौड़ी की छोकरी, तेरी यह हिम्मत,’ कहते हुए अरविंद उस पर जानवरों जैसे टूट पड़े थे कि तभी दरवाजे की घंटी बज उठी और उन की पकड़ एकदम ढीली पड़ गई.
बबली को लगा कि जान में जान आई और भाग कर उस ने दरवाजा खोल दिया. सामने वसुधा खड़ी थी. उन से बिना कुछ कहे बबली रसोई में खाना बनाने चली गई.
खाना बनाने का काम समाप्त कर बबली जाने के लिए वसुधा से कहने आई. वसुधा ने देखा खानापीना सबकुछ तरीके से मेज पर सज गया था. उस की प्रशंसा करती हुई वसुधा ने कहा, ‘बबली, मुझे तुम्हारा काम बहुत पसंद आता है. मैं जल्दी ही तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी.’
इतने समय में बबली ने निश्चय कर लिया कि अब वह इस घर में काम नहीं करेगी. अत: दुखी स्वर में बोली, ‘आंटी, इतने दिनों तक आप के साथ रह कर मैं ने बहुत कुछ सीखा है लेकिन कल से मैं आप के घर में काम नहीं करूंगी. मुझे क्षमा कीजिएगा…मेरा भी कोई आत्म- सम्मान है जिसे खो कर मुझे कहीं भी काम करना मंजूर नहीं है.’
‘अरे, यह तुझे क्या हो गया? मैं ने तो कभी भी तुझे कुछ कहा नहीं,’ वसुधा ने जानना चाहा.
‘आप ने तो कभी कुछ नहीं कहा आंटी, पर मैं…’ रुक गई बबली.
अब वसुधा का माथा ठनका. वह सीधे अरविंद के कमरे में पहुंचीं और बोलीं, ‘आज आप ने बबली को क्या कह दिया कि वह काम छोड़ कर जाने को तैयार है?’
अरविंद ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘हां, थोड़ा डांट दिया था. कौफी पलंग पर गिरा दी थी. लेकिन कह दो, अब कभी कुछ नहीं कहूंगा.’
पति की बात को सच मान कर वसुधा ने बबली को बहुतेरा समझाया लेकिन वह काम करने को तैयार नहीं हुई.
घर आ कर पहले तो बबली की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे. अगले दिन जब तनावरहित हो कर वह आगे के जीवन के बारे में सोच रही थी तो उसे पड़ोस में रहने वाली हमउम्र नर्स का ध्यान आया. बस, उस के मन में खयाल आया कि क्यों न वह भी नर्स की ट्रेनिंग ले कर नर्स बन जाए और अपने को मानव सेवा से जोड़ ले. इस से अच्छा कोई दूसरा कार्य नहीं हो सकता.
उस नर्स से मिल कर बबली ने पता कर के नर्स की ट्रेनिंग के लिए आवेदनपत्र भेज दिया और कुछ दिनों बाद उस का चयन भी हो गया. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद उसे सरकारी अस्पताल में नर्स की नौकरी मिल गई. नर्स के सफेद लिबास में वह बड़ी सुंदर व आकर्षक दिखती थी.
अस्पताल में डा. विक्रम सिंह की पहचान अत्यंत शांत, स्वभाव के व्यवहारकुशल और आकर्षक व्यक्तित्व वाले डाक्टर के रूप में थी. बबली को उन्हीं के स्टाफ में जगह मिली, तो साथी नर्सों से पता चला कि डा. विक्रम विधुर हैं. 2 साल पहले प्रसव के दौरान उन की पत्नी का देहांत हो गया था. उन की 1 साढ़े 3 साल की बेटी भी है जो अपनी दादीमां के साथ रहती है. इस हादसे के बाद से ही डा. विक्रम शांत रहने लगे हैं.
उन के बारे में सबकुछ जान लेने के बाद बबली के मन में डाक्टर के प्रति गहरी सहानुभूति हो आई. बबली का हमेशा यही प्रयास रहता कि उस से कोई ऐसा काम न हो जाए जिस से डा. विक्रम को किसी परेशानी का सामना करना पड़े.
अब सुबहशाम मरीजों को देखते समय बबली डा. विक्रम के साथ रहती. इस तरह साथ रहने से वह डा. विक्रम के स्वभाव को अच्छी तरह से समझ गई थी और मन ही मन उन को चाहने भी लगी थी लेकिन उस में अपनी चाहत का इजहार करने की न तो हिम्मत थी और न हैसियत. वह जब कभी डाक्टर को ले कर अपने सुंदर भविष्य के बारे में सोचती तो उस का अतीत उस के वर्तमान और भविष्य पर काले बादल बन छाने लगता और वह हताश सी हो जाती.
एक दिन डा. विक्रम ने उसे अपने कमरे में बुलाया तो वह सहम गई. लगा, शायद किसी मरीज ने उस की कोई शिकायत की है. जब वह डरीसहमी डाक्टर के कमरे में दाखिल हुई तो वहां कोई नहीं था.
डा. विक्रम ने बेहद गंभीरता के साथ उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. वह पहले तो हिचकिचाई पर डाक्टर के दोबारा आग्रह करने पर बैठ गई. कुछ इधरउधर की बातें करने के बाद
डा. विक्रम ने स्पष्ट शब्दों में पूछा, ‘मिस बबली, आप के परिवार में कौनकौन हैं?’
‘सर, मैं अकेली हूं.’
‘नौकरी क्यों करती हो? घर में क्या…’ इतना कहतेकहते डा. विक्रम रुक गए.
‘जी, आर्थिक ढंग से मैं बहुत कमजोर हूं,’ डाक्टर के सवाल का कुछ और जवाब समझ में नहीं आया तो बबली ने यही कह दिया.
डा. विक्रम बेहिचक बोले, ‘बबलीजी, आप को मेरी बात बुरी लगे तो महसूस न करना. दरअसल, मैं आप को 2 कारणों से पसंद करता हूं. एक तो आप मुझे सीधी, सरल स्वभाव की लड़की लगती हो. दूसरे, मैं अपनी बेटी के लिए आप जैसी मां के आंचल की छांव चाहता हूं. क्या आप मेरा साथ देने को तैयार हैं?’
बबली ने नजरें उठा कर डा. विक्रम की तरफ देखा और फिर शर्म से उस की पलकें झुक गईं. उसे लगा जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. लेकिन सामने वह खामोश ही रही.
उसे चुप देख कर डा. विक्रम ने फिर कहा, ‘मैं आप पर दबाव नहीं डालना चाहता बल्कि आप की इच्छा पर ही मेरा प्रस्ताव निर्भर करता है. सोच कर बताइएगा.’
बबली को लगा कहीं उस के मौन का डा. विक्रम गलत अर्थ न लगा लें. इसलिए संकोच भरे स्वर में वह बोली, ‘आप जैसे सर्वगुण संपन्न इनसान के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए मुझे सोचना क्या है? लेकिन मेरा अपना कोई नहीं है, मैं अकेली हूं?’
बबली का हाथ अपने हाथों में ले कर अत्यंत सहज भाव से डा. विक्रम बोले, ‘कोई बात नहीं, हम कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’
बबली अधिक बोल न सकी. बस, कृतज्ञ आंखों से डा. विक्रम की तरफ देख कर अपनी मौन स्वीकृति दे दी.
विवाह से पहले विक्रम ने बबली को अपनी मां से मिलवाना जरूरी समझा. बेटे की पसंद की मां ने सराहना की.
बबली से कोर्ट मैरिज के बाद डा. विक्रम ने एक शानदार रिसेप्शन का आयोजन किया, जिस में उन के सभी रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त तथा अस्पताल के सभी डाक्टर, नर्स व कर्मचारी शामिल हुए. हां, रिसेप्शन के निमंत्रणपत्र पर डा. विक्रम सिंह ने बबली का नाम बदल कर अपनी दिवंगत पत्नी के नाम पर आरती रख दिया था.
उन्होंने बबली से कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि तुम को बबली के स्थान पर आरती नाम से पुकारूं. तुम को कोई आपत्ति तो न होगी?’
बबली उन की आकांक्षा को पूरापूरा सम्मान देना चाहती थी इसलिए सहज भाव से बोली, ‘आप जैसा चाहते हैं मुझे सब स्वीकार है. आप की आरती बन कर आप की पीड़ा को कम कर सकूं और तान्या को अपनी ममता के आंचल में पूरा प्यार दे सकूं इस से बढ़ कर मेरे लिए और क्या हो सकता है?’ इस तरह वह बबली से आरती बन गई.
अचानक तान्या के रोने की आवाज सुन कर बबली की तंद्रा टूटी तो वह उठ कर बैठ गई. सुबह हो गई थी. विक्रम अभी सो रहे थे. तान्या को थपकी दे कर बबली ने चुप कराया और उस के लिए दूध की बोतल तैयार करने किचन की तरफ बढ़ गई.
विक्रम की सहृदयता और बड़प्पन के चलते आज सचमुच सम्मान के साथ जीने की उस की तमन्ना का स्वप्न साकार हो गया और वह अपनी मंजिल पाने में सफल हो गई.