रात का पहला पहर बीत रहा था. दूर तक चांदनी छिटकी हुई थी. रातरानी के फूलों की खुशबू और मद्धम हवा रात को और भी रोमानी बना रहे थे. मीता की आंखों में नींद नहीं थी. बालकनी में बैठी वह चांद को निहारे जा रही थी. हवाएं उस की बिखरी लटों से खेल रही थीं. तभी कहीं से भटके हुए आवारा बादलों ने चांद को ढक लिया तो मीता की तंद्रा भंग हुई. अब चारों और घुप्प अंधेरा था. मीता उठ कर अपने कमरे में चली गई. मोहन की बातें अभी भी उस के दिल और दिमाग दोनों को परेशान कर रही थीं. बिस्तर पर करवट बदलते हुए मीता देर तक सोने की कोशिश करती रही, लेकिन नींद नहीं आई. इतनी रात गए मीता राजन को भी फोन नहीं कर सकती थी. राजन दिन भर इतना व्यस्त रहता है कि रात में 11 बजते ही वह गहरी नींद में होता है. फिर तो सुबह 7 बजे से पहले उस की नींद कभी नहीं खुलती. दोनों के बीच बातों के लिए समय तय है. उस के अलावा कभी मीता का मन करता है बातें करने का तो इंतजार करना पड़ता है. पहले अकसर मीता चिढ़ जाया करती थी. अब मीता को भी इस की आदत हो गई है. यही सब सोचतेसोचते मीता बिस्तर से उठी और कमरे के कोने में रखी कुरसी पर बैठ गई. कुछ पढ़ने के लिए उस ने टेबल लैंप जला लिया. लेकिन आज उस का मन पढ़ने में भी नहीं लग रहा था. एक ही सवाल उस के दिमाग को परेशान कर रहा था. सिर्फ 5 महीने ही तो हुए थे मोहन से मिले हुए. क्या उम्र के इस पड़ाव पर आ कर सिर्फ 5 महीने की दोस्ती प्यार का रूप ले सकती है? उस पर तुर्रा यह कि दोनों शादीशुदा. मोहन की बातों ने उस के दिमाग को झकझोर कर रख दिया था. मीता फिर से बिस्तर पर आ कर लेट गई. मोहन के बारे में सोचतेसोचते कब उस की आंखें बंद हो गईं और वह नींद की आगोश में चली गई, उसे पता ही नहीं चला.
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