रमनड्राइंग रूम में बैठा लेनिन की पुस्तक ‘राज्य और क्रांति’ पढ़ रहा था. तभी दरवाजे पर आहट हुई. उस ने सोचा कि शायद कानों को धोखा हुआ हो. सुबह के टाइम कौन हो सकता है. कोई और्डर भी नहीं दिया था. सभी फ्लैट्स आपस में हलकी सी दीवार से जुड़े हुए थे. वह पढ़ने में ही मग्न रहा.
दोबारा आहट हुई. बिजली इन दिनों बहुत आंखमिचौली खेल रही थी, इसलिए डोर बेल नहीं बज रही थी.
‘‘रमन, देखो कौन है. मैं बाथ लेने जा रही हूं. बड़ी चिपचिप हो रही है. इस लाइट ने भी बहुत परेशान कर दिया है,’’ बालकनी से कपड़े ले कर बाथरूम की ओर जाती हुई जयश्री बोली.
रमन पहले दरवाजा खोल कर जाली के अंदर से ही पूछता है, ‘‘कौन?’’
गले में गमछामफलर लपेटे 2 लड़के जाली के दरवाजे में मुंह घुसाए खड़े थे. मुंह में पान या गुटका होने का अंदेशा. बोलने के साथ ही महक आ रही थी और कभीकभी छींटे भी. रमन को इन चीजों से बड़ी नफरत थी. हर साल 31 मई को कालेज की ओर से तंबाकू के खिलाफ अभियान छेड़ा जाता था, जिस का प्रतिनिधित्व रमन और उस के दोस्त ही करते.
‘‘आप लोग?’’
‘‘ले साले, बता भी दे अब अपने जीजा को कि हम कौन हैं,’’ पहला दूसरे से बोला.
‘‘अबे पहले अपना नाम बता दे. पता चला कि बिना बात के कोई दूसरा पिट गया,’’ दूसरा थोड़ी बेशर्मी से बोला.
रमन जाली का दरवाजा खोल कर बाहर चला गया. आसपास रहने वाले लोगों को सचेत करने के इरादे से थोड़ा जोर से बोला. हालांकि सभी फ्लैट्स के दरवाजे अंदर से बंद थे. शहर की संस्कृति यही थी. सब को अपनी प्राइवेसी प्यारी. दूसरों के मसले में दखल देना अच्छा भी नहीं माना जाता.