दफ्तर से आज आधे दिन की छुट्टी ले कर रोहिणी घर आ गई. वह चाहती तो थी कि सीधे डाक्टर के पास चली जाए लेकिन दोपहर का वक्त था और इस वक्त उस लेडी डाक्टर की डिस्पैंसरी बंद होती है जिसे रोहिणी दिखाना चाहती थी. वैसे भी कल्याण में जहां रोहिणी का घर है वहां से डिस्पैंसरी ज्यादा दूर नहीं है इसलिए उस ने सोचा कि वह अपने पति अलंकार के दफ्तर से लौटने के पश्चात उस के साथ चली जाएगी.

पिछले कुछ दिनों से रोहिणी को सुबह उठने में काफी तकलीफ हो रही थी. उसे बहुत ज्यादा आलसपन भी महसूस होने लगा था और कभीकभी सुबह के वक्त हलका बुखार भी रहता. वह किचन में भी ठीक से खाना नहीं बना पा रही थी. किचन में मसालों की गंध उसे असहनीय लगने लगे थी. पहले तो रोहिणी को लगा कि शायद मौर्निंग सिकनैस की वजह से उसे ऐसा हो रहा है लेकिन आज तो औफिस में भी उसे काम करने में बड़ी तकलीफ होने लगी तो वह घर आ गई और आते वक्त अलंकार को भी फोन पर बता दिया ताकि वह भी घर जल्दी आ जाए और वे दोनों डाक्टर के पास जा सके.

वी.टी से कल्याण की दूरी ट्रेन से लगभग 2 घंटे की है, जिस की वजह से घर आते हुए रोहिणी पूरी तरह से थक चुकी थी. वैसे तो वह रोज ही थक जाती थी पर आज उसे कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी. रोहिणी ने सोचा कि घर जाते ही वह पहले थोड़ी देर आराम करेगी उस के बाद ही घर के कामों को हाथ लगाएगी लेकिन यहां घर पहुंची तो उस ने देखा सासूमां संपदा सोफे पर लगभग लेटी हुई हैं और ससुरजी किचन में हैं. आमतौर पर ससुरजी किचन में कम ही दिखाई देते थे. रोहिणी कुछ कहती उस से पहले ही उसे दफ्तर से जल्दी आया देख संपदा कहने लगीं, ‘‘अरे रोहिणी तुम जल्दी आ गई हो. चलो अच्छा हुआ. मेरे सिर में काफी दर्द है, मेरे बहुत मना करने पर भी तुम्हारे बाबा मेरे लिए चाय बना रहे हैं, जरा तुम जा कर देख लो वे ठीक से चाय बना भी रहे हैं या नहीं. तुम तो जानती हो मैं ने कभी दूसरी औरतों की तरह इन्हें जोरू का गुलाम बना कर नहीं रखा, कभी इन से घर का कोई काम नहीं कराया इसलिए तो इन्हें ठीक से चाय बनाना भी नहीं आता. अब तुम आ ही गई हो तो जा कर जरा चाय बना लाओ और सुनो मेरे लिए पानी की गरम थैली भी ले आना. न जाने क्यों आज सुबह से मेरे घुटनों में भी दर्द है.’’

रोहिणी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करती उस से पहले ही रोहिणी के ससुर चाय और गरम पानी की थैली ले कर आ गए. रोहिणी को जल्दी आया देख कर बोले, ‘‘अरे बेटा तुम कब आई? पता होता तो तुम्हारे लिए भी चाय बना देता. लो तुम मेरी चाय ले लो. मैं अपने लिए दूसरी बना लेता हूं.’’

यह सूनते ही संपदा भड़क गई और कहने लगी, ‘‘ये कैसी बातें कर रहे हैं आप? घर में

बहू के होते हुए आप चाय बनाएंगे शोभा देगा क्या? आप चाय पीजिए, यह अपने लिए चाय खुद बना लेगी. तुम जाओ रोहिणी कुछ खाने के लिए भी बना कर ले आओ और अपने लिए चाय भी बना लेना.’’

रोहिणी की आंखें नम हो गईं. वह चिल्ला कर कहना चाहती थी कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, उसे किचन से आने वाले मसाले की स्मैल बरदाश्त नहीं हो रही है और वह इस वक्त आराम करना चाहती है लेकिन उस ने ऐसा कुछ नहीं कहा क्योंकि वह जानती थी कि यदि अभी वह कुछ भी कहेगी तो घर पर महाभारत छिड़ जाएगा और वह न डाक्टर के पास चैकअप के लिए जा पाएगी और न ही अभी आराम कर पाएगी इसलिए रोहिणी चुपचाप किचन में जा कर परेशानी होते हुए भी पकौड़े बना कर ले आई और संपदा के सामने रख कर अपने कमरे में चली गई.

संपदा नहीं चाहतीं कि रोहिणी के रहते कोई और घर के काम करे क्योंकि उन का मानना था कि घर की बहू को ही घर के सारे काम करने चाहिए, इसी में सास का मान और शान है. यदि अलंकार कभी रोहिणी की किचन में या किसी और काम में हाथ बंटाने की कोशिश भी करता तो वे अपने बेटे को जोरू का गुलाम कहने से नहीं चूकतीं. यह जुमला अलंकार के पुरुषत्व को ठेस पहुंचाता. यह बात संपदा बखूबी जानती थी. अलंकार इसलिए संपदा या घर के किसी अन्य सदस्य की उपस्थिति में रोहिणी की किसी भी प्रकार से मदद करने से कतराता. थोड़ी देर आराम करने के बाद भी रोहिणी की थकान दूर नहीं हुई.

तभी संपदा की आवाज आई, ‘‘रोहिणी… रोहिणी तुम्हारा आराम फरमाना हो गया हो तो रात के खाने की तैयारी शुरू कर दो, आज आनंद और संगीता आ रहे हैं. दोनों रात का खाना खा कर ही जाएंगे. कुछ अच्छा बना लेना.’’

रोहिणी सम?ा गई अब आराम कर पाना संभव नहीं क्योंकि जब भी उस की ननद संगीता और ननदोई आनंद घर आते हैं कोई अपनी जगह से हिलता तक नहीं है. पानी भी सब के हाथों में ले कर पकड़ाना पड़ता है.

संगीता और संपदा दोनों मांबेटी रूम में ऐसे जम कर बैठ जाती हैं जैसे बात करने के अलावा घर पर कुछ और काम ही न हो. ससुरजी और अलंकार भी बस आनंद के साथ ही बैठे रहते हैं और हर थोड़ी देर में चाय और उस के साथ

कुछ न कुछ खाने की फरमाइश का यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक संगीता और आनंद घर वापस नहीं लौट जाते और बेचारी रोहिणी दौड़दौड़ कर सब की फरमाइशें भी पूरी करती और संगीता के 2 साल के बेटे मोनू को

भी संभालती.

जब भी रोहिणी इस विषय में अलंकार से कुछ कहती तो उस का बस एक ही जवाब होता, ‘‘तुम क्या चाहती हो तुम्हारे रहते आनंद के सामने मां घर का काम करें या कुछ घंटों के लिए आई मेरी बहन तुम्हारा हाथ बंटाए? अपनी ससुराल में तो वह बेचारी काम करती ही है. अब यहां भी करे या फिर तुम यह चाहती हो कि मैं तुम्हारे आगेपीछे घूमूं, किचन में तुम्हारा हाथ बटाऊं ताकि लोग मु?ो जोरू का गुलाम कहें.’’

 

इतना सब सुनने के बाद रोहिणी के पास कुछ कहने को रह ही नहीं जाता और

उस की जबान पर बस यह बात आ कर ठहर जाती कि इतना पढ़नेलिखने के बाद आज भी लोगों की मानसिकता वहीं के वहीं है. अब भी उन की सोच में कोई बदलाव नहीं है. यदि कोई पति घर के काम करता है या फिर अपनी पत्नी का किसी काम में हाथ बंटाता है तो वह जोरू का गुलाम और पत्नी घर से बाहर जा कर अपने कार्य क्षेत्र में पूरा दिन काम करती है, अपने पति का आर्थिक रूप से सहयोग करती है, घर का पूरा काम करती है, घर के हर सदस्य के जरूरतों का खयाल रखती है तो वह क्या है? घर की बहू है या घर की गुलाम. रोहिणी अपने ही विचारों में खोई हुई थी कि संपदा ने फिर आवाज लगाई और रोहिणी तबीयत ठीक न होने के बावजूद किचन में आ कर काम करने लगी. उस ने सारा खाना आनंद और संगीता की पसंद अनुसार ही बनाया ताकि उसे यह सुनने को न मिले कि अरे यह क्या बना दिया, यह तो आनंद को पसंद नहीं या फिर यह तो संगीता नहीं खाती उस की पसंद का कुछ और बना दो.

खाना बनतेबनते ही अलंकार भी दफ्तर से लौट आया और थोड़ी देर में संगीता भी अपने पति और बेटे के साथ आ पहुंची. सभी को चायनाश्ता कराने के बाद जब रोहिणी ने अलंकार से कहा, ‘‘चलो हम डाक्टर के पास चलते हैं. तुम तो जानते हो मेरी तबीयत बिलकुल भी ठीक नहीं चल रही है, खाने के वक्त तक हम लौट आएंगे.’’

रोहिणी के ऐसा कहते पर अलंकार कहने लगा, ‘‘अरे यह तुम क्या कह रही हो? अभी संगीता और आनंद आए हुए हैं उन्हें इस तरह छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगेगा और फिर आनंद क्या सोचेगा मेरे बारे में. एक काम करते हैं कल चलते हैं.’’

आनंद से यह सब सुन रोहिणी से रहा नहीं गया और वह बोल पड़ी, ‘‘कोई क्या सोचेगा, कौन क्या कहेगा इस बात की चिंता है तुम्हें लेकिन बीवी की सेहत खराब है, वह उसी हालत में घर और बाहर के काम रह रही है इस बात का खयाल नहीं है क्योंकि तुम्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपनी इमेज की ही चिंता है. यदि मेरे साथ चले जाओगे तो कहीं कोई तुम पर यह व्यंग्य न कस दे कि देखो जोरू का गुलाम अपनी बीवी का पल्लू पकड़ कर चला गया, तो ठीक है तुम अपनी इमेज संभालो मैं मम्मीजी से बात कर लेती हूं और डाक्टर को दिखा आती हूं,’’ कह कर रोहिणी वहां से चली गई.

 

शादी के 1 साल बाद आज पहली बार रोहिणी ने इस प्रकार अलंकार से

बात की. इस से पहले उस ने कभी न अलंकार से और न ही घर के किसी दूसरे सदस्य से इस तरह ऊंची आवाज में बात

की थी.

रोहिणी गुस्से में तमतमाती हुई संपदा के कमरे की ओर बढ़ी, जहां संगीता और संपदा बातें कर रहे थे. जब रोहिणी कमरे के करीब पहुंची तो उस ने सुना संगीता अपने पति आनंद की शिकायत संपदा से कर रही है. वह कह रही थी, ‘‘मम्मी ये आनंद मेरी कोई बात नहीं सुनते और न ही मानते हैं, घर के किसी भी काम में मेरा हाथ नहीं बंटाते. घर का सारा काम और उस पर छोटे बच्चे को संभालना. मैं सुबह से ले कर शाम तक काम कर के थक जाती हूं. अगर मैं आनंद से कुछ करने को कहती हूं तो उलटा वे मु?ा से नाराज हो कर कहने लगते हैं कि मैं कोई जोरू का गुलाम नहीं हूं जो तुम्हारे इशारे पर काम करूं और यदि कभी आनंद हैल्प करना भी चाहें तो सासूमां इन्हें जोरू का गुलाम कह कर ताने देने लगती हैं. एक दिन तो सासूमां मु?ा से कहने लगीं कि तुम्हारे मायके में भी तुम्हरी भाभी ही सारा काम करती है जबकि वह तो जौब भी करती हैं फिर तुम क्यों नहीं कर सकती. मम्मी मैं तो तंग आ गई हूं, कुछ सम?ा ही नहीं आ रहा क्या करूं.’’

‘‘अरे तुम परेशान क्यों होती हो, तुम आनंद को सम?ाने की कोशिश करो. घरगृहस्थी अकेले से नहीं चलती पतिपत्नी दोनों को मिल कर इस गृहस्थीरूपी गाड़ी को चलाना पड़ता है. आनंद जरूर सम?ा जाएगा और तुम सब के सामने आनंद से कभी कुछ काम करने को मत कहा करो. तुम ने कभी देखा है, मैं तुम्हारे पापा से कभी किसी के सामने कुछ काम करने को कहती हूं नहीं न? ऐसा नहीं है तुम्हारे पापा चाय नहीं बनाते या घर का कोई काम नहीं करते, सब करते हैं लेकिन अकेले में इसलिए जब तुम दोनों अकेले में होते हो तभी आनंद से कुछ काम करने को कहा करो. इस से तुम्हारी सास को ताने मारने का मौका ही नहीं मिलेगा सम?ा?’’ संपदा सम?ाती हुई संगीता से कह रही थीं.

सारी बातें सुनने के बाद रोहिणी ने कमरे में यों प्रवेश किया जैसे उस ने कुछ सुना ही न हो. रोहिणी को कमरे में देख संपदा और संगीता ऐसे घबरा गई जैसे उन की कोई चोरी पकड़ी गई हो.

रोहिणी बढ़ी विनम्रतापूर्वक बोली, ‘‘मम्मीजी आज मेरी डाक्टर से अपौइंटमैंट है, मु?ो जाना है, मैं जल्दी ही लौट आऊंगी खाने के पहले.’’

समय की नजाकत को देखते हुए संपदा ने रोहिणी को जाने की इजाजत दे दी. जब रोहिणी घर लौटी तो अलंकार की आंखों में पछतावा और दुख था. वह जानता था कि रोहिणी को उस की जरूरत है. वैसे रोहिणी आत्मनिर्भर है. वह अकेले जा सकती है लेकिन रोहिणी के साथ जाना उस का फर्ज था और वे लोग क्या कहेंगे कि मायाजाल में फंस कर रह गया.

रोहिणी को देखते ही संपदा ने कहा, ‘‘सब ठीक तो है न? डाक्टर ने क्या कहा?’’

रोहिणी गहरी सांस भरती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी फिक्र की कोई बात नहीं है सब ठीक है बस कल एक टैस्ट करवाना है,’’ कह कर रोहिणी सब के लिए खाना परोसने लगी.

सभी के खाना खाने और संगीता व आनंद के जाने के पश्चात रोहिणी ने अलंकार को सम?ाया कि परेशान होने वाली कोई बात नहीं है क्योंकि अलंकार टैस्ट की बात सुन कर घबरा गया था. उस के चेहरे से यह बात साफ ?ालक रही थी.

दूसरे दिन जब शाम को रोहिणी की रिपोट आई तो पता चला कि रोहिणी मां बनने वाली है.

यह सुन कर सभी के चेहरे पर खुशी

की लहर दौड़ गई. रोहिणी को मां बनने की खुशी तो थी लेकिन वह यह बात भी जानती थी कि बच्चे के आने के बाद उस की जिम्मेदारियां और काम दोगुना हो जाएंगा क्योंकि अब भी रोहिणी की परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं था.

रोहिणी मां बनने वाली है यह जानने के बावजूद न संपदा घर के कामों में उस का हाथ बंटा रही थीं और न अलंकार. संपदा को घर के कामों में रोहिणी का हाथ बंटाना सास की शान के खिलाफ लगता और अलंकार जोरू का गुलाम नहीं कहलाना चाहता था. अब तो संपदा के ताने की लिस्ट में कुछ और ताने भी जुड़ गए थे जैसे आजकल की बहुएं तो पति को उंगलियों पर नचाना चाहती हैं, अरे भई हम ने भी तो 2-2 बच्चे जने हैं और उन्हें बिना किसी की मदद से बड़ा किया है. हमें तो कभी किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ी और आजकल की लड़कियां तो बस ससुराल वालों से काम कराने के मौके ढूंढ़ती रहती हैं.

रोहिणी घर के काम, दफ्तर के काम और अपनी प्रैगनैंसी की वजह से स्वास्थ्य में हो रहे उतारचढ़ाव से परेशान होने लगी थी लेकिन उसे कोई रास्ता ही नजर नहीं आ रहा था. वह अलंकार को सम?ा ही नहीं पा रही थी कि घर का काम करना या पत्नी का हाथ बंटाने का अर्थ जोरू का गुलाम नहीं होता.

 

अचानक रविवार की एक सुबह संगीता रोती हुई अपने बेटे मोनू के

साथ घर पहुंची. संपदा बेटी को इस हाल में देख कर घबरा गई. अलंकार और उस के पिता भी परेशान हो गए. संगीता लगातार बिना कुछ कहे रोए जा रही थी.

तभी रोहिणी संगीता को शांत कराती हुई बोली, ‘‘आखिर बात क्या है जो तुम इस तरह आ गई हो? कुछ तो बताओ?’’

तब संगीता रोती हुई कहने लगी, ‘‘भाभी, आनंद मेरी कोई हैल्प नहीं करते. आज सुबह मैं किचन में थी और मोनू ने अपनी ड्रैस गीली कर ली और जब मैं ने आनंद से कहा कि वे मोनू की ड्रैस चेंज कर दें तो वे मु?ा से ?ागड़ने लगे और कहने लगे कि यह तुम्हारा काम है, तुम संभालो और जब मैं ने कहा कि मैं किचन में इंगेज हूं तो आनंद मु?ा से कहने लगे कि मैं कोई जोरू का गुलाम नहीं जो तुम्हारे इशारे पर नाचूं और इतना ही नहीं आज तो आनंद ने मु?ा पर हाथ भी उठा दिया. अब आप ही बताइए भाभी अपने बच्चे के कपड़े बदलने से क्या कोई जोरू का गुलाम हो जाता है? ऊपर से यदि किसी दिन आनंद मेरी कोई हैल्प करना भी चाहें तो सासूमां उन्हें जोरू का गुलाम कह कर रोक देती हैं.’’

संगीता का इतना कहना था कि संपदा संगीता को डांटते हुए कहने लगीं, ‘‘मैं ने तुम से कितनी बार कहा है सब के सामने आनंद से काम करने को मत कहा कर. जो कहना है अकेले में कहा कर. तु?ो सम?ा नहीं आती क्या मेरी बात?’’

संपदा का इतना कहना था कि रोहिणी के संयम का बांध टूट गया और वह संपदा से कहने लगी, ‘‘क्यों अकेले में कहेंगी, पति जब चाहे सब के सामने अपनी पत्नी को थप्पड़ जड़ सकता है, जो मन में आए कह सकता है और पत्नी अपने पति से एक काम नहीं कह सकती. छोटी सी हैल्प की उम्मीद नहीं रख सकती क्यों? यह सब आप जैसे लोगों की दोहरी व निम्न मानसिकता का नतीजा है.

‘‘जब एक पत्नी, पति का हर छोटे से छोटा काम करती है तो वह पत्नी धर्म कहलाता है और पति का पत्नी के प्रति कोई धर्म नहीं है. मम्मीजी यदि आप संगीता को यह सम?ाने के बजाय कि अपने पति से अकेले में काम के लिया कहा कर आनंद को यह सम?ातीं कि पत्नी का हाथ बंटाने से पति जोरू का गुलाम नहीं होता तो यह नौबत नहीं आती. किसी ने बिलकुल ठीक ही कहा है बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाएं.’’

जब रोहिणी यह सब कह ही रही थी आनंद भी वहां आ गया था और सिर ?ाकाए खड़ा था. अलंकार की आंखें भी शर्म और पछतावे से ?ाकी हुई थीं. संपदा को भी इस बात का दुख था कि वह स्वयं एक नारी हो कर नारी के दर्द को सम?ाने में चूक गई.

अभी यह सब चल ही रहा था कि रोहिणी के ससुर सब के लिए चाय बना कर ले आए.

यह देख कर संपदा ने कहा, ‘‘चाय के साथ नमकीन भी हो जाए.’’

यह सुन कर रोहिणी किचन की ओर मुड़ी ही थी कि अलंकार ने कहा, ‘‘तुम आराम से बैठो नमकीन मैं ले आता हूं क्योंकि अब मैं सम?ा चुका हूं कि पत्नी का हाथ बंटाने से पति जोरू का गुलाम नहीं हो जाता.’’?

यह सुन कर पूरा हौल ठहाकों से गूंज उठा.

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