‘‘नहीं दीदी, आप न नहीं कहोगी. पहले भी तो 2 बार आप ऐसे टूर टाल चुकी हैं. अब फिर आप को मौका दिया जा रहा है, तो फायदा उठाइए न. फिर आप ही तो बता रही थीं कि इस ट्रेनिंग के बाद प्रमोशन का चांस भी मिल सकता है,’’ पम्मी ने चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए फिर से वही जिक्र छेड़ दिया.
सुनीता अपना चाय का कप उठाते हुए बोली, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन. मुझे इस ट्रेनिंग से कोई खास फायदा नहीं होगा और न ही मैं अगले प्रमोशन के लिए अधिक लालायित हूं. हां, हमारे ही बैंक के किसी और सहयोगी को अगर यह चांस मिलता है, तो उस को व उस के परिवार को अधिक लाभ पहुंचेगा. फिर रामबाबू, सुधीरजी जैसे लोग तो अपनेअपने परिवार को भी साथ ले जाना चाह रहे हैं, घूमने के लिए.’’
‘‘दीदी, जब बौस ने आप की सिफारिश की है, तो रामबाबू, सुधीर, ये सब कहां से टपक पड़े? आप सब से सीनियर हो, आप को चांस मिल रहा है बस... मैं अब और कुछ सुनने वाली नहीं हूं. मैं तो 3 दिन की छुट्टी ले कर आई ही इसलिए हूं कि आप के जाने की तैयारी करा दूं... आप तैयार हो जाओ, बाजार चलती हैं. मैं तब तक आप की वार्डरोब चैक करती हूं कि क्याक्या लेना है आप को,’’ कहते हुए पम्मी ने चाय के बरतन समेटने शुरू कर दिए.
‘‘तू भी जिद की पक्की है,’’ कह सुनीता को हंसी आ गई.
वैसे देखा जाए तो सुनीता से रिश्ता भी क्या है पम्मी का... बस जब तक यहां इस की नौकरी थी तो इसी फ्लैट में सुनीता के साथ रही थी. फिर अपनापन इतना बढ़ा कि सगी बहन से भी अधिक स्नेह हो गया. अब शादी कर के दूसरे शहर चली गई तो भी आए दिन फोन पर बात करती रहती है. फिर पता नहीं कैसे इसे टूर की भनक लगी तो बिना बताए आ धमकी.