वह जनवरी की सर्द सुबह थी जब मैं ने पहली बार पीजी गर्ल्स होस्टल में प्रवेश किया था. वहां का मनोहारी वातावरण देख मन प्रफुल्लित हो गया. होस्टल के मुख्यद्वार के बाहर एक तरफ आम का बगीचा, खजूर और जामुन के पेड़ थे तो दूसरी तरफ बड़ेबड़े कैंपस वाले प्रोफैसर्स क्वार्टर. बीच में फूलों के खूबसूरत गार्डन के बीच 2 गर्ल्स होस्टल थे. एक तरफ साइंस होस्टल और दूसरी तरफ आर्ट्स होस्टल. गेट के अंदर पांव रखते ही लाल-लाल गुलाब, गेंदे, सूरजमुखी के फूलों की महक और रंगत ने मेरा इस तरह स्वागत किया कि पहली बार नए होस्टल में आने की मेरी सारी घबराहट उड़नछू हो गई.
सुबह के 11बज रहे थे लेकिन कुहासे की वजह से ऐसा लग रहा था मानो सूरज की किरणें अभीअभी बादलों की रजाई से निकल कर अलसाई नजरों से हौलेहौले धरती पर उतर रही हों. ओस की बूंदों से नहाई हरीभरी, नर्म, मखमली दूब पर चलते हुए मैं ने आर्ट्स होस्टल की तरफ अपना रुख किया. सामने गार्डन में 2 लड़कियां बैठी चाय पी रही थीं. एक बिलकुल दूधिया गोरीचिट्टी, लंबे वालों वाली बहुत सुंदर सी लड़की और दूसरी हलकी सांवली, छोटेछोटे घुंघराले बालों वाली लंबी, दुबलीपतली व बहुत आकर्षक सी लड़की.
मैं ने उन दोनों के करीब जा कर पूछा, ‘रागिनी सिंह, साइकोलौजी डिपार्टमैंट, फिफ्थ ईयर किस तरफ रहती हैं?’ गोरी वाली लड़की ने इशारा किया, इधर और घुंघराले बालों वाली लड़की ने कहा, ‘मैं ही हूं. कहो, क्या बात है?’
मैं ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मैं, अनामिका शर्मा, इतिहास डिपार्टमैंट से हूं. मैं ने यहां ऐडमिशन लिया है. जब तक सीनियर्स रूम खाली नहीं कर देतीं, तब तक मुझ से होस्टल वार्डन ने इंतजार करने को कहा था. लेकिन मुझे रोज 40 किलोमीटर दूर से आ कर क्लास करने में तकलीफ होती थी, इसलिए मुझे मेरे क्लासमेट और आप के पड़ोसी संजीव सिंह ने आप के पास भेजा है. उस की बड़ी बहन फाइनल ईयर में हैं, लेकिन वे इस साल इम्तिहान नहीं दे पाएंगी और होस्टल छोड़ रही हैं. इसलिए रूम न. 101 की चाबी उस ने मुझे दी है और कहा है कि मैं उस की बहन का जरूरी सामान आप के हवाले कर के इस रूम में शिफ्ट हो जाऊं.’ मैं ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की.
रागिनी ने चौंक कर कहा, ‘रूम न. 101? अरे वाह भाई संजीव, मुझे नहीं दिलवाया. होस्टल का सब से शानदार कमरा तुम्हें दिलवा दिया.’ रागिनी का चेहरा थोड़ी देर को बुझ गया लेकिन अगले ही पल वह मेरा सामान पकड़ कर मुझे मेरे कमरे में शिफ्ट करवाने में उत्साह से लग गई.
दरअसल, होस्टल में फिफ्थ ईयर वाले स्टूडैंट्स के लिए डबलबैड के कमरे नीचे के फ्लोर में थे और सिक्स ईयर में ऊपर के फ्लोर में सिंगलबैड रूम था. मेरा कमरा ऊपर के फ्लोर में बालकनी के बिलकुल सामने था जहां बैठ कर होस्टल में आनेजाने वाले सभी लोग दिखाई देते थे. साथ ही, होस्टल के गार्डन का नजारा, फूलों की खुश्बू, तलाब और आम के पेड़ से आती ठंडी हवा व कोयल की कूक का खूब आनंद मिलता था. इसलिए अपनेअपने डिपार्टमैंट से आने के बाद ज्यादातर लड़कियां शाम ढलते ही मेरे कमरे के बाहर बनी विशाल बालकनी में कुरसी डाल कर बैठ जातीं व खूब मजाकमस्ती किया करती थीं. रागिनी और उस की सहेलियों के झुंड का हिस्सा बनने में मुझे देर नहीं लगी.
जल्दी ही रागिनी से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. एक तो संजीव मेरा क्लासमेट था, और दूसरे, रागिनी से उस के घरेलू संबंध थे. इस वजह से हमारा परिचय प्रगाढ़ हो गया था. इस के अतिरिक्त उसे मेरे रूम के सामने की बालकनी बहुत पसंद थी और मेरी चाय पीने की आदत. चाय रागिनी को भी बहुत पसंद थी लेकिन हमारे होस्टल के मैस में चाय मिलने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए यह तय हुआ कि मेरे रूम में सुबहशाम की चाय बना करेगी और हम दोनों साथ पिया करेंगी. सुबह की चाय हमेशा वह ही बनाया करती थी और शाम की मैं.
दरअसल, मेरी सुबह देर से उठने की आदत थी. मैं 8-9 बजे तक सोया करती थी और इतनी देर में रागिनी नहाधो कर तैयार हो कर मेरे साथ चाय पीने को चली आया करती. पूरे अधिकार व बड़े प्यार से मेरे कमरे में आ कर मेरे बालों को कभी झकझोर कर, कभी सहला कर मुझे उठाती, और मां की तरह कहती, ‘चलो उठो, सुबह हो गई. जाओ तो जल्दी से ब्रश कर के आओ, तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’
मेरे फ्रैश हो कर आने तक वह बड़ी तरतीब से मेरा बिस्तर, मेरी किताबें सही करती, स्टोव जला कर बढ़िया चाय बनाती और बाहर बालकनी में चेयर निकाल कर मेरे आने का इंतजार करती. मुझे उस के इस अपनत्व और परवा पर बड़ा आश्चर्य होता. 2 दिनों के परिचय में भला किसी अजनबी का कोई इस हद तक कैसे ख़याल रख सकता है. मैं ने एकाध बार उस से कहा- ‘रागिनी, मुझे लगता है जैसे तुम पिछले जन्म की मेरी मां हो. क्यों करती हो मेरी इतनी परवा?’
रागिनी अपने माथे पर झूलती घुंघराले बालों की लटों को झटक कर कहती- ‘क्योंकि तुम एकदम मेरे भइयू की तरह हो. वैसे ही सिर पर तकिया रख कर सोती हो. मेरी एकएक बात ध्यान से सुनती हो. एकदम वैसे ही बात करती हो जैसे मेरा भइयू कहता है.’
‘बउवा, तू तो मेरी मां से भी ज्यादा मां है रे. रोज सुबह से शाम तक मेरा इतना ख़याल तो मेरी मां भी नहीं रखती.’ ‘घर पर भी मैं बहुत सवेरे उठती हूं. अम्माबाऊजी को सुबह का चायनाश्ता दे कर भइयू को उठाना और चाय बना कर पिलाना मेरी आदत है. वह अपना बिस्तर और किताबें तुम्हारी ही तरह कभी सही नहीं करता. सब मैं करती हूं.’
मैं ने एक बार पूछा… ‘भइयू तुम्हारा भैया है, रागिनी? रागिनी ने उदास हो कर कहा- ‘नहीं, मेरा कोई भाई नहीं. अम्मा, बाऊजी और मैं घर के पुराने वाले हिस्से में रहते हैं. बाहर नए 4 कमरे बाऊजी ने बनवाए थे, उसी में किराए में भइयू, उस की बहनें गुड्डन, बिट्टन और आंटीअंकल रहते हैं. वे लोग मेरे बचपन के समय से हमारे घर में रह रहे हैं और हमारे परिवार के सदस्य की तरह हैं. गुड्डन, बिट्टन मेरी सहेलियां हैं, वे लोग अपने बड़े भाई आशीष भैया को भइयू कहती हैं, तो मेरा भी वह भइयू बन गया. अम्मा, बाऊजी मुझे बउवा कहते हैं तो भइयू की मैं बउवा बन गई.’
रागिनी की हर बात में भइयू का जिक्र रहता. वह पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी. जब भी कोई उस के अच्छे मार्क्स या सुंदर हैंडराइटिंग की बात करता, वह झट से कहती- ‘यह तो भइयू की वजह से है. बचपन से मुझे भइयू ने पढ़ाया है. मेरे नोट्स वही तैयार करता है और मेरी राइटिंग उन की राइटिंग देखदेख कर ऐसी बनी है.’