शामक उसे अस्पताल में एक दिन भी देखने नहीं आया और चाचा भी नहीं आए. शायद शामक ने उन्हें अस्पताल जाने से मना कर दिया था.
डाक्टरों की निगरानी और दवाइयों के असर से नीमा के शरीर के घाव तो भर गए थे पर भला उन घावों का क्या जो उस के पति ने नीमा के मन पर दिए थे. नीमा कभी हंसने लगती और कभीकभी चुप हो जाती.
डाक्टरों ने नीमा को फिजिकली फिट घोषित तो कर दिया पर कहा कि
उसे किसी बात से मानसिक आघात लगा है और ये अपने मन की बात हम से शेयर नहीं कर पा रही हैं इसलिए एक मनोचिकित्सक के द्वारा इन के मन की बातों को बाहर निकलवाने की जरूरत है ताकि मानसिक दबाव कम रहे. अस्पताल में ही मौजूद एक काउंसलर को बुलाया गया जो नीमा से उस के मन में छिपे दर्द के बारे में बातें करे और दबी परतों को जान सके ताकि नीमा का इलाज सही दिशा में चले.
नीमा अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी. तभी एक युवक उस के कमरे में दाखिल हुआ. यही युवक वह व्यक्ति था जो नीमा की काउंसलिंग करने वाला था. उस ने आसमानी रंग की शर्ट और नीले रंग की पैंट पहनी हुई थी. नीमा की आंखें उस युवक पर पड़ीं तो वह सन्न रह गई. नीमा को सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? कहां जाए? युवक कोई और नहीं बल्कि युवान था. उस के साथ में 2 जूनियर्स देख कर नीमा सम झ गई कि युवान इसी अस्पताल में नौकरी कर रहा है पर नीमा को युवान को व्हीलचेयर पर देख कर बहुत दुख हो रहा था.