आखिर एक पार्टी में राजेश से मुलाकात हो ही गई. रेखा ने जबरन अपने चेहरे पर मुसकान बिखेरते हुए पूछा, ‘‘अरे, ईद का चांद आज कैसे दिखाई दे दिया.’’
‘‘अगर यही मैं कहूं तो?’’
‘‘बहुत गस्से में हो?’’
‘‘मेरे गुस्से की तुम्हें क्यों इतनी फिक्र होने लगी?’’
‘‘मुझे नहीं तो और किसे होगी? अब और कितना तड़पाओगे?’’
‘‘मैं कौन होता हूं तड़पाने वाला?’’
‘‘अब फैसला करने का वक्त आ गया है,
राजेश, मैं बारबार तुम्हारी मिन्नतें नहीं करूंगी.’’
‘‘हम ने जो तय किया था क्या वह भूल गईं?’’
‘‘मगर मेरे घर वाले अब ज्यादा दिनों तक रुकने के लिए तैयार नहीं हैं. मेरी शादी के लिए काफी रिश्ते आ रहे हैं. पिताजी ने भी उस दिन बातोंबातों में पूछ लिया कि क्या तुम्हें कोई लड़का पसंद है?’’
‘‘अरे, बाप रे. तुम ने कहीं मेरा नाम तो नहीं बताया न?’’
‘‘नहीं, क्योंकि मैं चाहती हूं कि तुम खुद घर आ कर अपना परिचय दो.’’
खाने की टेबल के पास सभी लोग आ जाने से उन की बातचीत वहीं रुक गई. उस ने तय किया कि वह खुद ही घर वालों को सब बता देगी.
रेखा के घर आते ही भाई ने मजाक करते हुए कहा, ‘‘क्यों रेखा, शादी करने का विचार है या नहीं? अरे भई, मैं भी अभी कुंआरा हूं.’’
‘‘रेखा की शादी होने पर मैं भी चैन की सांस लूंगा,’’ पिताजी ने कहा.
‘‘लड़कियों के लिए शादी, बच्चे, घरसंसार सभी वक्त पर हों तो ही अच्छा है,’’ मां ने चिंता भरे स्वर में कहा.
काफी सोचने के बाद रेखा ने तय
किया कि आज वह पिताजी को सब बता
देगी. आखिर यह दिनरात की टेंशन कौन
पाले? राजेश कोई निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं है. अब पिताजी ही मुझे सही राह दिखा सकते हैं.
उस ने हिम्मत जुटाई. पिताजी से जो कहना है, मन में उस की पूरी तैयारी कर ली. फै्रश हो कर चाय का कप लिए वह पिताजी
के पास आ कर बैठ गई, मगर तभी उस का मौसेरा भाई मनी काफी दिनों बाद घर आया.
उस से बातचीत और चुटकुलों में 2 घंटे यों ही बीत गए.
‘‘रेखा बेटी, मेरे लिए जरा पानी लाना,’’
पिताजी के कमरे से आवाज आई.
पिताजी के लिए पानी ले कर जाते वक्त उस ने यह जान लिया कि आज फिर कोई नया रिश्ता आया होगा. शायद मनी भैया ही यह रिश्ता ले कर आए होंगे. अगर पिताजी ने
शादी का जिक्र छेड़ा तो मैं राजेश के बारे में उन्हें सब कुछ बता दूंगी. यही निश्चय कर
वह कमरे में दाखिल हुई. पानी का गिलास टेबल पर रख कर वह पलंग के किनारे खड़ी हो गई.
‘‘बेटी, मुझे तुम से कुछ बात करनी
है,’’ पिताजी के खुद ही विषय छेड़ने पर उस का काम और आसान हो गया. अब कहां से शुरू करूं, वह अभी यही सोच रही थी कि पिताजी ने कहा, ‘‘दोपहर में राजेश घर
आया था.’’
यह सुनते ही उस का दिल धड़क
उठा. इस अप्रत्याशित घटना का सामना
वह कैसे कर सकती थी, लिहाजा खामोश
खड़ी सोचती रही. कितना छिपा रुस्तम है राजेश. मैं ने उस की इतनी मिन्नतें कीं, तब इनकार करता रहा और अब खुद ही हाथ
मांगने आ गया. पिताजी को वह जरूर पसंद
आ गया होगा. आखिर पसंद किस की है? मगर पिताजी के हावभावों से कैसे अंदाजा लगाया जाए?
‘‘राजेश किस तरह का लड़का है?’’ पिताजी ने पूछा.
‘‘अच्छा है, हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. उस का स्वभाव, व्यक्तित्व, पढ़ाई, लगन, जिद, महत्त्वाकांक्षा सभी मुझे पसंद हैं. इस के अलावा हम दोनों एक ही नौकरी में होने
के कारण एकदूसरे की समस्याएं, काम के
लिए लगने वाला समय आदि सभी बातों
से अच्छी तरह परिचित हैं. इसलिए मेरे
नौकरी करने पर उसे कोई आपत्ति नहीं होगी. पिताजी, राजेश के साथ शादी कर के मैं
सुखी रहूंगी.’’
‘‘अच्छी तरह सोच लिया है?’’
‘‘जी हां, हम दोनों एकदूसरे के अनुरूप हैं, पढ़ाई, स्वभाव, नौकरी आदि सब मामलों में.’’
‘‘उस की जाति के बारे में कभी पूछा
है?’’
‘‘जाति? जी नहीं, कभी जरूरत ही नहीं पड़ी और आप भी तो जातिभेद वगैरह में विश्वास नहीं करते हैं. इसलिए मैं ने कभी उस से इस बारे में नहीं पूछा.’’
‘‘हां, यह सच है कि मैं जातिभेद में विश्वास नहीं करता हूं. मगर शादीब्याह में पूछताछ भी तो जरूरी होती है, क्या तुम्हें उस का पूरा नाम पता है?’’
‘‘पूरा नाम? राजेश सावंत.’’
‘‘जिस के साथ तुम पूरी जिंदगी गुजारने जा रही हो, उस का पूरा नाम भी तुम्हें पता
नहीं है?’’
वह खामोश खड़ी रही.
‘‘उस का पूरा नाम जानना चाहती हो, क्या
है? राजेश उर्मिला सावंत.’’
‘‘क्या?’’
‘‘हां, क्योंकि उस की सिर्फ मां है, उस के पिता के बारे में न उसे और न ही उस की मां को कुछ पता है.’’
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’
‘‘मैं सच कह रहा हूं, बेटी, उसे अपने पिता के बारे में कुछ पता नहीं है और न ही उस की मां को पता है, क्योंकि उस की मां एक वेश्या थी और राजेश एक वेश्या का बेटा है.’’
‘‘नहीं, यह सब गलत है, राजेश मेरे साथ
ऐसा नहीं कर सकता है. उस ने मुझे अंधेरे में रखा है, पिताजी, उस ने मेरे साथ विश्वासघात किया है,’’ और वह पिता के गले लग कर रोने लगी.