‘‘नहीं रेखा, उस ने तुम्हारे साथ कोई विश्वासघात नहीं किया है, बल्कि तुम खुद अंधी बन कर उस से प्यार कर रही थीं. अगर वह तुम्हें अंधेरे में रखना चाहता तो आज मुझ से मिलने नहीं आता और न ही अपनी हकीकत बताता. तुम जैसी खूबसूरत, होशियार और अच्छे घर की लड़की, उस से शादी करने के लिए पीछे पड़ी होने के बावजूद उस ने अपने मन पर संयम रखा.
नासमझी तो तुम कर रही थीं, जो उस का पूरा नाम, उस की हकीकत जाने बगैर उस से शादी करने चली थीं. जिस के साथ तुम पूरी जिंदगी बिताना चाहती हो उस का पूरा नाम, उस की सारी हकीकत जानना, तुम ने कभी मुनासिब नहीं समझा. शादी जैसा जिंदगी का अहम फैसला तुम सिर्फ जज्बातों के सहारे कर रही थीं. कितनी बड़ी गलती तुम करने जा रही थीं. तुम्हें मुझे भी विश्वास में लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई.’’
‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है, अब मैं क्या करूं, पिताजी?’’
‘‘ठंडे दिमाग से सोचो. राजेश हमें भी पसंद है. तुम दोनों एकदूसरे के लायक हो, एकदूसरे को संतुष्ट कर के तुम दोनों अपनी गृहस्थी को सुखी रख सकते हो, मगर राजेश अब भी अपनी मां के साथ उसी बस्ती में रहता है और भविष्य में भी वहीं रहेगा, क्योंकि वह अपनी मां को दुखी नहीं करना चाहता है. अपनी मां का अपमान वह सहन नहीं कर पाएगा.
आखिर इतना दुखदर्द सह कर, संघर्ष कर उस की मां ने उसे पढ़ालिखा कर काबिल इनसान बनाया है, उसे वह भला अपने से दूर कैसे रख सकता है? इसलिए अब यह फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम इसे चुनौती समझ कर राजेश को अपनाना चाहोगी? उस की मां को उस के पूर्व इतिहास के बावजूद सास का दर्जा देना चाहोगी?