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‘‘तुम्हारे टेलैंट को मैं मान गई, लोग एक नौकरी को तरसते हैं और तुम्हारे पास तो औफर्स की लाइन लगी हुई है,’’ नीमा ने युवान की प्रशंसा करते हुए कहा.

नीमा की इस बात को सुन कर युवान के चेहरे पर एक मुसकराहट तैर आई. उस ने उस का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘दरअसल, मैं ऐसी नौकरी करना चाहता हूं जिस में मैं निराश लोगों के मन में छिपा दर्द बाहर निकाल कर प्रेरणा भर सकूं और उन की जिंदगी बेहतर कर सकूं.’’

‘‘अच्छा, तो लगता है कि साहब मनोचिकित्सक बनना चाहते हैं. चलो ठीक है हमारे दिलोदिमाग का भी ध्यान रखिएगा,’’ कह कर नीमा ने युवान को इस तरह निहारा जैसे उसे अपने प्रेमी युवान के इस फैसले पर बड़ा नाज हो.

युवान और नीमा एकदूसरे से विश्वविद्यालय की कैंटीन में मिले थे जहां पर युवान अपने दोस्तों के साथ बैठा हुआ मोटिवेशनल बातें कर रहा था. युवान की बातें नीमा को सुहा रही थीं. नीमा उस के हाथों की मुद्राएं और चेहरे की भावभंगिमाएं देख रही थी, कितना आत्मविश्वास था युवान की बातों में और युवान के हर तर्क के साथ उस का ओजपूर्ण चेहरा और भी चमकीला हो उठता था. कहना गलत नहीं होगा कि युवान को देखते ही पहली नजर का प्यार हो गया था और यह बात नीमा ने युवान को बताने में देर भी नहीं करी और उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया.

नीमा एक लंबी छरहरी काया की सुंदर और बेबाक लड़की थी शायद इसीलिए युवान ने भी उस का दोस्ती का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था. उस समय युवान मनोविज्ञान में परास्नातक की पढ़ाई कर रहा था जबकि नीमा मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई कर रही थी. दोनों ने धीरेधीरे जान लिया कि बहुत कुछ कौमन है. युवान और नीमा की दोस्ती बढ़ी तो पसंद और खयाल भी मिलने लगे. दोनों के तो प्रेम का अंकुर भी फूट गया और दोनों को लगने लगा कि इस प्रेम को रिश्ते में बदलना ठीक रहेगा. अत: दोनों ने अपनी पसंद अपनेअपने घर वालों को बताई. लड़कालड़की दोनों सम   झदार और काबिल थे इसलिए घर वालों ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी.

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