Latest Hindi Stories : सुनीला गहरी नींद में थी कि उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं. नींद की बेसुधी में उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह कहां है. फिर उसे हलकेहलके स्वर में ‘नीलानीला’ सुनाई देने लगा तो अचकचा कर नाइट लैंप जला दिया. तब उसे महसूस हुआ कि वह तो गोवा के एक होटल में है घर पर नहीं. पर किस की आवाज थी? कौन रात के 2 बजे थपथप कर रहा है?
मोबाइल में टाइम देखते हुए सुनीला ने सोचा, फिर थपथप की आवाज आई. आवाज की दिशा में उस ने घूम कर देखा कि बड़ी सी कांच की खिड़की को कोई बाहर से ठोक रहा है. सुनीला के बदन में सिहरन सी दौड़ गई जब देखा कि परदे खिसके हुए हैं और उस पार वही लड़का है जो उसे बीच पर मिला था.
‘‘हाऊ डेयर यू?’’ कहती सुनीला अपनी अस्तव्यस्त नाइटी को संभालने लगी, ‘‘गोगो… हैल्पहैल्प,’’ चिल्लाने लगी.
खिड़की के उस पार वह खड़ा कैसे है? यह सोच कर उस की धड़कनें तेज हो गईं. जल्दी से उस ने अपना चश्मा पहना और रिसैप्शन को फोन करने लगी.
इस बीच वह शीशे के पार से कुछ कह रहा था मानो कुछ इशारे भी कर रहा था और वही शौर्ट्स पहने हुए था जो शाम को उस ने पहना था. तभी दरवाजे पर बेल बजी, हलकी आवाज में कोई बोल रहा था, ‘‘आप ठीक तो हैं मैडम?’’
सुनीला ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया. होटल का कोई कर्मचारी था. सुनीला ने आंख बंद कर खिड़की की तरफ इशारा किया.
‘‘यहां तो कोई नहीं है मैम, आप को कोई गलतफहमी हुई है. फिर वहां तो किसी के खड़े होने की जगह ही नहीं है,’’ कहते हुए होटल कर्मचारी ने परदे खींच दिए और न डरने की हिदायत दे कर चला गया.
सुनीला की आंखों से नींद उड़ चुकी थी. वह अब भी रहरह कर परदे खींचे खिड़की की तरफ देख रही थी और सहम रही थी. उसे महसूस हो रहा था कि वह अब भी वहीं खड़ा है. फिर चादर खींच, आंखें भींच सोने की असफल कोशिश करने लगी.
आज ही सुबह तो वह रांची से यहां अपनी दोस्त रमणिका के साथ पहुंची थी. गोवा आने का प्रोग्राम भी तो अचानक ही बना था. कुछ ही दिनों पहले रमणिका उस के घर आई हुई थी, घर में बहुत सारे मेहमान आए हुए थे जिन्हें सुनीला जानती भी नहीं थी. रमणिका को देखते ही वह खुश हो उठी.
‘‘अच्छा हुआ तुम आ गईं. मैं बिलकुल परेशान थी. न जाने कौनकौन लोग आए हुए हैं
2 दिनों से. बारबार मुझ से पूछ रहे हैं मुझे पहचाना बेटा? तंग हो कर मैं दरवाजा बंद कर बैठी हुई थी.’’
‘‘हां, मुझे तेरी मम्मी का फोन आया था कि तू परेशान है.’’
रमणिका ने कहा, ‘‘चल कहीं घूम कर आते हैं, तेरा मन बहल जाएगा.’’
‘‘हूं, रांची में अब क्या बचा है देखने को, बचपन से कई बार हर स्पौट पर जा चुकी हूं,’’ सुनीला ने रोंआसी हो कर कहा.
‘‘गोवा चलेगी?’’
रमणिका का ऐसा कहना था कि सुनीला खुशी से उछल पड़ी, ‘‘हां, वह तो सपना रहा है कि कभी गोवा जाऊंगी. मेरा तो मन था जब शादी होगी तो हनीमून मनाने वहीं जाऊंगी. चल अब जब शादी होगी तब की तब देखी जाएगी, अभी तो घर के इस दमघोटू माहौल से मुझे रिहाई चाहिए.’’
शाम होतेहोते उसी दिन होटल, हवाई टिकट सब बुक हो गए.
आज सुबह ही दोनों सहेलियां गोवा पहुंची थीं. होटल में सामान रख कर दोनों बीच पर गई ही थीं कि रमणिका को कोई जरूरी फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत अचानक खराब हो गई और वह तुरंत रांची वापस जाना चाहती थी. सुनीला
का भी चेहरा उतर गया, पर रमणिका भी और सुनीला की मम्मी ने भी समझाया कि वह अकेले ही घूम ले.
‘‘बुकिंग बरबाद हो जाएगी, तू अकेले ही घूम ले. अपनी ही देश में है कोई विदेश में थोड़ी न हो. याद है क्वीन मूवी में तो कंगना ने अकेले ही घूम लिया था,’’ कहती हुई रमणिका वापस चली गई.
सच कहा जाए तो सुनीला को यह पसंद नहीं आया था पर सबकुछ इतनी जल्दीजल्दी हुआ कि वह विमुख सी खड़ी रह गई बीच पर.
कुछ देर समुद्र किनारे टहलने के बाद वह किनारों पर बने एक अच्छे से रेस्तरां की खुली जगह पर लगी कुरसी पर बैठ गई.
वहां से समुद्र का सुंदर नजारा दिख रहा था. उस का सिर अब तक भन्ना रहा था. न जाने कुछ महीनों से उसे क्यों ऐसा ही हर वक्त महसूस हो रहा था जैसे कुछ खो गया हो और दिल बेचैन सा रहता.
‘‘अरे आप अकेली क्यों बैठी हैं?’’ किसी की आवाज आई तो सुनीला ने पलट कर देखा.
एक हैंडसम सा लड़का यों कहें युवा रंगबिरंगे फूलों वाला शौर्ट्स पहन कर बड़ी धृष्टता से सामने की कुरसी खींच बैठ चुका था.
‘‘वह मेरी सहेली… अभीअभी कहीं गई है, आती ही होगी,’’ अचकचाते हुए सुनीला के मुंह से निकल पड़ा, फिर खुद को संभालते हुए बोल्ड फेस बनाते हुए कहा, ‘‘आप कौन हैं? यहां मेरे साथ क्यों बैठ रहे हैं?’’ उस के माथे पर पसीना छलछला गया था.
‘‘अरे आप घबरा क्यों रही हैं, बैठिएबैठिए. दरअसल, मैं आप की फ्रैंड को जानता हूं. मेरा नाम अनुदीप है आप चाहें तो दीप बुला सकती हैं. सुनीला क्या मैं तुम को नीला कह कर पुकारूं?’’
अचानक सुनीला के माथे पर सैकड़ों हथौडि़यां चलने लगीं और वह पीड़ा से छटपटाने लगी. जब होश आया तो खुद को उसी की बांहों में पाया जो पानी के छींटे मारते हुए बदहवास सा, ‘‘नीला… नीला…’’ कह रहा था.
खुद को संभालते हुए सुनीला उठ बैठी और अजनबियत निगाहों से तथाकथित अनुदीप को घूरते हुए अपने को उस से अलग किया और जाने का उपक्रम करने लगी.
‘‘नीला एक कप कौफी तो पीते जाओ, बेहतर महसूस करोगी.’’
सुनीला ने उस की यह बात मान ली. भयभीत हिरनी सी उस की आंखें अब भी सशंकित थीं.
‘‘नीला प्लीज डरो मत, मुझे ध्यान से देखो. क्या हम पहले कभी नहीं मिले हैं, ऐसा तुम्हें नहीं लग रहा?’’
सुनीला नजरें नीची कर कौफी पीती रही, ‘हूं… बीच पर दारू पी कर खुद के होशहवास गुम हैं जनाब के और मजनूं बन रहे हैं, पर मेरा नाम इसे कैसे पता है? बातें गडमड होने लगीं, कहीं रमणिका ने…’ उस ने मन ही मन सोचा.
शाम की बातें सोचतेसोचते जाने कब वह फिर सो गई. सुबह देर तक सोती रही कौंप्लीमैंट्री ब्रेकफास्ट का वक्त निकल गया था.
रैस्टोरैंट में फिर वही सामने था, ‘‘नीला, लगता है तुम भी देर तक सोती रह गईं मेरी तरह.’’
व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में वह वाकई अच्छा दिख रहा था. सुनीला ने कनखियों से देखा. सहसा उसे रात की बात याद आ गई.
‘‘आप रात के वक्त मेरी खिड़की के सामने क्यों खड़े थे? मुझे तो लगा कि…’’ सुनीला ने बात अधूरी छोड़ दी.
‘‘मैं तो तुम्हारा हाल पूछने आया था, पर तुम चिल्लाने क्यों लगीं और तुम्हें क्या लगा?’’
‘‘लगे तो तुम मुझे भूत थे और अब भी लग रहा है जैसे कोई भूत पीछे पड़ गया हो… हर जगह दिखाई दे रहे हो,’’ कहतेकहते सुनीला की आंखों में भय के डोरे पड़ने लगे क्योंकि सहसा ही वह वहां से गायब हो चुका था.
अगले कुछ क्षणों में सुनीला होटल के चौकीदार से गोआनी भूतों के किस्से सुन रही थी. डर से उस का रोआंरोआं कांप रहा था, भूतप्रेत पर वह पहले भी विश्वास करती ही थी. जब वह चौकीदार से बातें कर रही थी तो उसे दूर वह फिर फोन पर बाते करते हुए टहलता दिखा. अजीब असमंजस में सुनीला पड़ गई. उस ने चौकीदार से पूछा, ‘‘क्या आप को उधर सफेद शर्ट वाला व्यक्ति दिखाई दे रहा है?’’ उंगलियों से इंगित करते हुए उस ने पूछा, पर तब तक उस की ही आंखों से ओझल हो गया.
उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि क्या करे. इस बीच मम्मी के कई फोन आ चुके थे. दिन में क्या कर रही हो, किधर घूमने जा रही हो?
‘‘याद है न बेटा डाक्टर ने क्या कहा था,’’ मम्मी बोल रही थी.
इधर कुछ दिनों से रांची के कई चिकित्सकों से वह मिल चुकी थी. उस की पैर की हड्डी टूटी थी सो अस्पतालों के कई चक्कर लगे थे. कुछ दिन ऐडिमट भी रही थी, दिनभर तरहतरह के डाक्टर आते और उस से बातें करते. सुनीला कहती भी थी हड्डी टूटने पर इतने डाक्टर की क्या जरूरत. ठीक होने पर एक डाक्टर ने ही कहा था.
‘‘सुनीला कुछ दिन कहीं बाहर घूम आओ, मन को अच्छा लगेगा.’’
‘‘पर डाक्टर मैं कालेज में पढ़ाती हूं, ऐसे कैसे जा सकती हूं?’’
फिर घर में लोगों के जमघट से परेशान हो आखिर निकल ही गई. काश, रमणिका साथ होती.
सुनीला अपने कमरे की तरफ जाने लगी… तभी मैनेजर ने पूछा, ‘‘हमारी एक टूरिस्ट बस नौर्थ गोवा के पुराने पुर्तगाली घर घुमाने जाने वाली है, एक सीट ही खाली है. सोचा आप से पूछ लूं.’’
अनमनी सी सुनीला बस में चढ़ गई. बैठने से पूर्व उस ने अच्छे से मुआयना किया कि कहीं वह तो नहीं. न पा कर तसल्ली से बैठ गई और बाहर के सुंदर दृश्यों का आनंद लेने लगी.
एक के बाद एक कई पुराने पुर्तगाली घर घुमाया गया, हर घर के साथ एक रहस्यमयी रोमांचकारी या कोई भूतिया कहानी जुड़ी हुई थी. वह तो अच्छा था कि ढेरों टूरिस्ट साथ थे वरना सुनीला की हालत पतली ही थी.
एक बंगला घूमते वक्त सुनीला एक आदमकद शीशे के समक्ष खड़ी थी कि पीछे से उसी का अक्स दिखाई दिया. व्हाइट शर्ट और ब्लू डैनिम में. डर के मारे सुनीला चिल्लाने लगी, ‘‘भूतभूत… चेहरा का रंग पीला पड़ गया और थरथर कांपने लगी.
बेचारा गाइड घबरा गया, ‘‘मैडम ये सब कहानियां सुनीसुनाई हैं, पर्यटकों के मनोरंजन के लिए हम इन्हें सुनाते हैं,’’ बेचारा गाइड सफाई देते नहीं थक रहा था.
कुछ महिलाओं की मदद से उसे बस में बैठा दिया गया और फिर सब घूमने लगे. खड़ी बस में वह अकेले सामने वाली सीट पर झुक कर विचारों में मगन हो गई. क्यों वह बारबार उसे दिख रहा? क्या किसी और को भी दिखता है या सिर्फ उसे ही.
‘क्या सचमुच भूत है या पूर्व जन्म का नाता? फिर वह नीलानीला क्यों बोलता है?’
सुनीला जैसे किसी किसी चक्रव्यूह में फंस गई थी. अभी 2 दिन गोवा में और रहना है पर उस का मन ऊब चल था. शादी के बाद ही आना सही रहता, बेकार में घूम भी लिया और उस भूत के चलते मजा भी किरकिरा हो गया. कुछ देर के बाद आंसुओं से सिना चेहरा उस ने ऊपर किया तो उसे जैसे करंट लग गया. वह उस की सीट के बिलकुल सामने उस की ओर देखते हुए नारियल पानी पी रहा था. सुनीला इतनी बेबस कभी नहीं हुई थी. खाली बस वह अकेली, डर से उस का गला भी बंद हो गया. उस ने लगभग घिघयाते हुए बमुश्किल पूछा, ‘‘कौन हो तुम? क्या चाहते हो मुझ से?’’
वह बस मुसकराता रहा. टूरिस्ट बस में आने लगे थे. उस ने कहा, ‘‘मैं बस तुम को देखना चाहता हूं.’’
ड्राइवर से कुछ बात कर वह सुनीला की बगल वाली सीट पर बैठ गया. सुनीला को तो जैसे काटो तो खून नहीं. वह उठ कर जाने लगी तभी बस चल पड़ी.
‘‘यानी यह भूत तो कतई नहीं है, इस ने बातें करी दूसरों से.’’
सुनीला मन ही मन गुथ रही थी. भूतिया डर जाने के बाद उस का मन हलका हो गया था.
‘वैसे है हैंडसम यह,’ उस ने मन ही मन सोचा. फिर तो बातों का सिलसिला ही निकल चला.
‘‘आप मेरी फ्रैंड को कैसे जानते हैं?’’
‘‘क्योंकि वह मेरे ही शहर की है.’’
‘‘यानी आप रांची से हैं? मैं भी तो… ’’
‘‘हां, मैं तुम्हें जानता हूं, तुम्हारे पूरे परिवार को भी.’’
अब चौंकने की बारी सुनीला की थी.
वह 2 दिन जिन्हें काटने में उसे परेशानी हो रही थी जैसे फुर्र हो गए. अपने शहर का लड़का और कई समानताएं उसे आकर्षित कर रही थीं. आखिरी शाम सुनीला ने उस का हाथ थाम कर पूछ ही लिया, ‘‘क्या मुझ से शादी करोगे अनुदीप?’’
‘‘जरूरजरूर पर कितनी बार मुझ से शादी करोगी?’’ अनुदीप ने हंसते हुए पूछा.
‘‘हर जन्म में,’’ सुनीला ने भावुकता से कहा.
‘‘मैं इसी जन्म की बात कर रहा हूं.’’
सुनीला फिर चकित हो उसे देखने लगी. तभी रमणिका एक फोटो अलबम हाथ में लिए आते दिखी.
‘‘तुम कब आईं?’’ सुनीला ने पूछा.
‘‘मैं गई ही कब थी? मैं तुम्हें अपनी जिम्मेदारी पर यहां लाई थी. परंतु अब जरा ध्यान से सारी बातें सुनो. तुम्हारी शादी 1 साल पहले अनुदीप से हो चुकी है. यहीं गोवा में तुम ने हनीमून भी मनाया है. पर रांची लौटने के पश्चात पतरातू घाटी में एक दिन तुम्हारा ऐक्सीडैंट हो गया. कार में तुम दोनों ही थे. चोटें तुम दोनों को आईं पर तुम्हें कुछ अधिक आघात पहुंचा जिस में तुम अपनी शादी की बात बिलकुल भूल गई. कहीं गोआ में तुम्हें अपना विगत याद आ जाए, यही सोच हम ने यह प्लान बनाया. यह अलबम देखो,’’ उस ने कहा.
सुनीला पन्ने पलटने लगी, हां यह अनुदीप ही है और यह मैं. वह चकित थी.
घर पर उस दिन आए हुए लोग भी हैं इस में. सामने अश्रुसिक्त नयनों से अनुदीप बैठा था.
‘‘अनुदीप जब अस्पताल से डिस्चार्ज हो कर लौटा, तब तक वह तुम्हारे लिए अजनबी हो चुका था. वह कई बार तुम से मिला भी, तुम्हारी अजनबियत निगाहें उस का हृदय तोड़ देती थीं. रांची के प्रसिद्ध मनोचिकित्सकों ने तुम्हारा कई महीने इलाज किया. तुम पहले से अब काफी बेहतर हो, अनुदीप ने फिर से तुम्हारे दिल को जीतने के लिए यह ड्रामा रचा.’’
‘‘पर तुम ने तो उसे भूत ही बना दिया. वह अकसर मुझ से या तुम्हारी मम्मी से बातें करने के लिए तुम से अलग होता था. अब तुम जब उस से शादी करने के लिए राजी हो गई तो हम ने सोचा कि अब पटाक्षेप किया जाए. आंटी से बातें करो बहुत कठिन दिन गुजारे हैं उन्होंने’’
सुनीला अपनी मम्मी की बातें सुन रही थी साथ ही साथ सामने बैठे अनुदीप के चेहरे के बनतेबिगड़ते भावों को महसूस कर रही थी.
‘‘याद तो मुझे अब भी नहीं है पर मुझे अनुदीप पसंद है और यही बात मेरे लिए माने रखती है. तुम आधिकारिक तौर पर मेरे पति हो पर तुम ने कभी ऐसा कोई अधिकार नहीं जताया. आई लव यू.’’
‘‘मैं तुम्हें नीला और तुम मुझे दीप कहती थी,’’ भर्राए गले से अनुदीप ने कहा.
‘‘आधी रात को तुम खिड़की पर आखिर लटके कैसे थे, तभी तो तुम्हें भूत समझती रही?’’ हंसती हुई सुनीला ने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी बगल वाले कमरे में था, दोनों की बालकनी
जुड़ी हुई थी, सिंपल. मुझे नींद नहीं आ रही थी और मैं तुम्हें देखना चाहता था, वह कर्मचारी शायद उनींदा था.’’
फिजां में लाखों दीप जलने लगे और आसमान से नीले फूलों की बरसात होने लगी.