‘‘सुबहसे बारिश लगी है. औफिस जाते हुए मु?ो कार से सत्संग भवन तक छोड़ दो न,’’ अनुरोध के स्वर में एकता ने अपने पति प्रतीक से कहा तो उस के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘सत्संग? तुम कब से सत्संग और प्रवचन के लिए जाने लगीं? जिस एकता को मैं 2 साल से जानता हूं वह तो जिम जाती है, सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी करती है और मेरे जैसे रूखे

पति की प्रेमिका बन कर उस की सारी थकान दूर कर देती है. सत्संग में कब से रुचि लेने लगीं? घर पर बोर होती हो तो मेरे साथ औफिस चल कर पुराना काम संभाल सकती हो, मु?ो खुशी होगी. इन चक्करों में पड़ना छोड़ दो, यार,’’ एकता के गाल को हौले से खींचते हुए प्रतीक मुसकरा दिया, ‘‘अब मैं चलता हूं. शाम को मसाला चाय के साथ गोभी के पकौड़े खाऊंगा तुम्हारे हाथ के बने,’’ अपने होंठों को गोल कर हवा में चुंबन उछालता हुआ प्रतीक फरती से दरवाजा खोल बाहर निकल गया.

एकता ने मैसेज कर अपनी सहेली रुपाली को बता दिया कि वह आज सत्संग में नहीं आएगी. बु?ो मन से कपड़े बदलकर बैड पर बैठे हुए वह एक पत्रिका के पन्ने उलटने लगी और साथ ही अपने पिछले दिनों को भी. 2 वर्ष पूर्व प्रतीक को पति के रूप में पा कर जैसे उस का कोई स्वप्न साकार हो गया था. प्रतीक गुरुग्राम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में मैनेजर था और एकता वहां रिसैप्शनिस्ट. प्रतीक दिखने में साधारण किंतु अपने भीतर असीम प्रतिभा व अनेक गुण समेटे था.

एकता गौर वर्ण की नीली आंखों वाली आकर्षक युवती थी. जब कंपनी की ओर से एकता को प्रतीक का पीए बनाया गया तो दोनों को पहली नजर में इश्क सा कुछ लगा. एकदूसरे को जानने के बाद वे और करीब आ गए. बाद में दोनों के परिवारों की सहमति से विवाह भी हो गया.

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