पार्टीमें अनुपम का उत्साह देख शुभा उसे आश्चर्य से देखती रह गई. वह सोच रही थी, क्या यह वही अनुपम है जिसे हर समय कोई न कोई काम रहता है, जो सुबह तड़के ही जब सब अभी मीठी नींद में होते, एक बार जा कर बांध स्थल पर चल रहे निर्माणकार्य का निरीक्षण भी कर आता. रात को भी भोजन के बाद रात की पारी वालों का कार्य देखने के लिए वह बिना नागा कार्यस्थल पर अवश्य जाता, तब कहीं उस की दिनचर्या पूरी होती. यदि काम में कोई समस्या आ जाती तब तो वह उसे निबटा कर ही रात के 2 बज गए.

मगर उस पार्टी में अनुपम को इतने उत्साह में देख शुभा हैरान थी. वह उस के भाई मनोज से बहुत हंसहंस कर बातें कर रहा था. शुभा अनुपम द्वारा उसे किए गए अभिवादन के स्टाइल पर गदगद थी.

कालेज जाने से पहले शुभा सुबह अंधेरे उठती, नहाधो कर अम्मां की आज्ञानुसार ध्यान करने बैठती, पर इन दिनों जब वह आंखें मूंदती तो अनुपम का वही मुसकारता चेहर उस की बंद आंखों के आगे आ खड़ा होता और वह घबरा कर आंखें खोल देती.

वह भोर के हलकेहलके प्रकाश में आंगन के पीछे का द्वार खोल बगीचे में टहलने लगती और उस की आंखें क्षणप्रतिक्षण अनुपम के द्वार की ओर उठ जातीं. कान उस की जीप की आवाज पर लगे रहते. वह सोचती, अनुपम अभी कार्यस्थल पर जाने वाला होगा और ज्यों ही जीप के चालू होने की आवाज आती वह उस की एक ?ालक देख ऐसी खिल उठती मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. उस के चले जाने पर वह घबरा कर सोचने लगती, आखिर यह उसे क्या होता जा रहा है?

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